एयर इंडिया के पुनर्जीवन का फलसफा

By: Apr 6th, 2018 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

हाल में एयर इंडिया के मुखिया के रूप में एक नागरिक प्रशासक को नियुक्त किया गया, लेकिन कुछ ही महीनों में उसे इससे आरामदायक पद  मिल गया तथा वह रेलवे में शिफ्ट हो गया। एयर इंडिया अथवा यहां तक कि विमानन क्षेत्र की मुखिया उपलब्ध करवाने के लिए अपनी कोई सेवा नहीं है। यह इसकी सबसे बड़ी त्रासदी है। कई वर्षों पहले नौकरशाहों की तुलना में विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है…

एयर इंडिया सेल पर है तथा यह ऐसी खबर है जो निजी उपक्रमों के सभी चैंपियनों को खुश करेगी। लेकिन इससे उन विशेषज्ञों के दिल में एक ऐंठन पैदा हो सकती है जिन्होंने रोगियों का उपचार किया है। यह उन कई लोगों के लिए हैरान करने वाली बात भी हो सकती है जो अनुभव करते हैं कि सब कुछ स्वतंत्र उपक्रम होना चाहिए जैसा कि सिंगापुर में एयरपोर्ट व एयरलाइन सरकारी क्षेत्र में है और ये अपनी कार्यशैली में मोस्ट प्राइज्ड हैं। कैनेडा में डाक सेवाएं सरकारी क्षेत्र में हैं। ऐसा कई देशों में है, लेकिन कैनेडा की तरह स्थिति कुशलता व उच्च प्रशंसा वाले संगठन जैसी नहीं है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं वह शख्स हैं जिन्हें गुजरात में खंडहर हो चुके ऊर्जा क्षेत्र को चलाऊ स्थिति में लाने का श्रेय दिया जाता है। मैंने स्वयं भारतीय अंतरराष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण का तीन साल तक दायित्व संभाला तथा इसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की श्रेणी में लाभ कमाने वाले टॉप टेन उपक्रमों में से एक बनाया। उस समय एयर इंडिया, विमानपत्तन प्राधिकरण व इंडियन एयरलाइंस, ये सभी व्यावसायिक रूप से दक्षता के साथ काम कर रहे थे। ये सभी लाभ की स्थिति में थे तथा राजकोष के लिए घाटे का सौदा नहीं थे। मैं एयर इंडिया के बोर्ड में था तथा इसके अध्यक्ष रतन टाटा थे। किसी भी संस्थान का व्यावसायिक रूप से प्रबंधन काफी महत्त्व रखता है तथा लालफीताशाही पर अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन दुखद बात यह है कि विशेषज्ञों के पलायन तथा नागरिक प्रशासकों की नियुक्ति से पूरा का पूरा सेक्टर अव्यवस्था झेल रहा है।हाल में एयर इंडिया के मुखिया के रूप में एक नागरिक प्रशासक को नियुक्त किया गया, लेकिन कुछ ही महीनों में उसे इससे आरामदायक पद मिल गया तथा वह रेलवे में शिफ्ट हो गया। एयर इंडिया अथवा यहां तक कि विमानन क्षेत्र की मुखिया उपलब्ध करवाने के लिए अपनी कोई सेवा नहीं है। यह इसकी सबसे बड़ी त्रासदी है।

कई वर्षों पहले नौकरशाहों की तुलना में विशेषज्ञों को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। कोई भी उत्तरदायी नहीं है क्योंकि मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पास अपने कैडर में बैकअप कार्य है। वे कार्यकारी कहां हैं जो उपक्रम की उत्तरजीविता के साथ तैरते तथा मिट जाते हैं। कोई संगठन कितना विफल व कितना सफल होता है, यह उसके नेतृत्व पर निर्भर करता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज एयर इंडिया जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है क्योंकि कुछ कारणों से इसका लगातार पतन हुआ है। इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि सरकार खुद जिम्मेदार है। इसमें नियुक्तियों का जो तरीका है, वह सही नहीं है। विमान खरीदने के विवेकहीन फैसले भी हुए हैं। विमानों को लीज पर न देने से इस पर 51367 करोड़ का कर्ज चढ़ गया है। इसी तरह इक्विटी में 30 हजार करोड़ का इंजेक्शन इंडिकेटिड टर्नअराउंड प्लान है। इसकी क्षमता का मू्ल्यांकन करने वाला पैसेंजर लोड कारक इसे सभी एयरलाइंस में सबसे निचले स्तर पर रखता है। इसके बावजूद यह आठ करोड़ रुपए का आपरेशनल प्रॉफिट दिखा सका। लेकिन सवाल यह है कि एयर इंडिया इतनी देर तक आपरेशनल टेबल पर क्यों रहा? हम अगर 90 के दशक की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन ने उप-सहारा देशों में प्रभावशीलता व सांस्थानिक निर्माण का अध्ययन किया था। अफ्रीकन एयरलाइंस संगठन  संतोषजनक परिणाम दिखाने में बुरी तरह विफल रहा।अंत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने मुझे संस्थानों के निर्माण के लिए रोग के उपचार ढूंढने तथा रणनीतियां बनाने में समन्वय करने तथा विश्लेषण करने का जिम्मा सौंपा। पूरे क्षेत्र में अधिकतर एयरलाइंस दुरावस्था की स्थिति में थीं, जबकि रहस्यात्मक पहलू यह था कि इथोपियन एयरलाइंस किस तरह कुशलता से काम कर रही थी तथा लाभ की स्थिति में भी थी। मैंने कई कारक पेश किए तथा रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा छापी गई। इनमें से तीन कारकों का मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा। ये तीनों कारक एयर इंडिया पर विशेष रूप से लागू होते हैं। संगठनों में बदलाव लाने के लिए नेतृत्व, उत्तरदायित्व व कार्य संस्कृति का रूपांतरण बहुत जरूरी होता है। यह निर्णायक कारक होते हैं।

दुख की बात यह है कि इन तीनों की अब तक उपेक्षा होती रही है। अर्थशास्त्री अपने आप को आपूर्ति-मांग तथा उपभोक्ता व्यवहार तक सीमित कर लेते हैं, जबकि तकनीकी विशेषज्ञ इंजनों की कार्यकुशलता की बात करते हैं। इसी तरह वित्त विशेषज्ञ केवल लाभ व हानि की बात करते हैं। भारत तक में कोई भी नेतृत्व व कार्य संस्कृति की बात नहीं कर रहा है, जबकि हमारा अध्ययन बताता है कि किसी भी उपक्रम की सफल कार्यशैली में इनकी बहुत बड़ी भूमिका होती है। विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप की बात करें तो यहां इसका नितांत अभाव है तथा ये गुण निष्प्रभावी हो गए हैं। अफ्रीकी देशों की सफल एयरलाइंस के यूएनडीपी अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर मानव संसाधनों का उत्प्रे्ररणा व उच्च नैतिक मापदंडों के साथ उपयोग हो तो यह वित्तीय व तकनीकी दृश्यावलि को बदल सकता है। एशियाई देशों में एयरलाइंस संबंधी मेरे अध्ययन में भी इन निष्कर्षों को मैंने पुख्ता किया है। सभी बीमारू संगठनों में साफ्ट वर्क कल्चर पाया जाता है, जिसे मैंने ‘चलता है’ कल्चर का निक नेम दिया है। वास्तव में एयर इंडिया के पास टैलेंट व तकनीकी कौशल की कमी नहीं है। फिर प्रभावशाली कार्यशैली व निपुणता से काम क्यों नहीं हो पा रहा है। इसके जवाब के रूप में तीन निर्णायक कारक गिनाए जा सकते हैं। ये हैं नेतृत्व, रणनीतिक योजना व कार्य संस्कृति। इन मसलों की ओर अभी तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। एयर इंडिया के पास व्यापक संसाधन हैं तथा इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण हैं पायलट व तकनीशियन। ये कर्मचारी किसी अन्य एयरलाइन से कम निपुण नहीं हैं। अच्छी सेवाएं देने के लिए उनके लिए अच्छी रणनीतिक योजना व नेतृत्व की जरूरत है। दुर्भाग्य से पिछले एक दशक से किसी भी सरकार ने इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। 1977 में एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइंस को एक-दूसरे में विलीन कर दिया गया। इससे संगठन की कार्यशैली में ऐसी समस्याएं पैदा हो गईं जिनसे बचा जा सकता था। वे दशकों से विकसित एक खांचे में काम कर रही थीं, जो विलय के कारण ध्वस्त हो गया। इसके कारण कोई बड़ा समझौता नहीं हो पाया और दोनों दो अलग-अलग विभागों के रूप में काम करने लगे। इस विलय की सफलता के मूल्यांकन के लिए 1980 में एक कमेटी बनाई गई जिसका मैं भी एक सदस्य था। सभी सियासी रेखा को हटा देना चाहते थे, लेकिन मैंने इससे असहमति प्रकट की और कंपनी के स्वामित्व की सिफारिश की। इसके कारण नौकरशाही का नियंत्रण कम हो गया होता, लेकिन ऐसे ही अफसरों व राजनेताओं ने इस बात को अनसुना कर दिया। ऐसे ही गलत फैसलों के कारण एयर इंडिया को भारी क्षति हुई। मेरा आज भी विश्वास है कि एयर इंडिया को आज भी लाभ की स्थिति में लाया जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि कोई भी इस काम को करने की पीड़ा नहीं लेना चाहेगा।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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