खेलों में कब आएगी लोकतंत्र की बहार

By: Apr 6th, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

देश में खेलों के पिछड़ने का बहुत बड़ा कारण खेल संघों पर लगातार कई टर्म तक व्यक्ति विशेष का कब्जा भी एक प्रमुख कारण है। पहली टर्म में तो ये पदाधिकारी काफी रुचि दिखाते हैं, मगर बाद में फिर धीरे-धीरे खेल उत्थान को भूल कर अपनी नेतागिरी व पहचान को बनाए रखने के लिए खेल संघों का प्रयोग करते हैं…

खेलों में लोकतंत्र के नाम पर पिछले कई दशकों से देश व प्रदेशों के खेल संघों पर तानाशाही शासन हो रहा है। राष्ट्रीय खेल महासंघ को राज्य खेल संघों के पदाधिकारी चुनते हैं और राज्य खेल संघ के चुनाव में जिला खेल संघों के पदाधिकारी वोट डालते हैं, मगर जिला स्तर पर खेल संघों पर व्यक्ति विशेष का कब्जा पिछले कई दशकों से जारी है। राज्य खेल संघों द्वारा नामित पदाधिकारियों के सहारे जिला स्तर पर खेल संघों का जब गठन होगा तो फिर खेलों से कैसा लोकतंत्र? खेल संघों की कुर्सी पर जो पदाधिकारी एक बार कब्जा जमा लेता है वह मरने के बाद या किसी मजबूरी में धक्के मार कर बाहर करने के अलावा अपनी मर्जी से कभी भी खेल संघ की कुर्सी को नहीं छोड़ता है। यानी खेल संघों में फर्जी लोकतंत्र कायम है। मैडम विद्या स्टोक्स पिछले चार दशकों से हाकी संघ पर कब्जा किए बैठी थी। हाल में ही हुए चुनावों में बाहर होने पर हो-हल्ला हो रहा है। एथलेटिक संघ पर मंत्री अनिल शर्मा पिछले दो दशकों से विराजमान हैं। कई दशकों तक कबड्डी संघ पर एक घर से ही दो भाइयों ठाकुर राम लाल व नंदलाल का कब्जा रहा है। वालीबाल संघ का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है। कई टर्म तक ठाकुर राम लाल अध्यक्ष रहे, अब मंत्री वीरेंद्र कंवर दूसरी बार आसीन हो गए हैं। क्रिकेट संघ पर अनुराग ठाकुर ने दो दशक पूर्व राजेंद्र जार से अध्यक्ष पद जीता और अब वही क्रिकेट संघ पर हावी हैं। फुटबाल व बास्केटबाल संघ के सचिव कई टर्म से इन संघों पर कब्जा जमाए बैठे हैं। अपनी सुविधा के अनुसार प्रधान बदलते रहते हैं। बैडमिंटन, खो-खो, बुशु, नेटबाल, कोर्फबाल, बेसबाल आदि सभी खेलों पर भी पिछले कई दशकों से व्यक्ति विशेष का ही कब्जा कायम है। देश में खेलों के पिछड़ने का बहुत बड़ा कारण खेल संघों पर लगातार कई टर्म तक व्यक्ति विशेष का कब्जा भी एक प्रमुख कारण है। पहली टर्म में तो ये पदाधिकारी काफी रुचि दिखाते हैं, मगर बाद में फिर धीरे-धीरे खेल उत्थान को भूल कर अपनी नेतागिरी व पहचान को बनाए रखने के लिए खेल संघों का प्रयोग करते हैं।

खेल उत्थान कम और खेल संघों पर कब्जा जमाने के लिए ज्यादा जोर दिया जाता रहा है। अनुराग ठाकुर ने क्रिकेट संघ पर प्रमुख बनकर राज्य में क्रिकेट का आधारभूत ढांचा खड़ा किया है। वह काबिलेतारिफ है। यह सब इसलिए भी हुआ है क्योंकि वह स्वयं क्रिकेट खिलाड़ी रहा है। कबड्डी संघ में हिमाचल कबड्डी को ऊपर उठाने में ठाकुर राम लाल व नंदलाल की सोच को भी नकारा नहीं जा सकता है, मगर फर्जी लोकतंत्र के नाम पर खेल संघों पर दशकों तक कब्जा जमाए रखना भी लोकतांत्रिक देश में कहां तक उचित है। राष्ट्रीय स्तर पर खेल बिल की बात तो हर दल करता है, मगर चार वर्ष बीत जाने के बाद भी इस खेल बिल पर केंद्र सरकार चुप है। हिमाचल में भी खेल विधेयक की बात सबके सामने है। खेलों में राजनीति ठीक नहीं, यह बात सभी करते हैं, मगर आज खेल राजनीति से अछूते नहीं हैं। पिछले दशक में धूमल सरकार ने अपने कार्यकाल में राज्य के विभिन्न जिलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड बिछवाई, मगर राजनीतिक दुर्भावना के कारण पिछले पांच वर्षों तक करोड़ों रुपए की यह सुविधा लावारिस रही है। अगर राज्य में खेल संघ ठीक ढंग से कार्य कर रहे होते तो इनकी इतनी बेकद्री न होती। जिला स्तर पर खेल संघों को मजबूत करके राज्य में खेल को गति दी जा सकती है। इस सबके लिए तहसील स्तर से खेल संघों के गठन की बात शुरू करनी होगी। तहसील स्तर पर विभिन्न क्लबों तथा शिक्षा संस्थानों को उस तहसील के खेल संघ का हिस्सा बनाया जाए। खेल संघ में दो-तिहाई से अधिक खिलाड़ी पृष्ठभूमि के लोग पदाधिकारी व कार्यकारी सदस्य होने चाहिए। कोई भी पदाधिकारी लगातार एक से अधिक बार संघ का चुनाव न लड़े, ताकि खेल संघ किसी एक की जागीर न बने। पूर्व पदाधिकारियों के अनुभव का लाभ उठाने के लिए उन्हें कार्यकारी मंडल में जरूर रखें, विभिन्न कमेटियों में सलाहकार के रूप में उनके रहने से संघों के नए पदाधिकारियों को दिशा मिलती रहेगी। खेल लोकतंत्र में जब पांच वर्षों में बदली पक्की हो सकती है तो पदाधिकारी अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश जरूर करेंगे। बीसीसीआई स्तर पर हर चुनाव में नया अध्यक्ष बनने की परंपरा के बाद बोर्ड ने बहुत प्रगति की है। यही बात राज्य व जिला स्तर तक हर खेल संस्थान में लागू होती है तो खेलों में सुधार जरूर होगा। खेल संघों पर असरदार राजनीतिज्ञों व प्रशासनिक अधिकारियों का लगातार दशकों तक कब्जा होने के कारण खेल उत्थान में बाधा आ रही है। यही कारण है कि खेल बिल जिसमें खेल के उत्थान के लिए खेल महासंघों पर नियम लिखे हैं, उसे लोकसभा में भाजपा सरकार भी नहीं पेश करवा रही है। राज्य में खेल विधेयक भी राज्यपाल के दफ्तर से बाहर आने में पांच वर्षों का समय लगा रहा है। खेल किसी भी देश व प्रदेश की आगामी पीढ़ी के लिए सामान्य फिटनेस का तो कार्य करता ही है, साथ-साथ उत्कृष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी निकाल कर प्रदेश व देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव भी दिलाता है। इसलिए खेल संघों में पारदर्शिता व ईमानदार प्रशासन की बेहद जरूरत है। अच्छा होगा समय रहते खेल संघों का फर्जी लोकतंत्र खत्म किया जाए।


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