जैविक खेती की राह में कैमिकल मजबूरी

By: Apr 10th, 2018 12:05 am

भुंतर—जैविक व प्राकृतिक खेती को सरकारी फरमान ने कृषि वैज्ञानिकों कैमिकल छिड़काव का विकल्प तैयार करने को मजबूर कर दिया है। लिहाजा, प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को सुझाव दिया है। जिला कुल्लू के शमशी में आयोजित राष्ट्रीय मक्की कार्यशाला के दौरान पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा. एके सरयाल ने कहा कि किसानों को उनके इस सवाल का सकारात्मक जवाब मिलना चाहिए कि जैविक छिड़काव से भी यह संभव है। बता दें कि सरकार भले ही हाल ही के सालों में जैविक खेती को लेकर जोर दे रही है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसलों को बचाने और उत्पादन को बढ़ाने के लिए फिलहाल बेहतर विकल्प तैयार नहीं हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को फिलहाल केमिकल छिड़काव की ही सलाह दी जा रही है। किसानों को फिलहाल कैमिकल खाद और अधिकतर कैमिकल छिड़काव ही सप्लाई किया जा रहा है, जबकि जैविक छिड़काव या तो बहुत कम है या फिर आम किसानों की पहुंच से बाहर है। किसान अब वैज्ञानिकों से पूछ रहे है कि क्या कैमिकल को हटाकर जैविक संभव है या नहीं। वैज्ञानिकों की मानें तो रातों-रात केमिकल से जैविक छिड़काव को अपनाना संभव नहीं है, लेकिन अब समय आ गया है, जब वैज्ञानिक किसानों को जवाब दें कि ये संभव है। शमशी में आयोजित कार्यक्रम में आईसीएआर के एडीजी डा. आईएस सोलंकी से कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने आग्रह करते हुए कहा आईसीएआर को इस दिशा मंे मजबूती से कार्य करना चाहिए। प्रदेश में जैविक कृषि और प्राकृतिक खेती के लिए इस साल सरकार ने 25 करोड़ का प्रावधान किया है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह राशि कम है। हालांकि सरकार आने वाले सालों में इसमें इजाफे की बात जरूर कह रही है। राज्यपाल आचार्य देवव्रत की पहल के बाद सरकार ने कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर को भी इस पर कार्य करने का जिम्मा सौंपा है। उपकुलपति डा. एके सरयाल ने कार्यक्रम के दौरान कहा कि उत्पादन बढ़ाने के साथ किसानों को कैमिकल छिड़काव का बेहतर विकल्प जैविक खेती के तौर पर मिले यह अगला टारगेट है।

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