पर्वतीय परिवहन के नए विकल्प

By: Apr 23rd, 2018 12:05 am

पहाड़ी राज्यों की परिवहन व्यवस्था में पुनः स्काई बस तथा मोनो ट्रेन की संभावनाओं पर अगर हिमाचल के सुझाव पर गौर किया जाए, तो यह राष्ट्रीय नीति व कार्ययोजना के तहत संभव हो सकता है। गुवाहाटी में परिवहन विषयों पर हुई अंतरराज्यीय बैठक में अनेक विकल्पों के बीच हिमाचल ने जो प्रस्ताव रखा है, उसे भविष्य के सांचे में देखना होगा। पिछली सरकार ने इस दिशा में अपने तौर पर प्रयास किए और लंदन की तर्ज पर पॉड ट्रांसपोर्ट सिस्टम बिछाने के लिए संभावनाएं तलाशीं। इसी तरह धर्मशाला स्काई बस परियोजना के लिए बेलारूस की कंपनी के साथ पीपीपी मोड के तहत अढ़ाई सौ करोड़ के आरंभिक चरण का सहमति पत्र बना, लेकिन सियासी संघर्ष इन अध्यायों को खुर्द-बुर्द करने की सीमा तय करता रहा। बहरहाल जयराम सरकार के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह अगर वैकल्पिक व रैपिड ट्रांसपोर्ट नेटवर्क की दृष्टि से पुनः ऐसी परियोजनाओं में सार्थकता देख रहे हैं, तो यह प्रदेश की सही दिशा होगी। दरअसल पर्वतीय परिवहन को लेकर न अनुसंधान और न ही समाधानों के हिसाब से अलग से चिंतन व नवाचार सामने आया है। पर्वतीय राज्यों के विकास के लिए जब तक अलग से मंत्रालय गठित नहीं होता, तब तक मैदानी सोच से पहाड़ घायल और पहाड़ी जीवन पिछड़ा ही रहेगा। अकसर मापदंडों की शर्तों या पर्वतीय लागत के हिसाब को पहाड़ी राज्यों के संदर्भ में समझा ही नहीं जाता। समुद्र तटीय भौगोलिक परिस्थितियां भी इसी तरह अलग हैं और इसीलिए वहां के समाधान भी विशेष अनुसंधान व मापदंडों की मांग करते हैं। कोंकण रेल परियोजना की सफलता साबित करती है कि जब योजना-परियोजना का ढर्रा बदला, तो यह असंभव सी यात्रा पूरी हो गई। जम्मू-कश्मीर घाटी रेल परियोजना भी राष्ट्रीय योजना के दृढ़ प्रतिज्ञ होने का सबूत बन रही है। पूर्वोत्तर राज्यों में राष्ट्रीय योजनाओं ने परिवहन को प्राथमिकता दी है, तो हिमाचली अपेक्षाएं भी अब प्रगतिशील राज्य होने की रफ्तार में नए विकल्प देखना चाहती हैं। ऐसे में अगर फिजिबिलिटी रिपोर्ट अपने वित्तीय पैमानों को सख्त रूप से पेश करती रहेगी, तो न ट्रेन, न मोनो ट्रेन और न ही स्काई बस जैसी परियोजनाएं कभी अमल में आएंगी। विशेष राज्यों के दर्जे में हर मापदंड की छूट 90ः10 के अनुपात में ही करनी होगी, ताकि केंद्र अपनी भूमिका का सीधा असर अंगीकार करता रहे। बड़ी परियोजनाओं के खाके में वन एवं पर्यावरणीय अनुमतियां या अंतरराज्यीय समझौते अगर तीव्रता से नहीं होंगे, तो भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी। हिमाचल के कुछ प्रशासनिक, औद्योगिक व पर्यटक शहरों में बढ़ते यातायात के दबाव को एरियल ट्रांसपोर्ट के विविध समाधानों में देखना होगा। कुछ वर्ष पूर्व प्रदेश के पीडब्ल्यूडी के यांत्रिक इंजीनियरों ने एरियल ट्रांसपोर्ट में क्रांति लाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सरकार के किसी कोने में यह आवाज दब गई। कम खर्च पर रज्जु मार्ग बनाने में सफल रहे यांत्रिक इंजीनियरों ने प्रायोगिक तौर पर धर्मशाला, मंडी व सोलन शहरों में एरियल ट्रॉम चलाने के लिए इच्छा जाहिर की थी, लेकिन न विभागीय प्रोत्साहन मिला और न ही सरकारी इच्छाशक्ति सामने आई। ऐसे में प्रदेश का परिवहन विभाग आर एंड डी की दिशा में मेहनत करे, तो परिवहन तकनीक में विश्व स्तरीय उपलब्धियां जोड़ी जा सकती हैं। पीडब्ल्यूडी के यांत्रिक सेक्शन को इस लायक बनाना होगा कि हर शहर के यातायात को नई तकनीक के सहारे व्यवस्थित किया जा सके। प्रदेश के कमोबेश हर शहर की परिवहन परिपाटी को बदलने की जरूरत है। विभिन्न शहरी क्लस्टरों की स्थापना से परिवहन की समस्याएं दूर होंगी, तो शहरों के भीतर इलेक्ट्रिक टैक्सियां, रज्जु मार्ग व स्काई बस जैसे समाधान पूरे करने होंगे। जिस तरह समुद्र तटीय रेल मार्ग बिछाने में कोंकण रेल सफल हुई है, उसी तर्ज पर हिमाचल को एरियल ट्रांसपोर्ट की एक अलग एजेंसी या प्राधिकरण खड़ा करना पड़ेगा। कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना व बिलासपुर के प्रसिद्ध मंदिरों पर केंद्रित रेल या मोनो रेल की दिशा में संभावनाएं बढ़ जाती हैं या बेलारूस  की कंपनी द्वारा प्रस्तावित धर्मशाला स्काई बस परियोजना को आगे बढ़ाया जाए, तो हिमाचल पर्वतीय राज्यों के लिए ट्रांसपोर्ट का मॉडल विकसित कर सकता है।

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