आक्रोश : देश या राहुल का!

By: May 1st, 2018 12:05 am

दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘जन-आक्रोश’ रैली को संबोधित किया। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पहली रैली…। उनका दावा है कि देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी से नाराज है और उनके खिलाफ मूड बन रहा है। इसी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की ही जीत होगी। इसके अलावा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस सरकारें बनेंगी, जहां फिलहाल भाजपा सत्तारूढ़ है। इन चुनावी जीतों के साथ ही 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस जीतेगी। राहुल गांधी के ‘आक्रोश’ की अंतिम भाषा यही है। रामलीला मैदान में ऐसी रैलियां होती रही हैं, जिन्होंने सत्ताएं उखाड़ फेंकी हैं और देश को नई सत्ताएं दी हैं, लेकिन उस आधार पर राहुल की रैली का आकलन करें, तो फ्लाप ही कहना पड़ेगा। यदि आक्रोश देश की जनता का है, तो करीब एक-तिहाई मैदान में कुर्सियां खाली क्यों पड़ी थीं? रैली के लिए पंजाब, हरियाणा और आसपास के राज्यों से भीड़ जुटाने की कवायद काफी पहले शुरू की गई थी। कांग्रेस नेता बैठकें कर रहे थे और भीड़ का आंकड़ा सुनिश्चित कर रहे थे। उसके बावजूद मैदान खाली…! जिन्होंने जयप्रकाश नारायण, चौ. चरण सिंह से लेकर अन्ना हजारे तक की रैलियां देखी हैं, वे ‘आक्रोश’ को परिभाषित कर सकते हैं। जब राहुल गांधी की ‘जन-आक्रोश’ रैली चल रही थी, तो उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी की भी घोषणा प्रसारित हुई थी कि अब देश का कोई भी गांव अंधकारमय नहीं रहा। अब घर-घर को ‘रोशन’ करेंगे।’ दरअसल यह देश की आजादी के 70 साल बाद संभव हुआ है। पहले हजारों गांव अंधेरे में क्यों डूबे थे, इस सवाल पर ‘आक्रोश’ होना चाहिए। देश की गरीब आबादी की पहुंच बैंकों तक क्यों नहीं थी? आक्रोश इस सवाल पर भी होना चाहिए। देश की करीब 55 फीसदी आबादी खुले में शौच को विवश थी और मोदी सरकार ने ही 7 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनवाकर इस ‘बीमारी’ का इलाज किया है। आज निःशुल्क ही गैस का सिलेंडर और चूल्हा पाने वाले ‘उज्ज्वल’ घरों की संख्या भी 5 करोड़ तक पहुंच गई है और यह सिलसिला जारी है। राहुल गांधी किस ‘आक्रोश’ की बात कर रहे हैं? कौन-सा आक्रोश ‘आंदोलन’ बनकर दिल्ली तक पहुंचा? किसानों के 70 हजार करोड़ के कर्ज माफ करने के बावजूद और कौन-से कर्ज बकाया हैं? अर्थव्यवस्था की जानकारी गांधी परिवार की पुरानी है। आक्रोश उन स्थितियों पर पैदा होना चाहिए, जिनके मद्देनजर कांग्रेस आज चार राज्यों की सत्ता तक ही सिमट कर रह गई है। इनमें से कर्नाटक में मतदान 12 मई को है। देखते हैं कि जनादेश क्या रहता है? जन-आक्रोश झेल रहे प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी भाजपा और सहयोगी दल देश के 21 राज्यों में सत्तारूढ़ हैं और देश के करीब 70 फीसदी इलाके पर काबिज हैं। यदि प्रधानमंत्री मोदी के प्रति देश में जन-आक्रोश का मूड़ है, तो क्या वैकल्पिक नेता राहुल गांधी हैं? दरअसल 2013 में जब राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था, तब से कांग्रेस 28 राज्यों में चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी की गुजरात, हिमाचल, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनावों में हार हुई है। पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका है और ‘शून्य’ जनाधार होने के बावजूद भाजपा सत्तारूढ़ हो रही है। बहरहाल जन-आक्रोश के मुद्दे डोकलाम विवाद, फ्रांस के राफेल लड़ाकू विमान, बैंकिंग घोटाले और प्रधानमंत्री के विदेशी प्रवास आदि नहीं होते। बेशक बेरोजगारी, किसानों, दलितों की समस्याएं ऐसे आधार हैं, जो किसी भी जनादेश को प्रभावित कर सकते हैं। ये आक्रोश देश के हो सकते हैं, लेकिन देश राहुल गांधी की वैकल्पिक योजना भी जानना चाहेगा। मोदी सरकार ने किसानों के लिए बजट में विशेष प्रावधान किए हैं। बजट अप्रैल माह से ही लागू हुआ है। जब किसानों को उनकी फसलों के नए दाम दिए जाएंगे और उनमें किसान-परिवार की मेहनत आदि जुड़कर डेढ़ गुना कीमत नहीं मिलेगी, सवाल तब उठाए जाएं। फसलों के बीमे की रकम न मिले, सवाल तब उठाया जाए। किसान की आमदनी दुगुनी न होने लगे, सवाल तब किए जाएं। गरीबी, बेरोजगारी तो मोदी सरकार को विरासत में मिली हैं। फिर भी सरकार को आंकड़े जारी करते रहना चाहिए कि किस विभाग में कितने रोजगार दिए गए हैं? सरकारी के अलावा निजी सेक्टर में भी कितना रोजगार मिला है, इसके ब्योरे भी दिए जाएं। यदि यह आक्रोश आम आदमी का होता, तो राहुल गांधी रातोंरात राष्ट्रीय नेता बन जाते। मैदान के बाहर सड़कों पर जन-सैलाब बिछा होता और तमाम सर्वेक्षण भी राहुल के औसत की व्याख्याएं करने लगते। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। सत्ता के लिए यह कांग्रेस और गांधी परिवार की तड़प है, जो स्वाभाविक है। राहुल का संबोधन कांग्रेस के लस्त-पस्त काडर को जागृत कर सके, यही उम्मीद और अपेक्षा करनी चाहिए।

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