ईरान के साथ परमाणु डील से अमरीका अलग

By: May 10th, 2018 12:10 am

इजरायल-सऊदी अरब ने किया डोनाल्ड ट्रंप के फैसले का समर्थन, रूस ने जताई निराशा

वाशिंगटन— आखिर वह दिन आ ही गया, जब अमरीका ने ईरान के साथ परमाणु समझौता तोड़ने का फैसला कर लिया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस से प्रेस कान्फ्रेंस कर ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अमरीका के अलग होने की घोषणा कर दी। ईरान ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए चेताया और कहा कि अगर समझौता फेल हुआ तो वह पहले से कहीं ज्यादा यूरेनियम का संवर्धन करेगा। वहीं संयुक्त राष्ट्र अध्यक्ष एंटेनियो गुतेरस ने परमाणु समझौते से जुड़े सभी देशों से अपील की है कि वे इस डील के साथ बने रहें। ट्रंप ने भारतीय समयानुसार मंगलवार आधी रात को प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि मेरे लिए यह स्पष्ट है कि हम ईरान के परमाणु बम को नहीं रोक सकते। ईरान समझौता मूल रूप से दोषपूर्ण है। इसलिए मैं आज ईरान परमाणु समझौते से अमरीका के हटने की घोषणा कर रहा हूं। इसके कुछ समय बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए और उन्होंने साथ ही आगाह किया कि जो भी ईरान की मदद करेगा, उन्हें भी प्रतिबंध झेलना पड़ेगा। ट्रंप ने कहा कि इस समझौते ने ईरान को बड़ी मात्रा में धन दिया और इसे परमाणु हथियार हासिल करने से नहीं रोका। ट्रंप ने यह फैसला कर प्रमुख यूरोपीय सहयोगियों और अमरीका के शीर्ष डेमोक्रैट नेताओं की सलाह को नजरअंदाज किया। अपने चुनाव प्रचार के समय से ही ट्रंप ने ओबामा के समय के ईरान परमाणु समझौते की कई बार आलोचना की थी। उन्होंने समझौते को खराब बताया था। इस समझौते के वार्ताकार तत्कालीन अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी थे। इजरायल के साथ सऊदी अरब ने भी अमरीका के इस फैसल का समर्थन किया है। उधर, ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा कि अगर समझौता रद्द हुआ तो उनका देश अगले सप्ताह से पहले से कहीं अधिक मात्रा में यूरेनियम का संवर्धन करेगा। रोहानी ने कहा कि मैं ट्रंप के फैसले पर यूरोप, रूस और चीन से बात करूंगा। ट्रंप के इस फैसले के बाद अमरीका के भीतर और बाहर से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे गंभीर भूल करार दिया है और आगाह किया है कि इससे अमरीका की वैश्विक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचेगा। वहीं अमरीका की घोषणा के बाद रूस का कहना है कि वह ट्रंप के फैसले से बेहद निराश है। उल्लेखनीय है कि जुलाई 2015 में ओबामा प्रशासन के समय अमरीका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के साथ मिलकर ईरान ने यह समझौता किया था। समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संबर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था, बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में आंशिक रियायत दी गई थी। डोनाल्ड ट्रंप का आरोप है कि ईरान ने दुनिया से छिपकर अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा।

भारत पर पड़ेगा यह प्रभाव

तेल की कीमतों में होगी बढ़ोतरी

तेल खपत के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। वहीं भारत जिन देशों से तेल खरीदता है, उनमें ईरान तीसरे नंबर पर और सऊदी अरब, ईराक पहले और दूसरे नंबर पर आते हैं। ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों से तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसका पहले से तेल की कीमत से परेशान भारत के लिए यह एक बड़े झटके जैसा होगा।

क्षेत्रीय प्रभाव पर भी होगा असर

इस फैसले का क्षेत्रीय प्रभाव भी होगा। यदि भारत अमरीका का साथ देता है तो ईरान खुद-ब-खुद चीन और पाकिस्तान के ज्यादा करीब आ जाएगा, जो पहले से ही इस तरह के मौके के इंतजार में हैं।  भारत पहले ही चीन की वजह से श्रीलंका, नेपाल और मालदीव से संबंधों को लेकर जूझ रहा है। ईरान से संबंध बिगड़ना भारत की ताकत कम करने जैसा होगा।

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