कर्नाटक चुनावों के निहितार्थ

By: May 19th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

कर्नाटक ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार को उखाड़ने के इस अभियान में कर्नाटक भी मोदी के साथ है। सोनिया कांग्रेस सरकार ने लोगों की क्षेत्रीय भावनाओं को उभारने के लिए जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग ही नहीं की, बल्कि उसको प्राप्त करने के लिए अभियान भी शुरू कर दिया। लेकिन कर्नाटक की दाद देनी पड़ेगी कि उसने सोनिया कांग्रेस के इन राष्ट्र विरोधी कार्यों का जवाब उसे गहरी शिकस्त देकर दिया। फिलहाल कर्नाटक ने भाजपा के पक्ष में निर्णय देकर 2019 के चुनावों के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं…

कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के नतीजे आ गए। 222 स्थानों के लिए हुए चुनावों में भाजपा को 104 स्थान प्राप्त हुए हैं। पिछली विधानसभा में उसके कुल मिलाकर 40 सदस्य थे। कर्नाटक ऐसा अंतिम बड़ा प्रदेश था, जिसमें पिछले पांच साल से सोनिया कांग्रेस की सरकार बची हुई थी, लेकिन इन चुनावों में उसके मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी संभावित हार को देखते हुए एक साथ दो विधानसभा स्थानों से किस्मत आजमा रहे थे। चामुंडेश्वरी देवी विधानसभा से तो वह भाजपा के हाथों बुरी तरह पराजित हुए। दूसरे विधानसभा क्षेत्र से वह बड़ी मुश्किल से हारते-हारते बचे। विरोधी प्रत्याशी से 1600 ज्यादा मत लेकर, उन्होंने किसी तरह से अपनी नाक बचा ली। लेकिन उनकी पार्टी सोनिया कांग्रेस 224 सदस्यीय विधानसभा में 78 स्थानों पर सिमट गई। मैदान में तीसरी पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने जेडीएस के नाम से चला रखी है। उनको आशा थी कि कांग्रेस और भाजपा के बीच की इस भयंकर लड़ाई में वह मोर्चा मार सकते हैं और अपने बेटे कुमारस्वामी को एक बार फिर मुख्यमंत्री के आसन तक पहुंचा सकते हैं। इसके लिए उन्होंने मायावती की बहुजन समाज पार्टी तक से हाथ मिलाया। अपने जाति के वोक्कालिंगा समुदाय से भावनात्मक अपीलें की। अपनी उमर तक की दुहाई दी, लेकिन उनका कुनबा भी महज 38 सीटों पर सिमट कर रह गया। अलबत्ता उनके जीवन की सिद्धारमैया को अपदस्थ करने की साध अवश्य पूरी हो गई। कर्नाटक का यह चुनाव कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा था। सबसे बड़ा मसला तो यही था कि इन चुनावों के कुछ महीने बाद ही देश की लोकसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं। केंद्र सरकार से मोदी को हर हालत और हर तरीके से अपदस्थ करने का ख्वाब देख रही सोनिया कांग्रेस और विपक्ष ने इस चुनाव को 2019 के चुनावों के लिए प्रयोगशाला बना रखा था।

उनको ऐसा लगता था कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है और इन चुनावों में यदि भाजपा को पराजित किया जा सका, तो आगामी लोकसभा चुनावों में विपक्षी एकता और जीत की संभावना बढ़ सकती है। लेकिन सोनिया कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष न तो नरेंद्र मोदी को समझ पाए और न ही कर्नाटक के लोगों के मनोविज्ञान को। मीडिया में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जरूर कम हो रही होगी, लेकिन धरातल पर मोदी की पकड़ और लोगों में उनके प्रति विश्वास अभी भी बरकरार है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह और भी अच्छी तरह देखा जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में आशातीत सफलता प्राप्त हुई। शहरी क्षेत्रों की हवा सूंघकर अनुमान लगाने वाला मीडिया कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों को सूंघ पाएगा, ऐसी किसी को आशा भी नहीं थी। इसलिए मीडिया और सोनिया कांग्रेस इस मोर्चे पर एक साथ ही असफल हुए। भारत की आम जनता का नरेंद्र मोदी के प्रति जो विश्वास बना हुआ है, उसका आधार केवल भावनाएं ही नहीं हैं, बल्कि मोदी सरकार ने जो अनेक योजनाएं पिछले चार सालों में जनधन, उज्जवला, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी अनेक योजनाएं प्रारंभ की हैं, उनका प्रत्यक्ष लाभ आम जनता तक पहुंच रहा है।

मोदी सरकार ने पहली बार ऐसे ठोस कदम उठाए हैं, जिससे नौकरशाही और बड़ी कंपनियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने के ठोस उपाय किए गए हैं। बहुत अरसे बाद किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में देश की कमान आई है, जो कम से कम पूरी शिद्दत से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का उपक्रम कर रहा है। पिछले कुछ दशकों से राजनीतिक अपराधी वर्ग और व्यवसायी वर्ग में एक नेटवर्क स्थापित हो गया था, जिसके कारण भ्रष्टाचार और अपराध जगत में बेतहाशा वृद्धि हुई थी। यह मामला इतना आगे तक बढ़ा कि विगत सरकार के अनेक बडे़ पदाधिकारी इन घोटालों में लिप्त पाए गए। मोदी ने इस सारे सिस्टम को बदलने का ईमानदारी से प्रयास किया है और इसी ईमानदारी के चलते सोनिया कांगे्रस और विपक्ष के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचा है। कर्नाटक के मतदाताओं ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार को उखाड़ने के इस अभियान में कर्नाटक भी मोदी के साथ है। हैरानी तो इस बात की है कि ये चुनाव जीतने के लिए सोनिया कांग्रेस ऐसे निम्न स्तर तक पहुंच गई, जिससे राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचने लगा था। सोनिया कांग्रेस सरकार ने लोगों की क्षेत्रीय भावनाओं को उभारने के लिए जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग ही नहीं की, बल्कि उसको प्राप्त करने के लिए अभियान भी शुरू कर दिया।

ब्रिटिश राज की तर्ज पर हिंदू समाज को खंडित करने की नीति पर चलते हुए, लिंगायत समुदाय को गैर हिंदू अल्पसंख्यक घोषित कर दिया। जिस कर्नाटक में भाषा को लेकर कभी विवाद नहीं हुआ और हिंदी के प्रति कन्नड़ लोगों में कभी संकीर्णता का भाव नहीं आया, उसी कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने हिंदी शाइन बोर्ड मिटाने का काम शुरू कर दिया। लेकिन कर्नाटक के लोगों की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने सोनिया कांग्रेस के इन राष्ट्र विरोधी कार्यों का जवाब उसे गहरी शिकस्त देकर दिया। कुछ विश्लेषक यह भी कहते हैं कि जब तक कर्नाटक के चुनाव क्षेत्र में राहुल गांधी नहीं उतरे थे और वहां की लड़ाई वहां के क्षेत्रीय नेता ही लड़ रहे थे, तब तक सोनिया कांग्रेस के जीतने की संभावना हो सकती थी। या कम से कम कांग्रेस और भाजपा में बराबर की लड़ाई हो सकती थी, लेकिन जब राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनावों की कमान अपने हाथों में ले ली और यह भी घोषणा कर दी कि वह 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद देश के प्रधानमंत्री बनने के लिए पूरी तरह से तैयार है। कहा जाता है कि उसी दिन कर्नाटक के चुनावों का निर्णय हो गया था और उसमें कांग्रेस की पराजय भी तय हो गई थी। सोनिया कांग्रेस ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाकर जो आशा की थी, वह कर्नाटक की जनता के निर्णय से टकराकर चूर-चूर हो गई है। देखना है कांग्रेस अगले चुनावों के लिए भी क्या राहुल गांधी को ही आगे रखेगी और यह भी कि क्या विपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के लिए तैयार होगा। इसका उत्तर तो भविष्य ही देगा, लेकिन फिलहाल कर्नाटक की जनता ने भाजपा के पक्ष में निर्णय देकर 2019 के चुनावों के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं।

ई-मेलःkuldeepagnihotri@gmail.com

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