नवाज का कबूलनामा!

By: May 15th, 2018 12:05 am

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अचानक जो खुलासे किए हैं, वे परोक्ष रूप से पाकिस्तान के कबूलनामे ही हैं। नवाज करीब 9 महीने पहले तक पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ही थे। मुंबई के 26/11 आतंकी हमले पर भारत सरकार ने जितने भी डोजियर पाकिस्तान की हुकूमत को सौंपे थे, नवाज उनके ब्योरों को बिंदु-दर-बिंदु जानते हैं। संभवतः कुछ संवेदनशील दस्तावेजों की प्रतिलिपियां भी उनके पास मौजूद होंगी! दरअसल 26/11 को लेकर जो भारत सरकार ने कहा था, नवाज शरीफ ने उस सच को सत्यापित किया है। आतंकवाद पर अमरीका, यूरोप, रूस, चीन समेत महत्त्वपूर्ण देश पाकिस्तान पर जो सवाल उठाते रहे हैं, उनसे भी नवाज वाकिफ हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को ‘आतंकी देश’ घोषित करने के मद्देनजर जो बहसें छिड़ी रही हैं, उनमें नवाज ने भी शिरकत की है और मौजूदा विमर्श को भी वह जानते हैं, लेकिन नवाज का ऐसा कबूलनामा अप्रत्यक्ष तौर पर भी सामने नहीं आया था। आतंकवाद और उसके खास संगठनों को पाकिस्तान ने ही पनाह दे रखी है, यह कबूलनामा नवाज ने अभी दुनिया के सामने पेश किया है। मुंबई के 26/11 आतंकी हमले को पाकिस्तान के ही आतंकियों ने अंजाम दिया था। उन्हें पाकिस्तान से ही भेजा गया था। भारत सरकार ने भी डोजियर में यही रुख रखा था कि पाकिस्तान से 10 आतंकवादी समंदर के रास्ते मुंबई में घुसे थे। उस आतंकी हमले में 166 मासूम लोग मारे गए और 300 से अधिक जख्मी हुए। उस हमले के ‘जिंदा आतंकी’ अजमल कसाब को फांसी पर लटकाया जा चुका है, लेकिन जिंदा रहते उसने भी जो खुलासे किए थे, उन्हें भी पाकिस्तान को सौंपा गया, लेकिन नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री रहते हुए भी उन्हें कबूल नहीं किया गया। अब नवाज ने जिन आतंकियों के नाम लिए हैं, उनकी सक्रियता स्वीकार की है, 26/11 हमले के साजिशकार भी बताया है। क्या रावलपिंडी की आतंकवादरोधी अदालत इनका संज्ञान लेगी और इस कबूलनामे को एक ठोस सबूत के तौर पर ग्रहण करेगी? क्या नवाज के इस कबूलनामे के आधार पर अब पाकिस्तान को ‘आतंकी देश’ घोषित नहीं कर देना चाहिए? पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पाकिस्तान में ‘समानांतर सरकारों’ (सेना, अदालत, आईएसआई बगैरह) पर भी अपनी ‘अस्वीकृति’ जताई है। उनका मानना है कि संवैधानिक प्रक्रिया से चुनी एक ही सरकार पाकिस्तान में होनी चाहिए। उसके बिना देश को सुचारू रूप से नहीं चलाया जा सकता। नवाज के कबूलनामे को कुछ भी कहें, नवाज की सियासी कुंठा या भड़ास मान लें, लेकिन यह बेहद गंभीर है, पाकिस्तान की भीतरी पोल खोलता है और इसके दूरगामी असर होंगे। पाकिस्तान की अदालतों में बीते 10 सालों के दौरान एक भी आतंकी को सजा नहीं दी गई। 26/11 हमले के संदर्भ में पाकिस्तान की संलिप्तता स्वीकार नहीं की गई। अमरीका के लगातार आग्रहों और दबावों के बावजूद आतंकियों और संगठनों के खिलाफ हुकूमत ने कोई कारगर कार्रवाई नहीं की। सीमा-पार आतंकवाद आज भी जारी है, लेकिन नवाज के कबूलनामे के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान झूठ नहीं बोल सकेगा और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर खुद को ‘आतंक-पीडि़त देश’ साबित करने की कोशिशें नहीं कर सकेगा। नवाज का कबूलनामा आगामी संसदीय चुनावों का भी बुनियादी मुद्दा बनेगा। बेशक नवाज आज वजीर-ए-आजम नहीं, तो क्या सांसद भी नहीं हैं। वह अपनी पार्टी के अध्यक्ष या पदाधिकारी भी नहीं हैं? पनामा पेपर्स लीक के जरिए बेनामी कंपनियों, बेनामी दौलत के जो आरोप उन पर और परिजनों पर लगे थे, अदालत ने उन्हें गुनाहगार पाया और उनका सार्वजनिक, सियासी करियर बर्बाद कर दिया, लिहाजा अब नवाज के पास खोने को बचा ही क्या है? ‘डॉन’ अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह कबूलनामा पेश किया है, जिसे कोई भी खारिज नहीं कर सकता है। पाकिस्तान के खोखलेपन की तस्वीर नवाज शरीफ ने दिखाई है। विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में बहुत कुछ कहा है नवाज ने। बेशक आतंकियों को उन्होंने ‘नान स्टेट एक्टर’ माना है, लेकिन सीमा-पार आतंकवाद को लेकर अब वह पश्चाताप की मुद्रा में हैं। नवाज का मकसद क्या रहा होगा, क्योंकि अब वह सियासत से बाहर हैं। पाकिस्तान के लोग उनके आह्वानों पर कितना यकीन करेंगे, फिलहाल नहीं कहा जा सकता, लेकिन कबूलनामे को झुठलाया भी नहीं जा सकता। इसी आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश किया जाए कि पाकिस्तान को अब ‘आतंकी देश’ घोषित किया जाए।

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