वक्त से वंचित

By: May 6th, 2018 12:05 am

भारत भूषण ‘शून्य’

हम हर चीज को बचा-बचाकर बना लेना चाहते हैं, मानो बचाने की यह प्रक्रिया ही हमें निर्वाण तक ले जाएगी। खुशी का समय या कि पारंपरिक शब्दों में कहें तो मांगलिक समय को भी भविष्य के लिए बचा लेना चाहते हैं जैसे अपनी प्रसन्नता को बचा लो, बाद में खुश हो लेंगे। समय की महत्ता पर इतने आख्यान और मीमांसाएं हमने रच डाली, लेकिन इसके सदुपयोग का कोई कारण हम नहीं समझ पाए। हमारे लिए आज को जीने का कोई मतलब नहीं, भविष्य की अलमारी में संभाल रखने का महत्त्व है। यही कारण है कि बड़ों के मुख से ऐसा बार-बार सुना जाता है कि इतना मत हंसो! रोना पड़ जाएगा। मानो हंसने और मस्ती करने को भी हम भीतर से नाजायज मान बैठे हैं। दूसरों से आंख बचाकर खाने की नसीहतें हमारी परंपरा रही हैं, मानो नजर लगने से हमारा सब कुछ लुट जाएगा।

वक्त ऐसा बच्चा नहीं कि आप इसको बचा-बचाकर बड़ा इसलिए करें कि यह आप के बुढ़ापे की लाठी बन सके। रेत की इस धार को सहेजने में हम जर्रा-जर्रा हो झर जाते हैं। जो इस पल की पुलक से आनंदित नहीं हुआ, वह आने वाले किसी कल की कलरव से आह्लादित नहीं हो सकता। जो भी घटित होता है, इस क्षण होता है और इस पुलक भरे पलों में हम नितांत अनभिज्ञ हैं। हमारे लिए अध्यात्म भी कल को संवारने का जरिया है। आज की बात पर बात करना हमें आता ही नहीं। नाना प्रकार की पूजा विधियों और अनेक देवताओं के आश्रय के बावजूद हम डरे, सहमे और हद दर्जे के भीरू हैं। जीवन को बंद मुट्ठी बनाए रखने से हमारी प्रज्ञा के द्वार भी नहीं खुलते। आने वाले कल को संवारने के फेर में हम सदियां लांघ आए, यह न हो सका। अब के तंतु को पकड़ें तो कल के वस्त्र को बुन सकें। अभी तो विगत के आंसुओं पर गीत रच रहे हैं या कल के सुनहरे भविष्य की कपोल कल्पनाओं में घिरे हैं। बचपन को अपाहिज कर जवानी में पहुंचते हैं। जवानी की दीवानगी कुछ करे, उससे पहले बुढ़ापे की ओर चल पड़ते हैं। जो हथेली में है, उसे पीने का वक्त नहीं, लेकिन जो आंखों में भरा है, उसे लपकने की अबाध उतावली है। उस कस्तूरी के लिए भागता वह हिरण जो अपने भीतर ही इसको संजोए है।

वक्त से वंचित होकर हम स्व वंचना के शिकार होंगे। अपने अस्तित्व के सत्व को पकड़कर ही जीवन सत्य तक पहुंचने की जांच आ सकती है। अभी तो हम वक्त के रेतीले ढेरों में भविष्य के रेत घरौंदे बनाने में जुटे हैं। अपनी अक्ल को वक्त के सिलवट्टे पर नहीं घिसें, अपने होने के जीवंत एहसास से सुवासित करें। आमीन।

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