कश्मीर के संघर्ष विराम में उभरा नायक

By: Jun 22nd, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

राष्ट्रीय राइफल के एक युवा जवान औरंगजेब को उस समय मार दिया गया जब वह मुसलमानों में सबसे ज्यादा मनाए जाने वाले त्योहार ईद के लिए बिना हथियारों के अपने घर आ रहा था। उसका उसके घर पर शिद्दत के साथ इंतजार हो रहा था, लेकिन 15 गोलियों से भूना गया उसका शरीर ही मिल पाया। इससे पहले मीडिया में उसके अपहरण की खबर आई थी। मेरे विचार के अनुसार यह सुंदर तथा युवा व्यक्ति मातृभूमि के साथ कश्मीर के गहरे ऐतिहासिक तथा भावनात्मक संबंधों को पुष्ट करते हुए इस राज्य का बेहतरीन प्रतीक तथा आइकॉन है…

ये औरंगजेब सचमुच ही लाजवाब हैं। कश्मीर के नरक को कोई राहत वाली खबर नहीं है। संघर्ष विराम अभी खत्म हुआ ही था कि उद्विग्नता के साथ बंदूकों की निर्बाध आवाजें आने लगीं। संघर्ष विराम वह समय था जब कश्मीर के भविष्य को आकार लेना था तथा इस पर चिंतन करना था। घाटी में आतंकवाद का उन्मूलन अब भी दूर का स्वप्न मात्र है। इस स्थिति में शांति वार्ता कभी भी परिणाम नहीं ला पाई क्योंकि लेन और देन के कठोर निर्णय के बिना मसले को सुलझाया नहीं जा सका। यही कारण है कि पाकिस्तान जब सीमा पर शांति की बहाली के लिए राजी हो जाता है, तो भी वह बहुतायत में उल्लंघन से अपने आप को रोक नहीं पाता है। इस चरण में कोई भी देश यह बर्दाश्त नहीं कर सकता। परिणामस्वरूप तथाकथित संघर्ष विराम के दौरान हत्याओं का आंकड़ा तीन गुणा बढ़ गया तथा आतंकवादी व सीमा पर हिंसा की घटनाएं भी बढ़ीं। यह तब हुआ जब सरकार ने घाटी में शांति की आस में आतंकवाद के खिलाफ अपना आपरेशन रोक दिया। संघर्ष विराम की अवधि के दौरान कुछ दिन पहले तक 30 लोग मारे जा चुके थे तथा कई घायल भी हुए। मेरे मत के अनुसार इस जुए का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी यह देख पाई कि इस राज्य में शांति की बहाली के लिए हमारे प्रयासों में कहीं भी कोई कमी नहीं है। लेकिन यहां भी यह दुखद है कि संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एक रिपोर्ट में कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर भारत को कटघरे में खड़ा किया गया है।

यह रिपोर्ट बिलकुल गलत है तथा सरकार ने इसके खिलाफ आपत्ति जता कर सही काम किया है। लेकिन देश के इस शांति प्रयास की बड़ी उपलब्धि इस अवधि के दौरान उभरे सेना व मीडिया के शांति समर्थक आइकन हैं। मेरी सोच के मुताबिक सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम था कश्मीर में देश-भक्ति का उभरना तथा देश के लिए प्यार जिसे सेना, विशेषकर सशस्त्र बलों में कश्मीरी युवा ने साबित किया। राष्ट्रीय राइफल के एक युवा जवान औरंगजेब को उस समय मार दिया गया जब वह मुसलमानों में सबसे ज्यादा मनाए जाने वाले त्योहार ईद के लिए बिना हथियारों के अपने घर आ रहा था। उसका उसके घर पर शिद्दत के साथ इंतजार हो रहा था, लेकिन 15 गोलियों से भूना गया उसका शरीर ही मिल पाया। इससे पहले मीडिया में उसके अपहरण की खबर आई थी। मेरे विचार के अनुसार यह सुंदर तथा युवा व्यक्ति मातृभूमि के साथ कश्मीर के गहरे ऐतिहासिक तथा भावनात्मक संबंधों को पुष्ट करते हुए इस राज्य का बेहतरीन प्रतीक तथा आइकॉन है। यह उस टीम का सदस्य था जिसने  कुख्यात आतंकवादियों का खात्मा किया था। उसके उम्रदराज पिता इस घटनाक्रम को एक चुनौती के रूप में ले रहे हैं तथा आतंकवादियों से वह बदला लेना चाहते हैं। उन्होंने भारत सरकार से अपील की है कि उनके बेटे के हत्यारों को 72 घंटे के भीतर खत्म कर दिया जाए। इस परिवार का एक और पुत्र सेना में है तथा अन्य दो भी सेना में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं।

औरंगजेब के पिता कश्मीर के लोगों से आग्रह कर रहे हैं कि हालांकि उनका पुत्र मारा जा चुका है, परंतु उन्हें सेना में जाने से रुकना नहीं चाहिए तथा सम्मान के साथ देश की सेवा करनी चाहिए। इस तरह की त्रासदी के आलोक में इस पूरे परिवार ने अविश्वसनीय वचनबद्धता तथा उच्च राष्ट्रभक्ति का प्रदर्शन किया है। इस अदम्य साहस वाले जवान के अंतिम संस्कार में हजारों कश्मीरियों का हुजूम उमड़ पड़ा। यह मिसाल कश्मीर में सेना व सरकार की कार्यशैली के प्रति जन-स्वीकृति का प्रतीक है तथा सरकार कश्मीरियों को रोजगार भी दे रही है। एक अन्य त्रासदी वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की आतंकवादियों द्वारा हत्या है। वह राइजिंग कश्मीर के संपादक थे। उनकी हत्या श्रीनगर में उस समय की गई जब वह अपने कार्यालय से वापस अपने घर जाने वाले थे। तीन बाइक सवार आतंकवादियों ने दिन-दहाड़े शहर में उनकी हत्या कर दी तथा घटना के बाद वे फरार हो गए। सीसीटीवी कैमरे में यह वारदात रिकार्ड हो गई, परंतु इसका कोई लाभ नहीं है। बुखारी जेहादियों के मामले में मध्य मार्ग अपनाए हुए थे तथा कश्मीर का कूटनीतिक समाधान चाहते थे। उनकी मृत्यु हमें दो सबक देती है। पहला, कश्मीर में वर्तमान में जो स्थितियां हैं, उन स्थितियों में किसी तरह की बातचीत प्रभावी सिद्ध होने वाली नहीं है तथा आतंकवादियों के खात्मे के लिए उनके खिलाफ सेना का आपरेशन जारी रखना होगा। दूसरा सबक यह है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था में शिथिलता है अन्यथा शहर के बीच में दिन-दहाड़े सुरक्षा गार्ड से लैस प्रमुख व्यक्ति की हत्या करना इतना आसान न होता। यह भी दुखद है कि किसी ने भी इस वारदात के दौरान उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। इन घटनाक्रमों से चार सबक उन लोगों के लिए निकल कर आते हैं जो कश्मीर के मामलों को देख रहे हैं। सबसे पहले औरंगजेब तथा उनके परिवार को सुरक्षा तथा सम्मान दिया जाना चाहिए। हमें इस परिवार की राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रफुल्लित करना चाहिए। दूसरे, शहरों के भीतर सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करना होगा तथा जिस तरह की लापरवाही बुखारी के मामले में बरती गई, उसे गंभीरता से लेना होगा। तीसरे, महत्त्वपूर्ण मामलों की जांच केंद्रीय एजेंसियों को करनी चाहिए क्योंकि राज्य पुलिस पर राजनेताओं के करीब होने के कारण असंख्य लोगों का विश्वास नहीं है।

चौथा सबक यह है कि औरंगजेब जैसे लोगों, जो कि सुरक्षा बलों में हैं, उन्हें सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाई जानी चाहिए तथा अवकाश के दिनों में भी उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए। कश्मीर पर बातचीत के दरवाजे जहां खुले रहेंगे, वहीं आतंकवाद से निपटने को कड़े कदम उठाने होंगे। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल को कहा था, ‘हम जिसके लिए लड़ रहे हैं, वह कश्मीर की घाटी है।’ इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जबकि हम अन्य राज्यों में लगभग सफल होते जा रहे हैं, यह घाटी ही है जहां बुद्धिमता व रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ निपटने की जरूरत है। अब वहां भाजपा व पीडीपी का गठबंधन टूट गया है और राज्य में राज्यपाल शासन लगा दिया गया है। आशा की जानी चाहिए कि नए राज्यपाल आतंकवाद का खात्मा करने व गतिरोध दूर करने में सफल होंगे।

 ई-मेल :singhnk7@gmail.com


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