केजरीवाल की विचित्र नेतृत्व शैली

By: Jun 29th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

केजरीवाल ने जो किया और जिस रास्ते पर वह चल रहे हैं, उसकी तर्कसंगत व्याख्या कोई नहीं कर सकता और कोई इसे न्यायोचित नहीं ठहरा सकता। उन्होंने पार्टी का चुनाव चिन्ह झाडू प्रयोग किया जिसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि इससे स्वच्छता अभियान के प्रति विशेष ध्यान नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही स्वच्छता अभियान के प्रतीक बन गए हैं क्योंकि उन्होंने ही इसकी शुरुआत की थी। अब यह अभियान देशभर में चल रहा है। इस अभियान को मोदी पहले ही हथिया चुके हैं। केजरीवाल ने कुछ नहीं किया है…

जब गांधी जी ने अपना सत्याग्रह व डांडी मार्च शुरू किया था, जो उनके नेतृत्व के अन्य हथियार थे, तो उनके पास राजनीति में जिस शैली का वह अनुसरण करने जा रहे थे, उसके लिए निश्चित सैद्धांतिक आधार थे। मिसाल के तौर पर गरीब आदमी की लंगोटी अथवा कम कपड़ों वाली वर्दी में उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत न केवल गर्म मौसम के अनुकूल थी, बल्कि यह आम आदमी तथा एक किसान के साथ उनकी आदर्शवादी सहचर भावना से भी सुसंगत थी।   उनकी अहिंसा की अवधारणा भी महात्मा बुद्ध में उनके विश्वास से उपजी थी जो कि हिंसक हथियार के बिना सत्य के लिए संघर्ष की पैरवी करती है। इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो किया और जिस रास्ते पर वह चल रहे हैं, उसकी तर्कसंगत व्याख्या कोई नहीं कर सकता और कोई इसे न्यायोचित नहीं ठहरा सकता। उन्होंने पार्टी का चुनाव चिन्ह झाडू प्रयोग किया जिसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि इससे स्वच्छता अभियान के प्रति विशेष ध्यान नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही स्वच्छता अभियान के प्रतीक बन गए हैं क्योंकि उन्होंने ही इसकी शुरुआत की थी। अब यह अभियान देशभर में चल रहा है। इस अभियान को मोदी पहले ही हथिया चुके हैं। केजरीवाल ने कुछ नहीं किया है। हाल ही में दिल्ली के लिए पानी की मांग को लेकर शुरू किया गया उनका आंदोलन समाप्त हो गया। आईएएस अधिकारियों को दबाव में लाने की कोशिश भी इस दौरान हुई। ये अधिकारी केजरीवाल के सरकारी आवास पर आधी रात को हुई मीटिंग में मुख्य सचिव के साथ धक्का-मुक्की की घटना से आंदोलित हो गए थे। केजरीवाल के आंदोलन के दौरान कमरे में एयर कंडीशनर की व्यवस्था थी, खाने की भी आपूर्ति हुई तथा सोफे का भी प्रबंध किया गया था।

इसे मिताहारी व कठिन प्रचारित किया गया, किंतु यह विफल हो गया और इसके खत्म होने पर केजरीवाल बंगलूर के लिए उपचार के वास्ते रवाना हो गए। उनके साथी, विशेषकर उपमुख्यमंत्री को भी अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा। यह उन अन्ना हजारे के शिष्यों की स्थिति है जो कई दिन तक बिना चिकित्सा सुविधा के व्रत करते हैं। एक हफ्ते के प्रदर्शन के दौरान भरपूर भोजन सामग्री तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की गई थी। इस तरह उनकी नेतृत्व शैली को मजाकिया ढंग से लिया जा रहा है, जिसका हासिल कुछ भी नहीं है। हालांकि चार मुख्यमंत्रियों ने उनके प्रदर्शन की सराहना की, किंतु वह कोई समाधान नहीं करवाए पाए, सिवाय इसके कि उनका प्रचार हो गया। अपनी पार्टी के नाम के साथ उन्होंने गांधी टोपी की नकल की। इसका क्या मतलब है? क्या वह गांधी के अनुयायी रहे हैं अथवा साधारण जीवन जीने वाले एक किसान के प्रतीक हैं? उन्होंने केवल यह दिखाया कि वह भिन्न हैं तथा कोई भी देख सकता है कि टोपी पहने लोग उनकी पार्टी से जुड़े हैं। उनके विचित्र नेतृत्व को समझने में समस्या यह है कि वह किसी स्वीकृत तथा तार्किक रूप से संगत मार्ग का अनुसरण नहीं करते हैं।

वह किसी के भी खिलाफ जिम्मेवारी की भावना के बिना बेहूदा टिप्पणियां करते हैं। अरुण जेटली, नितिन गडकरी तथा कई अन्य उनकी बेहूदा टिप्पणियों के शिकार हुए। जब उन पर प्रभावित लोगों ने मानहानि का केस चलाया, तो उन्होंने बिना किसी दोष की भावना व शर्म के माफी मांग ली। उनके बारे में यह मजाक बन गया है कि यहां तक कि न्यायाधीश भी उनके व्यवहार से परेशान हो जाते हैं। आईएएस अधिकारियों का मामला जब कोर्ट के सामने आया तो न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि क्या वह माफी मांगेंगे? इसके जवाब में उन्होंने इनकार कर दिया। न्यायाधीश ने उन पर एक सरसरी नजर दौड़ाई और कहा कि आप कई लोगों से पहले भी माफी मांग चुके हैं, इस बार क्यों नहीं? वह अपने स्टैंड पर आरूढ़ रहे। एक पूर्व अकाली मंत्री, जिन पर उन्होंने मादक पदार्थों की तस्करी का आरोप लगाया था, से माफी मांग लेने के मामले में उनकी पार्टी की पंजाब इकाई ने विद्रोह कर दिया। उनकी अच्छी किस्मत यह है कि न्यायाधीश उनके प्रति दयालु रहे हैं अन्यथा वह अब तक कई बार सलाखों के पीछे चले गए होते। दिल्ली के उपराज्यपाल के खिलाफ अपने नवीनतम आंदोलन के दौरान वह अपने तीन साथियों के साथ उनके कार्यालय में पहुंचे। उन्होंने वहां वेटिंग रूप पर उस समय कब्जा कर लिया जब उपराज्यपाल वहां पर नहीं थे। उन्होंने धरना शुरू कर दिया तथा उस स्थान को छोड़ने से इनकार कर दिया। क्या कोई व्यक्ति किसी के घर में अथवा किसी अधिकारी के कार्यालय में जाकर इस तरह वेटिंग रूम पर कब्जा जमा सकता है तथा उसे छोड़ने से इनकार कर सकता है? वह भी उस स्थिति में जब संबंधित अधिकारी उससे मिलने के लिए तैयार न हो। हाई कोर्ट ने उनसे ठीक ही सवाल किया कि उन्हें यह करने की इजाजत किसने व कैसे दी? कोर्ट उनकी बेदखली का आदेश दे सकता था, किंतु ऐसा नहीं किया गया। उनकी निरंतर चलने वाली झूठी आरोपबाजी तथा निरर्थक कोर्ट केस को लेकर मसले को गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिए था। वह कोर्ट तथा जनता का बहुमूल्य समय नष्ट करते रहे हैं। फिर भी उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसका परिणाम यह है कि सार्वजनिक जीवन तथा कार्य में अराजकता बढ़ रही है। दिल्ली की जनता को धरना सरकार तथा सनकी नेतृत्व को झेलना पड़ रहा है। नौ दिनों तक कोई सरकारी काम नहीं हुआ और अब मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्री इलाज करवाने चले गए हैं। आंदोलन का कोई सकारात्मक नतीजा भी सामने नहीं आया।

इस तरह देश की राजधानी में जहां चुस्त शासन व्यवस्था होनी चाहिए थी, वहां समय व धन की बर्बादी हो रही है। दिल्ली का भविष्य क्या होगा, इस पर सरकार तथा सभी राजनीतिक दलों को सोचना चाहिए। मेरा मानना है कि केजरीवाल के सनकी व्यवहार के बावजूद उनकी मतदाताओं में पैठ अभी भी बनी हुई है। यही कारण है कि हाल में पूर्वी दिल्ली में उपचुनाव में उन्होंने भाजपा को मात दी है। इन बस्तियों में सरकार पानी व बिजली की सप्लाई करती है। ऐसा लगता है केजरीवाल के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के बावजूद आने वाले चुनाव में उन्हें और ज्यादा सीटें मिलेंगी।  हालांकि हमारा मतदाता समझदार है, फिर भी मुझे आश्चर्य है कि जिस सनकी नेतृत्व को वह एक बार देख चुके हैं, उसे वे दोबारा कैसे चुन लेंगे? क्या एक बार ही इस तरह का नेतृत्व देख लेना काफी नहीं है?

 ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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