न होता मैं तो क्या होता

By: Jun 30th, 2018 12:05 am

बाबा हरदेव

जीवन में जो भी महान उतरता है वह तभी उतरना है जब मनुष्य नहीं होता, मगर इसका यह मतलब नहीं है कि तब मनुष्य सच में नहीं होता। मानो जब कहा जाता है कि मनुष्य नहीं होता, तो इसका अर्थ होता है कि केवल मनुष्य का जो मिथ्या व्यक्तित्व है, जो झूठा आवरण है वही नहीं होता। अध्यात्म की भाषा समझने में कई बार मुश्किल पैदा होती है, क्योंकि वह भाषा शब्दों का बड़ा मौलिक प्रयोग करती है, चुनांचे मनुष्य का जो गहरा केंद्र है, यह तो होगा ही क्योंकि यह तो परमात्मा ही है।

न था कुछ तो खुदा था कुछ न होता तो खुदा होता

डुबोया मुझको होने ने न होता मैं तो क्या होता।

स्वयं को मान लेने में परमात्मा विस्मरण समझ रहा है, मनुष्य जिसको अपना होना समझ रहा है, वास्तविकता में इसका होना नहीं है, यह तो केवल ऊपरी दिखावा है, यह मनुष्य का असली स्वभाव तो नहीं है। मनुष्य एक घर में पैदा हुआ, जब यह पैदा होता है, तो यह बिन किसी व्यक्तित्व के पैदा होता है, बिना किसी भाषा के पैदा होता है, यह न हिंदू होता है न मुसलमान न ईसाई न सिख, मनुष्य तो सिर्फ होता है। हिंदू , मुसलमान, ईसाई और सिख और भाषाएं तो ऊपर से सिखाई गई बातें हैं। संपूर्ण अवतार बाणी का भी फरमान हैः-

जम्यां जद सैं सुण तूं प्राणी कोई मजहब ईमान नहीं सी।

जम्यां जद सैं सुण तूं प्राणी गल जंजू किरपान नहीं सी।

चुनांचे मनुष्य पैदा होने के बाद बस ऊपरी बातें सीखते चला जाता है और ज्यों- ज्यों यह उम्र में बढ़ता है इसके चारों तरफ तक ढांचा निर्मित होता जाता है भाषा का, व्यवहार का, व्यक्तित्व का, राष्ट्र का, जाति का, आचरण का और तथाकथित धर्म का और इस तरह से मनुष्य इसी ढांचे को समझना शुरू कर देता है कि बस यह यही है, जैसे अगर कोई छोटी सी भी कंकड़ हमारी आंख में पड़ जाए, तो दिखना बंद हो जाता है, फिर हम हिमालय जैसे बड़े पर्वत को भी नहीं देख पाते, इसी प्रकार जब चेतना रूपी आंख में अहंकार रूपी पर्त जम जाती है, तो मनुष्य स्वयं के असल स्वरूप यानी विराट को भी नहीं देख पाता, जबकि सच तो यह है कि मनुष्य जिसको अभी समझ रहा है, इसका होना, इसी बात ने मनुष्य से इसका असली व्यक्तित्व ही (असली स्वभाव) छीन लिया है।

आपे गल विच फाहियां पा के सिर ते चुक्के भारे नें।

कहे अवतार एह दृष्टमान जो निरे भुलेखे सारे नें।।

अब यह मनुष्य बड़ा भाग्यशाली होता है, जिसका यह नकली व्यक्तित्व पूर्ण सद्गुरू द्वारा उतर जाता है, जो इसका असली स्वभाव है, सहज स्वभाव है जो जन्म से पहले भी मनुष्य के पास था,

प्रकट होना शुरू हो जाता है। चुनांचे इस नकली व्यक्तित्व के उतरने की प्रक्रिया का नाम ही नकद धर्म है, हजरत ईसा का भी फरमान है कि जो बचाएगा , इसका ही बचा रहेगा।

यानी यहां जो सब झूठ है इसके खोने की बात की गई है, मनुष्य के असल स्वभाव को खोने की बात नहीं है क्योंकि मनुष्य से ही वही कुछ छीना जा सकता है, जो इसका नहीं है, मनुष्य वही कुछ खो सकता है जो इसका नहीं है। जो इसका स्वभाव है इसको छीनने का कोई उपाय नहीं है।

मिटादे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे।

दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है।

 


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