माता मनसा देवी मंदिर

By: Jun 30th, 2018 12:10 am

ग्रंथों के मुताबिक मनसा मां की शादी जगत्कारू से हुई थी और इनके पुत्र का नाम आस्तिक था। माता मनसा को नागों के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। मनसा देवी के मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी. दूर शिवालिक पहाडि़यों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह जगह एक तरह से हिमालय पर्वत माला के दक्षिणी भाग पर पड़ती है…

हिंदू धर्म में अनेक देवी- देवताओं को पूजा जाता है, जिसमें से एक है मनसा माता। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां मनसा की शरण में आने वालों का कल्याण होता है। मां की भक्ति से अपार सुख मिलते हैं। ग्रंथों के मुताबिक मनसा मां की शादी जगत्कारू से हुई थी और इनके पुत्र का नाम आस्तिक था। माता मनसा को नागों के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। मनसा देवी के मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी. दूर शिवालिक पहाडि़यों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह जगह एक तरह से हिमालय पर्वत माला के दक्षिणी भाग पर पड़ती है। नवरात्र में मां के दरबार में लाखों की तादाद में श्रद्धालू आते हैं। यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।

मनसा मां के मंदिर की महिमा

इस मंदिर में देवी की दो मूर्तियां हैं। एक मूर्ति की पांच भुजाएं एवं तीन मुंह हैं। जबकि दूसरी मूर्ति की आठ भुजाएं हैं। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं कि मां मनसा शक्ति का ही एक रूप है जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी, जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलाई। नाम के अनुसार मनसा मां अपने भक्तों की मनसा (इच्छा) पूर्ण करने वाली हैं। मां के भक्त अपनी इच्छा पूर्ण कराने के लिए यहां आते हैं और पेड़ की शाखा पर एक पवित्र धागा बांधते हैं और जब उनकी इच्छा पूरी हो जाती है, तो दोबारा आकर मां को प्रणाम करके मां का आशीर्वाद लेते हैं और धागे को शाखा से खोलते हैं। कहा जाता है कि देवी मनसा का पूजन पहले निम्न वर्ग के लोग ही करते थे, परंतु धीरे-धीरे इनकी मान्यता भारत में फैल गई।

नागराज वासुकी की मां हैं मनसा

वैसे तो मनसा देवी को कई रूपों में पूजा जाता है। इन्हें कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी माना जाता है। 14वीं सदी के बाद इन्हें शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया। मां की उत्पति को लेकर कहा जाता है कि मनसा का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ।

विष की देवी – विष की देवी के रूप में इनकी पूजा बंगाल क्षेत्र में होती थी और अंत में शैव मुख्यधारा तथा हिंदू धर्म के ब्राह्मण परंपरा में इन्हें मान लिया गया। इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता ये नाम इस प्रकार हैं, जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।

कहां है मां का खूबसूरत मंदिर

इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर शिवालिक पहाडि़यों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। मंदिर से मां गंगा और हरिद्वार के समतल मैदान अच्छे से दिखते हैं। श्रद्धालू इस मंदिर तक केवल कार से पहुंच सकते हैं। यह कार यहां उड़नखटोला के नाम से प्रसिद्ध है। हरिद्वार शहर से पैदल आने वालों को करीब डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। हालांकि मंदिर से कुछ पहले कार या बाइक से भी पहुंचा जा सकता है।

मंदिर खुलने का समय

मंदिर सुबह 8 बजे खुलता है और शाम 5 बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। दोपहर 12 से 2 तक मंदिर बंद रहता है। मनसा देवी के अन्य मंदिर-  इस मंदिर के अलावा मां मनसा  देवी के मंदिर भारत में और भी जगह हैं। जैसे राजस्थान में अलवर और सीकर में, मनसा बारी कोलकाता में, पंचकुला हरियाणा में, बिहार के सीतामढ़ी में और दिल्ली के नरेला में। लोगों की माता मनसा देवी के मंदिर में अटूट श्रद्धा और आस्था है।

 


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