स्कूली खेलों को बढ़ावा कब ?

By: Jun 15th, 2018 12:06 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

पिछले कई दशकों से बंद पड़े ड्रिल के पीरियड को अभी तक सुचारू रूप से शुरू नहीं किया जा सका है। राज्य में स्कूली क्रीड़ा संगठन को मजबूत बनाकर ही हम राज्य के विद्यालयों में पढ़ रहे लाखों विद्यार्थियों की फिटनेस व उनमें से भविष्य के चैंपियन निकाल सकते हैं…

हिमाचल प्रदेश में अधिकतर किशोर राज्य के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसलिए उनकी फिटनेस तथा खेलों के प्रति रुझान समझने का जिम्मा भी विद्यालय का बन जाता है। शिक्षा केवल मन का विकास मात्र नहीं है। शारीरिक विकास के बिना शिक्षा बेमतलब है। इसलिए विद्यालय स्तर पर जनरल फिटनेस की क्रियाओं के साथ-साथ कई खेलों के माध्यम से विद्यार्थियों को फिट रखा जा सकता है। विद्यार्थियों के खेल कौशल में हुए विकास तथा प्रतिस्पर्धा को जगाने के लिए खंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक स्कूली क्रीड़ा संगठन के माध्यम से खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। हर विद्यालय प्रशासन कोशिश करता है कि अपने यहां खेल सुविधा के अनुसार वह खंड स्तर पर अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व करवाए, मगर राज्य के अधिकांश विद्यालय कुछ खेलों में ही खंड स्तर तक पहुंच पाते हैं। जहां एक खंड में तीन-चार दर्जन से भी अधिक विद्यालय होते हैं, मगर टीमें एक दर्जन से भी अधिक नहीं देखी गई हैं। ऐसे में दो-तिहाई विद्यालयों के विद्यार्थियों को साफ-साफ खेल प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जा रहा है। विद्यालय स्तर पर शारीरिक शिक्षक हर विद्यार्थी तक नहीं पहुंच पा रहा है। पिछले कई दशकों से बंद पड़े ड्रिल के पीरियड को अभी तक सुचारू रूप से शुरू नहीं किया जा सका है।

सवेरे की आम सभा में भी शारीरिक क्रियाओं की तरफ कम ही ध्यान दिया जाता है। वर्षों पूर्व जब विद्यालय विद्यार्थी के घर से तीन-चार किलोमीटर दूर थे और विद्यार्थियों को पैदल विद्यालय पहुंचना होता था। वैसे में सवेरे प्रक्षेपण में हिमाचल प्रदेश के रिकार्डों को देखें तो वह राष्ट्रीय स्तर के लिए क्वालिफाई से भी बहुत पिछड़े हुए हैं, मगर भाला प्रक्षेपण में कुल्लू की संजो देवी राष्ट्रीय विजेता है। इस धाविका ने भाला प्रक्षेपण में अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय का रिकार्ड बनाकर वर्ल्ड यूनिवर्सिटी खेलों के लिए क्वालिफाई भी किया था। राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं तथा राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतने वाली संजो देवी अगर थोड़ा समय एथलेटिक्स को और दे पाती, तो वह काफी आगे तक का सफर कर सकती थी।

इस समय राज्य में सीमा देवी यूथ आयु वर्ग में देश की स्टार धाविका है। एशियाई स्तर पर कांस्य पदक जीतने वाली इस धाविका ने राष्ट्रीय कीर्तिमान भी अपने नाम कर रखे हैं। इस समय यह धाविका आजकल जापान में हो रही कनिष्ठ एशियाई एथलेक्टिस प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है। राज्य में इस समय प्रशिक्षक केहर सिंह पटियाल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में साई खेल छात्रावास धर्मशाला में सीमा सहित हीना ठाकुर, मनीषा ठाकुर, संगीता व कनीजो आदि कई नाम जो भविष्य में अगर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रखती हैं, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर तक भारत को गौरव दिला सकती हैं। पुरुष वर्ग में इस समय सावन वरवाल, अंकेष चौधरी व दिनेश चौधरी सहित और भी कई कनिष्ठ धावक राज्य के विभिन्न जिलों में तैयारी कर रहे हैं। मंजु कुमारी, आशा कुमारी, रीता कुमारी, वनीता ठाकुर, कला देवी, प्रोमिला कुमारी, दिनेश कुमार, राकेश कुमार, प्रवीण कुमार, संजय, सुंदर, स्वर्गीय रितेश रतन डोगर आदि कई नाम हैं, जो अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय तथा कनिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स में हिमाचल के लिए पदक जीतकर भी गुमनामी में खो गए।

धन की कमी बाधा न बने, राज्य में स्कूली क्रीड़ा संगठन द्वारा आयोजित खंड व जिला स्तर के आयोजनों में तीन समय के खाने वाली मैस में उस स्थान के खेल प्रेमी सहायता करते देखे गए हैं। जो धन स्कूली क्रीड़ा संगठन के पास होता है, उस धन से खाने व अन्य खर्चों को किसी भी तरह पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए यह भी जरूरी हो जाता है कि राज्य सरकार खंड व जिला स्तर पर खेल आयोजन व टीमों को भेजने के लिए खेल शुल्क द्वारा इकट्ठे किए गए धन पर ही निर्भर न होकर इस स्तर पर उचित अनुदान भी देना इसी वर्ष से शुरू कर दे। शिक्षा विभाग व खेल संघों को चाहिए कि वे दोनों मिलकर राज्य स्तर के अधिक से अधिक निर्णायक तैयार करें। इसके लिए हर खेल महासंघ समय-समय पर राज्य खेल संघों को निर्णायकों की परीक्षा आयोजित करवाने के लिए सहायता प्रदान करता है। इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए निर्णायक ही खेल आयोजन में रैफरी व तकनीकी अधिकारी की भूमिका अदा करें। राज्य में स्कूली क्रीड़ा संगठन को मजबूत बनाकर ही हम राज्य के विद्यालयों में पढ़ रहे लाखों विद्यार्थियों की फिटनेस व उनमें से भविष्य के चैंपियन निकाल सकते हैं। इस सबके लिए राज्य शिक्षा व खेल विभाग के साथ-साथ हर खेल के संघ को आपस में ताल बिठाना होगा। इसके लिए सरकार का आदेश व निर्देश बहुत जरूरी है। खेलों को हर विद्यालय स्तर पर से ही बढ़ावा देने का मतलब होगा देश व प्रदेश के लिए फिट नागरिक तैयार करना व जो खेल में अति प्रतिभा संपन्न हैं, उनकी खोज कर एक दिन तिरंगे को सबसे ऊपर कर राष्ट्रीय धुन पूरे विश्व को सुनाना भी है।


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