एक अर्थहीन अविश्वास प्रस्ताव

By: Jul 27th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

अगर कांग्रेस यह जानना चाहती थी कि उसके भावी सहयोगी कौन-कौन हो सकते हैं तथा 2019 में उसकी कितनी संभावनाएं हैं, तो वह इसके लिए बेहतर नियोजन व समन्वय कर सकती थी। सदन में पूरी की पूरी चर्चा सीधे राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी के बीच का मसला बनकर रह गई।  यह एक असमान चर्चा थी तथा राहुल गांधी का मोदी जैसे प्रखर वक्ता व रणनीतिकार से मुकाबला नहीं बन पा रहा था। राहुल ने अपने भाषण में हालांकि अनेक मसले उठाए…

एनडीए के 325 वोट की तुलना में सामूहिक विपक्ष का 126 वोट प्राप्त करना मतदाताओं को 2019 का संदेश देने के लिए काफी होना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव ने किस उद्देश्य को पूरा किया है, इस संबंध में कोई भी व्यक्ति राजनीतिक चिंतकों को संतुष्ट नहीं कर पा रहा है। यही कारण है कि मोदी तथा उनके सहयोगी भी विपक्ष से इस अविश्वास का कारण पूछ रहे हैं। एक उत्तर जो इस समय मिल रहा है, वह है नरेंद्र मोदी के देशभर में उस अभियान को रोकना जिसके जरिए वे एक के बाद एक राज्य में विजय हासिल करते जा रहे हैं। इस तरह के प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार की शक्ति का परीक्षण करना है, विपक्ष यह जानना चाहता है कि क्या सरकार ने बहुमत खो दिया है अथवा ऐसा हो जाने की स्थिति में सरकार को हटा देना ही इसका लक्ष्य लगता है। संविधान में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। जब तक विपक्ष अपना बहुमत साबित नहीं कर देता तथा सरकार किसी गंभीर कारण के चलते विफल नहीं हो जाती, तब तक मोदी को वह काम करने से कैसे रोक सकता है। मात्र एक प्रावधान जिसका उपयोग किया जा सकता है तथा जिसका प्रयोग होता रहा है, वह है संविधान का अनुच्छेद नंबर 75, जिसमें कहा गया है कि मंत्रियों की परिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी। सरकार तब तक ही अपने पद पर रह सकती है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का आशीर्वाद प्राप्त हो। सरकार के खिलाफ प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा के 50 सदस्यों की ओर से पहल की जानी चाहिए। यह प्रस्ताव तेलगू देशम की ओर से लाया गया तथा संसद में इसका नेतृत्व कांग्रेस ने किया।

अगर कांग्रेस यह जानना चाहती थी कि उसके भावी सहयोगी कौन-कौन हो सकते हैं तथा 2019 में उसकी कितनी संभावनाएं हैं, तो वह इसके लिए बेहतर नियोजन व समन्वय कर सकती थी। सदन में पूरी की पूरी चर्चा सीधे राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी के बीच का मसला बनकर रह गई।  यह एक असमान चर्चा थी तथा राहुल गांधी का मोदी जैसे मास्टर वक्ता व रणनीतिकार से मुकाबला नहीं बन पा रहा था। राहुल गांधी ने अपने भाषण में जहां हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए आने का मोदी का वादा अधूरा रहने का मसला उठाया, वहीं उन्होंने जीएसटी से हो रही परेशानियों का भी उल्लेख किया। इसके अलावा उन्होंने राफेल विमान सौदे को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगाए तथा उल्लेख किया कि फ्रांस के राष्ट्रपति से उनकी मुलाकात के दौरान उन्होंने यह स्वीकार किया था कि सौदे को गोपनीय बनाए रखने संबंधी कोई करार नहीं हुआ है। हालांकि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने तुरंत करार से जुड़े दस्तावेज सदन में लहराते हुए इसका खंडन किया, साथ ही फ्रांसीसी राष्ट्रपति की ओर से भी राहुल के बयान का खंडन करते हुए इसे एक संवेदनशील करार व मसला बताया गया। राहुल गांधी ने अपना भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर दौड़कर उन्हें गले लगाकर पूरा किया, जबकि मोदी ने आनाकानी के साथ उन्हें गले लगाया। राहुल गांधी के इस कारनामे को मीडिया के एक वर्ग में बचकानी हरकत कहा गया तथा इस विषय पर मीडिया में व्यापक चर्चा हुई।

इसको लेकर मीडिया में हेडलाइन चली तथा इसे चर्चा का विवेकहीन अंत माना गया। प्रस्ताव पर चर्चा का स्तर भी कम आंका गया तथा राहुल ने जो कुछ कहा, उसके पक्ष में वह प्रभावशाली सबूत पेश नहीं कर पाए। वह अपने तथ्यों को तर्कसंगत नहीं सिद्ध कर पाए। दूसरी ओर मोदी लंबे समय तक बोले तथा उन्होंने जो कुछ कहा, उसके भविष्य की राजनीति के कुछ निहितार्थ हैं। मिसाल के तौर पर उन्होंने क्षेत्रीय दलों को अपने हमले का टारगेट नहीं बनाया तथा पूरे समय कांग्रेस को ही घेरते रहे। उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए इतिहास की घटनाओं को याद करवाया तथा यह प्रमाणित करने की कोशिश की कि कांग्रेस एक विश्वसनीय साथी नहीं है। कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्थिति का विवरण देते हुए उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कांग्रेस ने देवेगौड़ा तथा चंद्रशेखर के साथ भी धोखा किया। कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को जो धोखा दिया, उसका उल्लेख करना भी मोदी नहीं भूले। वह कांग्रेस को अलग-थलग करने की कोशिश करते दिखे तथा ममता, माया व महबूबा का उन्होंने उल्लेख तक नहीं किया। ऐसा लगा जैसे उन्होंने इन तीनों के लिए समझौते के दरवाजे खुले रखे हुए हैं तथा कांगे्रस को वह निरंतर निशाना बनाते रहे। मोदी को मिले समय का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया तथा जिस मीडिया की मोदी से नहीं भी बनती है, उसने भी उन्हें पूरी कवरेज दी। हालांकि मीडिया ने राहुल के प्रदर्शन को कुछ हद तक सराहा भी, इसके बावजूद इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। खासकर उस स्थिति में जबकि उन्हें विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताया जा रहा है। राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी के गले मिलकर नफरत को प्यार में बदलने की कोशिश भी की, परंतु भाजपा इसे गले मिलने के बजाय गले पड़ने के रूप में प्रचारित कर रही है।

कांग्रेस के लिए यह लज्जाजनक स्थिति होगी अगर भाजपा विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लेकर आती है जैसी कि सत्ता पक्ष की ओर से आवाजें भी उठ रही हैं। अविश्वास प्रस्ताव पर चली बहस 12 घंटे में खत्म हुई जिसमें 451 वोट पड़े। इनमें से यूपीए के 126 के मुकाबले एनडीए को 325 वोट पड़े। यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यूपीए को किसने छोड़ा क्योंकि उसके सदस्यों की संख्या सदन में 144 थी। इसके विपरीत एनडीए के 314 सदस्य थे, परंतु उसे 325 वोट मिले। स्पष्ट है कि क्रॉस वोटिंग का फायदा एनडीए ही ले गया। क्या यह वही नंबर हैं जिसकी घोषणा सोनिया गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने से पहले गर्व के साथ की थी, ‘हां, हमारे पास नंबर हैं।’

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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