कब रुकेगा प्रतिभा का पलायन

By: Jul 13th, 2018 12:05 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

हिमाचल खेल विभाग कब अपने खिलाडि़यों के जायज हक के लिए इनाम बांट समारोह का आयोजन कर उन्हें सम्मानित करने जा रहा है। राज्य के कई कनिष्ठ खिलाड़ी जो भविष्य के स्टार पदक विजेता हो सकते हैं, राज्य में सही खेल वातावरण न होने के कारण प्रदेश से पलायन कर सेना व अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं…

हिमाचल की माटी खिलाडि़यों की उम्दा पौध तैयार करती है, लेकिन इस पौधे को फूलने-फलने का माहौल नहीं दे पाती है। पड़ोसी राज्यों व केंद्रीय विभागों में सम्मानजनक नौकरी व बहुत अच्छी प्रशिक्षण सुविधा के कारण हमारे खिलाडि़यों को मजबूरन अपने प्रदेश से पलायन करना पड़ रहा है। प्रारंभिक स्तर पर अपने खिलाडि़यों की खोज तो हिमाचल अब कर रहा है, मगर राज्य में खेल संस्कृति व खेल ज्ञान के अभाव में उन खिलाडि़यों के पदक व शोहरत बेगाने बटोरते हैं। हिमाचल की कई संतानें हैं, जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी चमक से सबको समोहित कर चुकी हैं और वर्तमान में आज भी कई हिमाचली देश के स्टार खिलाड़ी हैं। ओलंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाली हाकी टीम के कप्तान पद्मश्री चरणजीत सिंह की बात हो या रजत पदक विजेता ओलंपियन शूटर विजय कुमार हो, इनकी तैयारी में हिमाचल कहीं नजर नहीं आता है। पद्मश्री चरणजीत सिंह को तो बाद में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का खेल निदेशक बना दिया था, मगर विजय कुमार सेना से सेवानिवृत्ति के दो वर्ष बाद भी राज्य में नौकरी की राह देख रहा है। ओलंपियन होना ही अपने में गर्व की बात है, मगर ओलंपियन अनंत राम, मोहिंदर लाल, बीएस थापा, सकलान दोरजे को राज्य में पहचान तक नहीं है।

ओलंपियन दीपक ठाकुर जैसे तेज-तर्रार फारवर्ड हिमाचली सपूत हैं, मगर उसकी प्रशिक्षण तैयारी भी पड़ोसी करवाते हैं और उसे अर्जुन अवार्ड मिलने की सिफारिश भी पंजाब को करनी पड़ी थी। ऐसे में हिमाचल का खेल अमला क्या कर रहा था? सीता गोसाई, समरेश जंग व सोनिया राणा जैसे कई नाम हैं, जो खेल जगत में शीर्ष पर चमके हैं, मगर उनके साथ हिमाचल का नाम नहीं है। हिमाचल सरकार राज्य में खेल वातावरण बनाने में कब पहल करेगी? खिलाडि़यों की सुविधा के लिए बजट में धन का रोना होता है, मगर मनोरंजन के लिए आयोजित होने वाली पैराग्लाइडिंग व फर्जी कुश्ती पर करोड़ों लुटाने के लिए राज्य सरकार तैयार रहती है। 21वें राष्ट्रमंडल खेल-2018 में अंजुम मोदगिल ने शूटिंग में रजत पदक तथा विकास ठाकुर ने भारोत्तोलक में कांस्य पदक जीतकर देश की पदक तालिका को चमकाया है। लगभग सभी राज्यों ने अपने पदक विजेता स्टार खिलाडि़यों को नकद इनाम दे दिया है, मगर हिमाचल में अभी तक कोई बात नहीं हो रही है। 2012 के बाद अभी तक राज्य में किसी भी खिलाड़ी को परशुराम अवार्ड के काबिल नहीं समझा है।

हिमाचल खेल विभाग कब अपने खिलाडि़यों के जायज हक के लिए इनाम बांट समारोह का आयोजन कर उन्हें सम्मानित करने जा रहा है। राज्य के कई कनिष्ठ खिलाड़ी जो भविष्य के स्टार पदक विजेता हो सकते हैं, राज्य में सही खेल वातावरण न होने के कारण प्रदेश से पलायन कर सेना व अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं। खेल में प्रतिभावान खिलाड़ी हजारों में नहीं लाखों में कहीं एक मिलता है। अगर उसे भी प्रदेश नहीं संभाल पा रहा है तो फिर राज्य में प्रतिभावान खिलाड़ी किसके भरोसे अपना भविष्य सुरक्षित समझेंगे। अधिकतर राज्यों ने अपने यहां उच्चकोटि के प्रशिक्षकों को अनुबंधित कर खेल संस्थान व अकादमियां शुरू की हैं और हिमाचल में उन लोगों को प्रशिक्षक नियुक्त करने का नियम बना दिया है, जो मात्र 42 दिनों के कोर्स पर बिना खेल पृष्ठभूमि के प्रशिक्षक बन गए हैं, जबकि राज्य में कई दर्जन एनआईएस एक वर्ष का प्रशिक्षण व शिक्षण कोर्स पास किए प्रशिक्षक बेकार बैठे नौकरी का इंतजार कर रहे हैं। नाममात्र के प्रशिक्षक के पास प्रशिक्षण प्राप्त करने से भी खिलाड़ी पलायन को मजबूर हो रहा है। राज्य में दो खेल छात्रावास ऊना व बिलासपुर में चलाए जा रहे हैं, मगर दोनों जगह स्तरीय प्ले फील्ड ही नहीं है। हां, हाकी के लिए ऊना में एस्ट्रोटर्फ बिछा है, मगर ऊना खेल छात्रावास में हाकी खेल ही नहीं है। इन खेल छात्रावासों में खिलाडि़यों का प्रदर्शन कबड्डी को छोड़कर अन्य खेलों में निम्न ही रहा है। अच्छा होता अगर इन खेल छात्रावासों में प्ले फील्ड व स्तरीय प्रशिक्षकों को नियुक्त कर अच्छा निरीक्षण वातावरण बनाकर भविष्य के विजेता खिलाड़ी निकाले जाते। राज्य में खेल आरक्षण तो बना दिया है, मगर यह बहुत ही दोषपूर्ण है। खेल आरक्षण से उन खिलाडि़यों को अधिकतर नौकरी मिल रही है, जो नौकरी लगने के बाद कभी खेल मैदान आते ही नहीं हैं, जो खेल ओलंपिक खेलों में नहीं हैं, उन खेलों के खिलाडि़यों को नौकरी में आरक्षण के लिए नए नियम बनाने होंगे, क्योंकि यहां पर प्रतिस्पर्धा बहुत ही कम होने के कारण वे खिलाड़ी राष्ट्र स्तर पर पदक जीत लेते हैं, जो ओलंपिक खेलों में होने वाली खेलों में जिला स्तर की टीम में भी अपना स्थान नहीं बना पाते हैं। कनिष्ठ राष्ट्रीय पदक विजेताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें राज्य में सभी प्रशिक्षण सुविधाएं तथा सरकारी नौकरी उनकी खेल मैरिट के अनुसार आरक्षित है, तभी खेल में आगे उभर सकते हैं और खिलाड़ी पलायन से बच सकते हैं। इससे हिमाचल का नाम भी रह सकता है। उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर पड़ोसी राज्य तो जश्न मनाएं, मगर हिमाचल को पता ही न चले। व्यक्तिगत उपलब्धियों के ताज पहनने वाले खिलाडि़यों के साथ हिमाचल सरकार को सम्मानजनक व्यवहार करते हुए उनके परिचय व प्रश्रय का पूरा-पूरा प्रबंध करना होगा, तभी प्रतिभा पलायन रुकेगा।


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