लाहुल-स्पीति को मालामाल करेगा सेब

By: Jul 18th, 2018 12:05 am

 केलांग —बर्फीले रेगिस्तान को जल्द सेब नई पहचान दिलाएगा। लाहुल-स्पीति में मटर-आलू के बाद सेब की फसल यहां के बागबानों को मालामाल करेगी। सार दर साल लाहुल में जहां सेब की फसल का प्रचलन बढ़ रहा है, वहीं आज से करीब पांच साल पहले जहां लाहुल में करीब 500 हेक्टेयर भूमि पर ही सेब के बागीचे थे, वहीं आज 900 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बागीचे तैयार किए गए हैं। कबायलियों में सेब की खेती के प्रति बढ़ा रुझान इन आंकड़ों की पुष्टि करता है। हालांकि बागबानी विभाग के प्रयासों को भी लाहुल में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसने एक दशक पहले यहां के लोगों को सेब की फसल के प्रति जागरूक किया और लाहुल में सेब के बागीचे लगवाने शुरू किए। ऐसे में अब लाहुल-स्पीति के लोगों के लिए आलू-मटर के बाद सेब ऐसा विकल्प बन कर उभरा है, जिसके माध्यम से लाहुल के बागबान यहां लाखों रुपए कमा रहे हैं। लाहुल के सेब की डिमांड मंडियों में भी अब धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि लाहुल की किस्मत बदलने को अब यहां का सेब तैयार है। बागबानी विभाग के अधिकारियों की मानें तो जिला में बागबान अरली वैरायटी का सेब लगा रहे हैं। बागबान मानते हैं कि यह सेब जल्द तैयार हो जाता है और इसके मंडियों में दाम भी अच्छे मिल जाते हैं। लंबे समय तक ताजा रहने वाले लाहुली सेब स्वाद के साथ पौष्टिकता में भी अव्वल दर्जे का है। शीत मरुस्थल लाहुल में पहले जहां 500 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बागीचे थे, वहीं अब लाहुल के 900 हेक्टेयर पर सेब के बागीचे तैयार हो चुके हैं। जिला की पट्टन घाटी में सेब सबसे ज्यादा तैयार किया जाता है। बागबान सोमदेव, दिनेश कुमार व राजीव ने बताया कि लाहुल का सेब मंडियों में अक्तूबर माह के पहले सप्ताह में आता है। सेब उत्पादकों को इसका उम्दा भाव मिला है। बागबानी विभाग के उपनिदेशक सोनम अंगरूप ने बताया कि लाहुल के सेब को कोल्ड स्टोर में रखने की अधिक जरूरत नहीं रहती है।

स्पीति में भी फलों से झुकने लगीं डालियां

जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति के किसानों की मेहनत का ही नतीजा है कि बर्फीले रेगिस्तान में सेब उत्पादन का सपना साकार हो पाया है। बात यहां स्पीति उपमंडल की करें तो यहां सेब के स्पर एवं स्टैंडर्ड वैरायटी के 10 हजार पौधे रोपित किए गए हैं। इनमें चार हजार पौधे बागबानी विभाग ने अनुदान पर बागबानों को आबंटित किए हैं। इसके अलावा अन्य कई स्रोतों से भी बागबानों ने उन्नत किस्म के पौधे प्राप्त किए। यही वजह है कि ठंडे पठार में बागबानी क्षेत्र का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। ड्रिप इरिगेशन यानि बूंद-बूंद पानी से सींचे गए पौधे फलों से कुछ इस तरह से लदे हैं कि डालियां भी झुकने लगी हैं। ताबो, लरी, पोह, हुरलिंग व गियू सहित अनेक क्षेत्रों से निकलने वाले सेब ने देश के कई राज्यों के सेब को मंडियों में जबरदस्त टक्कर दी है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App