शिक्षा व खेल विभाग में समन्वय जरूरी

By: Jul 6th, 2018 12:05 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

खेलों के लिए खेल संविधान धन का प्रावधान खेल विभाग के पास है, खिलाड़ी विद्यार्थी राज्य शिक्षा विभाग के विद्यालयों में है तथा खेलों की मान्यता प्राप्त खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन व उनके नियमों का जिम्मा खेल संघों पर है। इसलिए प्रदेश में इन तीनों संस्थाओं का आपस में समन्वय होना चाहिए…

हिमाचल प्रदेश में खेल स्तर को ऊपर उठाने के लिए पिछले दो दशकों में जहां स्तरीय प्ले फील्ड लगभग हर खेल को राज्य के अधिकतर जिलों में मिली है, वहीं पर खेल परिणामों में उस तरह की ऊंचाई अभी तक नहीं  देखी जा सकी है। किसी भी राज्य में खेलों के बढ़ते स्तर को मापने के लिए उसके खिलाडि़यों के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता प्रदर्शन का सही पैमाना होता है। हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी अभी तक इक्का-दुक्का पदक विजेता राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर इस स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन देखना है, तो हमें राज्य के विद्यालयों जहां पर प्रदेश के लाखों नौनिहाल शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहां पर खेल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा व खेल विभाग में समन्वय की आज के समय में बहुत जरूरत है। सत्तर के दशक में केंद्र सरकार ने कैच दैमयंग नामक योजना देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए चलाई थी। भारत के ग्रामीण बहुल होने के कारण इस योजना के अंतर्गत अंडर-16 वर्ष आयु वर्ग के बालकों व बालिकाओं के लिए जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न खेलों की प्रतियोगिताएं करवा कर इनमें से प्रतिभा खोज की जाती थी। हिमाचल प्रदेश में भी यह योजना पिछले दशक तक चलती रही है। राज्य का खेल विभाग बनने से पहले शिक्षा विभाग ही राज्य में खेलों को देखता था।

1983 में जब राज्य में खेल विभाग बनाया गया, तो खेलों के उत्थान का जिम्मा राज्य खेल विभाग का हो गया, मगर खिलाड़ी राज्य के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों के कारण कैच दैमयंग योजना शिक्षा व खेल विभाग में समन्वय न होने के कारण ठीक ढंग से लागू नहीं की जा सकी। राज्य शिक्षा विभाग अपने विद्यार्थी खिलाडि़यों के लिए स्वयं अंडर-14 वर्ष व 17 वर्ष आयु वर्ग के खेल प्रतियोगिताएं खंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आयोजित करवाता है। खेल विभाग की अंडर-16 आयु वर्ग की खेलों में दोयम दर्जे के खिलाड़ी ही भाग ले पाते थे, क्योंकि कई बार ये खेलें साथ-साथ होने के कारण खिलाड़ी विद्यार्थी इतना समय दोनों एक जैसी खेल प्रतियोगिताओं के लिए नहीं दे पाते थे। बाद में इस केंद्र की योजना को पायका का नाम दिया गया, उसके बाद राजीव गांधी खेल योजना भी कहा गया। वर्तमान सरकार आते-आते इसका नाम राष्ट्रीय खेल योजना हो गया और पिछले दो वर्षों से अब यह योजना बंद ही कर दी गई है। खेलों को ऊपर उठाने के लिए शिक्षा व खेल विभाग के साथ-साथ खेल संघों का तालमेल भी बहुत जरूरी है, क्योंकि देश में खेलों के लिए नियम, प्रचार-प्रसार व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक खेल प्रतियोगिता व उसमें प्रतिनिधित्व के लिए तो उस खेल का संघ ही उत्तरदायी है।

विभिन्न खेल संघ भी अंडर-14, 16, 18 वर्ष व 20 वर्ष आयु वर्ग के लिए जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक खेल प्रतियोगिताएं हर वर्ष आयोजित करवाते हैं। अंडर-18 वर्ष आयु वर्ग के लिए तो यूथ एशिया व यूथ ओलंपिक तक की खेल प्रतियोगिताएं विश्व स्तर तक आयोजित हो रही हैं। अंडर-20 वर्ष आयु वर्ग में भी एशियाई व विश्व स्तर पर खेल प्रतियोगिताएं आयोजित हो रही हैं, इसलिए खेलों के उत्थान के लिए बनने वाली योजनाओं में अब खेल संघों के साथ भी समन्वय बेहद जरूरी हो जाता है। खेलों के लिए खेल संविधान धन का प्रावधान खेल विभाग के पास है, खिलाड़ी विद्यार्थी राज्य शिक्षा विभाग के विद्यालयों में है तथा खेलों की मान्यता प्राप्त खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन व उनके नियमों का जिम्मा खेल संघों पर है। इसलिए प्रदेश में इन तीनों संस्थाओं का आपस में समन्वय जल्द ही हो जाना चाहिए। इस पहाड़ी प्रदेश में खेल प्रशिक्षक के लिए जलवायु बेहद उपयुक्त है। इस प्रदेश की संतानों ने ओलंपिक तक पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का परिचय दे दिया है।

राज्य के विद्यालयों में पढ़ रहे अधिकांश खेल प्रतिभा के धनी खिलाड़ी विद्यार्थियों को खेल विभाग के ट्रेंड प्रशिक्षकों से खेल गुट अपने शैशव काल में ही मिल जाएं, जो धन व खेल सुविधा है उसका उपयोग भी पात्र खिलाडि़यों को मिले तथा खेल संघ भी शिक्षा व खेल विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर अपनी खेल प्रतियोगिताएं उस समय करे, जब खिलाड़ी विद्यार्थियों की परीक्षा व दूसरे जरूरी शिक्षण कार्य न हों। शिक्षा विभाग के पास अपने यहां लगभग हर विद्यालय में शारीरिक शिक्षा का शिक्षक है। खेल सुविधा के अनुसार उस खेल को जानने वाले शिक्षक की नियुक्ति वहां हो तथा शारीरक शिक्षकों को खेल विभाग व खेल संघ समय-समय पर प्रवीणता कोर्स करवाए, ताकि नवीन तकनीक व नियमों से शिक्षक का परिचय होता रहे। हिमाचल में इन तीनों खेल व शिक्षा विभाग तथा खेल संघों में समय रहते समन्वय जरूरी है, ताकि राज्य में खेलों को गति मिल सके।


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