हिमाचली पुरुषार्थ : नए -नए आइडिया के लिए जाने जाते हैं प्रो. खोसला

By: Jul 4th, 2018 12:07 am

 प्रो. खोसला ने देश में वानिकी शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए और हिमाचल प्रदेश विवि में वानिकी विषय में बीएससी, एमएससी व पीएचडी के कोर्स आरंभ करवाए। वहीं, सोलन के नौणी में डा. वाईएस परमार बागबानी एवं वानिकी (यूएचएफ) विवि की स्थापना में भी उनका अहम योगदान रहा …

अपने मिशन के लिए समर्पित शिक्षाविद व उद्यमी- प्रो. प्रेम कुमार खोसला के 43 वर्षों से अधिक के करियर में कई पहलू हैं। जिस उम्र में लोग सक्रिय कार्यों से रिटायर होकर सारा समय अपने घर में बिताना चाहते हैं, उस उम्र में प्रो. प्रेम कुमार खोसला ने कुछ ऐसा कर दिखाया है जो कि लोगों के लिए एक मिसाल है। 18 फरवरी, 1940 को जिला लुधियाना (पंजाब) समराला गांव में पैदा हुए प्रो. प्रेम कुमार खोसला ने लुधियाना के आर्य हाई स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। इसके पश्चात चंडीगढ़ के पंजाब विवि में बॉटनी से स्नातक स्तर की पढ़ाई की और डाक्टरेट की डिग्री भी ली। प्रो. खोसला न केवल स्नातक स्तर बल्कि स्नातकोत्तर स्तर पर भी गोल्ड मेडलिस्ट रहे। उन्होंने पंजाब विवि में ही अध्यापक के रूप में कार्य करना आरंभ कर दिया और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अपनी पोस्ट डाक्टरेट पूरी की।

प्रो. खोसला ने देश में वानिकी शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए और हिमाचल प्रदेश विवि में वानिकी विषय में बीएससी, एमएससी व पीएचडी के कोर्स आरंभ करवाए। वहीं, सोलन के नौणी में डा. वाईएस परमार बागबानी एवं वानिकी (यूएचएफ) विवि की स्थापना में भी उनका अहम योगदान रहा। नौणी विवि में कई अहम पदों पर रहने के बाद उन्हें हिमाचल प्रदेश कृषि विवि पालमपुर के कुलपति का कार्यभार सौंपा गया। इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में सरकार की बायोटेक नीति तैयार करने और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को विकसित करने में भी अहम भूमिका निभाई। प्रो. खोसला ने इंडियन सोसायटी ऑफ ट्री साइंटिस्ट की भी स्थापना की। वर्ष 2004 में हिमाचल प्रदेश कृषि विवि पालमपुर से बतौर कुलपति व हिमाचल प्रदेश सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार के पद से सेवानिवृत्त हुए प्रो. खोसला के मन में कुछ उथल-पुथल थी। उनका मिशन था कि वह किस तरह हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण व अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में रहने वाले युवाओं को गुणवत्तापूर्ण व सस्ती शिक्षा उपलब्ध करवाएं। इस मिशन को लेकर उन्होंने वर्ष 2005 में एक नॉन प्रोफिटेबल संगठन शूलिनी इंस्टीच्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज एंड मैनेजमेंट (सिल्ब) की स्थापना की। इस इंस्टीच्यूट को स्थापित करने के लिए उन्होंने अपनी धर्मपत्नी की जीवन भर की बचत को दांव पर लगा दिया। प्रो. खोसला का एक सपना था कि वह एक ऐसा अत्याधुनिक विश्वविद्यालय स्थापित करें, जिसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इस तरह की शिक्षा दी जाए कि उद्योग जगत स्वयं इन विद्यार्थियों को अपनी जरूरतों के हिसाब से नौकरी की पेशकश दे। सिल्ब की विश्वसनियता को देखते हुए हिमाचल  सरकार ने प्रो. खोसला को बायोटेक्नोलॉजी व मैनेजमेंट साइंसेज क्षेत्र की विशेष निजी विवि के स्थापना के निर्देश दिए। इसके बाद भारत में अपनी तरह के पहले शूलिनी विवि की स्थापना हुई और शूलिनी विवि आज रिसर्च व इनोवेशन के क्षेत्र में देश की टॉप-5 यूनिवर्सिटिज में शामिल है। इसके अलावा शूलिनी विवि बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी उत्तर भारत की टॉप लिस्ट में शामिल है। अपने चार दशकों के कार्यकाल में प्रो. खोसला हमेशा ही पहल करने व नए-नए आइडिया के साथ कार्य करने के लिए जाने जाते रहे हैं। उनका उद्यमी कौशल काबिलेतारीफ है। हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से राज्य के छोटे किसान तक अनुसंधान व विज्ञान की तकनीकों को पहुंचाना उनका हमेशा से ही लक्ष्य रहा है और वह इस लक्ष्य को शूलिनी विवि के माध्यम से आज भी पूरा कर रहे हैं। उनकी सोच रही है कि हमें हमेशा परिणाम उन्मुख कार्रवाई के पीछे ही अपनी मेहनत लगानी चाहिए। उनका सपना शूलिनी विवि को वर्ष 2022 तक विश्व की टॉप-200 विश्वविद्यालयों में शामिल कराने का है, जो सभी के लिए और अधिक कार्य करने को प्रेरित कर रहा है।

-सौरभ शर्मा, सोलन

जब रू-ब-रू हुए…आबादी के हिसाब से हिमाचल में अधिक विश्वविद्यालय…

उच्च शिक्षा के मौजूदा परिदृश्य में आपका मत किस तरह भिन्न है और आपका वास्तविक लक्ष्य है क्या?

उच्च शिक्षा मानसिक उन्नति के लिए होती है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति ऐसा बनना चाहिए कि वह समाज की चुनौतियों को स्वीकार कर सके। इस विषय में यूजीसी द्वारा च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) एक अच्छा साधन है। इसके तहत विद्यार्थी न केवल पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ता है, बल्कि उनके जीवन में काम आने वाले विषय भी पढ़ाए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर मुश्किल का सामना कर सके।

छात्र समुदाय को उपाधि के अलावा किस ज्ञान की जरूरत है?

उपाधि के अलावा नैतिक शिक्षा की बहुत जरूरत है। इसके लिए आध्यात्मिक शिक्षा छात्र समुदाय को प्रदान की जानी चाहिए।

क्या पाठ्यक्रम के हिसाब से सरकारी शिक्षण संस्थानों में शिक्षा मर रही है?

कुछ हद तक यह ठीक है। सरकारी शिक्षण संस्थानों में शिक्षा पुरानी नीति पर दी जाती है और इसमें बदलाव की आवश्यकता है। पुरानी नीति में बदलाव न आने के कारण छात्र कक्षाओं में बैठना नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में एडमिशन कम होती है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में छात्रों की संख्या अधिक है। आने वाले समय में यही हाल सरकारी विश्वविद्यालयों का भी होगा। समय के साथ शिक्षा में बदलाव होना चाहिए। शिक्षा को डिजिटल बनाए जाने की आवश्यकता है।

वर्तमान युग की औचित्यपूर्ण  शिक्षा को आप किस  ढांचे में देखते हैं?

हमारे सीनियर एडमिनिस्ट्रेशन की सोच पुरानी है, जबकि शिक्षा में बदलाव समय की मांग है। डिजिटल एजुकेशन के माध्यम से व मोबाइल के कारण शिक्षा को इंटरनेट के माध्यम से भी बच्चों तक पहुंचाना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि जो अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहा है, वह बच्चों के लिए इंटरनेट पर भी उपलब्ध होना चाहिए।

क्या वास्तव में हिमाचल शिक्षा का हब बन गया  या एक परिधि के भीतर अनावश्यक शिक्षण संस्थान खुल गए?

संख्या के हिसाब से करीब 70 लाख की आबादी के लिए 22 विवि जरूरत से ज्यादा हैं।  हमें इनकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। स्विट्जरलैंड के जेनेवा में ही 40 विवि हैं, पर यह तभी हो सकता है कि शिक्षा गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाए। हिमाचल की शिक्षा को पर्यटन के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में सरकार को ध्यान देना चाहिए और इसे पर्यटन से जोड़ना चाहिए।

शिक्षा के ऐसे कौन से बुनियादी प्रश्न हैं, जिन पर  हिमाचल को त्वरित गौर करना होगा?

प्रदेश के लगभग 50 प्रतिशत विवि वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं। सरकार को चाहिए कि प्रदेश के निजी विवि को भी मदद दे ताकि वे शिक्षा के क्षेत्र में भी एक नए आयाम स्थापित कर सकें। इनमें विवि को मिलनी वाली ग्रांट व अन्य सहायताओं पर गौर करने की आवश्यकता है। प्रदेश में 17 निजी विवि हैं और इनमें तकरीबन 2 हजार संकाय सदस्य पढ़ाते हैं, वहीं हजारों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर हैं। ऐसे में सरकार को इन सभी के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। इसके अलावा निजी विवि को भी रिसर्च प्रोजेक्ट देने चाहिए।

वर्षों से शिक्षा के प्रति आपके तप ने ऐसी कौन सी तड़प पूरी नहीं की, जिसे हासिल करना अभी भी मकसद है?

शिक्षा प्रबंधन में स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज विवि को केवल कागज के रूप में देखा जाता है और उन पर कई ऐसी बाधाएं होती हैं, जिनके संकोच से शिक्षा अपने तरीके से विकसित नहीं होती है। सरकार को चाहिए कि 17 विवि की ग्रेडिंग करे और तीन श्रेणियों में ए, बी व सी में विभाजित करे। इससे चंडीगढ़, पंजाव व अन्य प्रांतों की ओर रुख करने वाले हिमाचल के छात्र को वापस लाने में मदद मिलेगी।

क्या निजी क्षेत्र में ही शिक्षा का उजाला होगा या सरकारी संस्थानों में ऐसा कुछ है, जिसे प्राइवेट सेक्टर पूरा नहीं कर सकता?

मेरे विचार से निजीकरण ही समय की मांग है और इसमें ही भविष्य है। सरकारी शिक्षण संस्थानों में रूढि़वादिता होती है और अधिकतर सरकारी संस्थान परिवर्तनशील नहीं होते हैं। आज से 50 वर्ष पहले केवल सरकारी स्कूल ही होते थे। धीरे-धीरे हुए निजीकरण और प्राइवेट स्कूलों की सुविधाओं, शिक्षा व अपनेपन के कारण मध्यमवर्गीय परिवारों ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया। सरकारी स्कूल केवल गांव व गरीब वर्ग के लिए रह गए। समय आने वाला है जब सरकारी विवि के साथ भी ऐसा होगा। शूलिनी विवि की बात करें तो विवि की रिसर्च की अचीवमेंट देश की टॉप-10 विवि से कम नहीं है। इसके अलावा निजी विवि में पढ़ने वाले छात्रों के पास जॉब सिक्योरिटी भी होती है, वहीं सरकारी विवि इसमें इतनी रुचि नहीं दिखाते हैं।

विदेशों में आपको शिक्षा के किस मॉडल ने अभिभूत किया और भारत के लिए इससे क्या सीखना होगा?

विदेशों में प्रैक्टिल पर जोर दिया जाता है और वहां पर लिबरल सिस्टम अपनाया गया है। च्वाइस बेस्ड सिस्टम विदेशों में पिछले कई दशकों से चल रहा है और हम अब जाकर उसे अपना रहे हैं। हमारे देश में शिक्षा का अर्थ है संबंधित विषय को पढ़ाना जबकि विदेशों में शिक्षा का अर्थ है विद्यार्थी के ज्ञान सागर को बढ़ाना ताकि शिक्षा का प्रयोग हो सके। हमारे देश में शिक्षा केवल परीक्षा उपयोगी है, जबकि विदेशों में च्वाइस बेस्ड है।

राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में आपकी निगाह में जो बेहतर कर पा रहे हैं?

खेद की बात है कि भारत के 200 विवि की रैंकिंग कभी-कभार ही विश्व स्तर पर आती है। इसका कारण खोजना होगा। अभी तक न तो केंद्र सरकार, न ही राज्य सरकारों ने और न ही विवि ने इस ओर ध्यान दिया है। पुराने विवि जिनकी अच्छी साख है और इनमें अच्छे प्रोफेसर हैं, केवल वे ही देश के अच्छे विवि में शुमार हैं।

अपने जीवन काल में आप किस पीरियड को स्वर्णिम मानते हैं?

मेरे जीवन में स्वर्णिम काल को चुनना कठिन है। जीवन में तीन-चार ऐसे घटनाक्रम हुए, जिन्हें इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इनमें पहला जब मैंने एक साधारण विद्यार्थी से लेकर एक गोल्ड मेडलिस्ट स्टूडेंट का सफर तय किया। दूसरा जब मैंने फोरेस्ट्री एजुकेशन को देश में लागू करवाने के लिए सफल प्रयास किए। वहीं, तीसरा जब मैंने 65 वर्ष की आयु में शिक्षा के नए आयाम स्थापित करने के लिए शूलिनी विवि की स्थापना कर 2022 तक इसे विश्व के टॉप-200 विवि में शुमार करने का लक्ष्य स्थापित किया।

प्रोफेशन के जरिए आपका सबसे बड़ा सुकून और वे पल जिन्होंने अपने कंधों पर इतना प्रतिष्ठित संस्थान खड़ा कर दिया?

बुद्धि ज्ञान से ऊपर है और हमें परिस्थितियों का लाभ उठाना आना चाहिए। मौके सभी को मिलते हैं, लेकिन लोग उनका फायदा कुछ लोग ही उठा पाते हैं। मेरी यह धारणा है कि जिस काम को भी मैंने पकड़ा है उसे दृढ़ निश्चय व परिस्थितियों व मौके का फायदा उठाकर पूरा किया है। इसका उदाहरण शूलिनी विवि है, जो देश के नामी विवि में शुमार है।

आपके लिए देश के प्रति योगदान करने के क्या मायने हैं और इस दृष्टि से कभी अपना मूल्यांकन किया?

मैं एक भारतीय हूं और इसकी परंपराओं पर अटूट विश्वास करता हूं। मैं बेहद खुशनसीब हूं कि मैंने इस धरती पर जन्म लिया। ऐसे देश में जहां विश्वास किया जाता है कि कर्म का फल मिलता है और उसी के कारण मेरी जैसी आयु वाला व्यक्ति भी अपने कर्म के विरुद्ध और आत्मा की आवाज के विरुद्ध कार्य करने से संकोच करता है। यह शिक्षा केवल भारत में ही मिलती है। मुझे बहुत दुख होता है जब देश को भ्रष्टाचार से जोड़ कर देखा जाता है और इसमें सबसे बड़ा हाथ राजनेताओं का है, जो देश को खोखला कर रहे हैं।


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