हिमाचल में आसान होंगी रोप-वे की राहें

By: Jul 11th, 2018 12:15 am

प्रदेश में अरसे से लटके रज्ज् मार्ग परियोजनाओं के नियमों में अब होगा बदलाव

शिमला— प्रदेश में रोप-वे की स्थापना आसान हो सकती है। ये परियोजनाएं स्थापित करने के लिए संबंधित विभागों की जवाबदेही तय होगी। एनओसी जारी करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों को समय सीमा की कड़ी शर्त लगाई जाएगी। इसके अलावा कई विभागों की अनावश्यक एनओसी की शर्त समाप्त कर दी जाएगी। इसके तहत जटिल नियमों के सरलीकरण के लिए राज्य सरकार ने तैयारी कर ली है। इसके तहत 24 जुलाई को प्रस्तावित हिमाचल मंत्रिमंडल की बैठक में यह प्रस्ताव लाया जा सकता है। हिमाचल में दो दर्जन से ज्यादा रोप-वे परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसके अलावा आधा दर्जन महत्त्वाकांक्षी रोप-वे प्रोजेक्ट जटिल नियमों के चलते लटके हैं। राज्य में रोप-वे लगाने के लिए तीन कानूनी अड़चनें बाधा बन गई हैं। इससे नाराज निवेशक हाथ खींचकर हिमाचल से भाग रहे हैं। धर्मशाला-मकलोडगंज, दियोटसिद्ध-शाहतलाई, रोहतांग, बिजली महादेव, त्रियूंड तथा सोलंगनाला सहित राज्य के कई अहम रोप-वे प्रोजेक्ट कानूनी अड़चनों के फेर में उलझ गए हैं। इसी कड़ी में शिमला का रोप-वे भी एनओसी के फेर में फंस गया है। आईएसबीटी से मालरोड के लिए प्रस्तावित दो करोड़ की लागत के रोप-वे की आधारशिला 2005 में रखी गई है। कुल 3600 मीटर लंबे इस रोप-वे का निर्माण कार्य साढ़े तीन साल में पूरा होना था। यह समयावधि कुछ समय बाद पूरी हो रही है, लेकिन परियोजना का निर्माण कार्य शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ पाया है। इसके पीछे मुख्य कारण रोप-वे परियोजना की हवा में गुजरने वाली तारों के लिए वन भूमि की अनुमति जरूरी है। यानी परियोजना के हवाई क्षेत्र के नीचे के तमाम भू-खंड के लिए भी एनओसी लेनी पड़ती है। इस कारण वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना माउंट एवरेस्ट फतह करने बराबर है। इस नियम को लेकर प्रदेश मंत्रिमंडल राहत दे सकता है।

एक्ट के नियमों से लग जाते हैं दो-दो साल

रोप-वे परियोजना को एनओसी जारी करने से पहले पीडब्ल्यूडी करीब एक दर्जन नोटिफिकेशन जारी करता है। रोप-वे एक्ट में रखे गए इस प्रावधान से निपटने के लिए कम से कम दो साल लग जाते हैं। यह प्रक्रिया कैबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद शुरू होती है। इसके लिए राज्य सरकार समय सीमा निर्धारित कर विभागों की जवाबदेही तय कर सकती है। तमाम औपचारिकताओं के बाद निवेशकों को ग्राम सभा में मंजूरी के लिए पसीना बहाना पड़ता है। मंत्रिमंडल में इन कड़े नियमों को लेकर भी छूट मिलने की संभावना है।


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