कब खेल मैदान में पहुंचेगी शारीरिक शिक्षा

By: Aug 24th, 2018 12:10 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

बिना खेल मैदान व अन्य खेल सुविधाओं के विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा को हम शिक्षण के कमरे से बाहर निकालने में कामयाब नहीं हो सके हैं। अधिकांश विद्यालयों के पास खेल मैदान न होने के कारण एथलेटिक्स स्पर्धा कहां होती होगी, किसी ने आज तक नहीं पूछा है…

वैसे तो दो दशक पूर्व वरिष्ठ माध्यमिक की जमा एक व जमा दो कक्षाओं में शारीरिक शिक्षा को हिमाचल प्रदेश के विद्यालयों में विषय के रूप में पढ़ाना शुरू कर दिया था, मगर आज तक यह विषय प्रेक्टिकल फाइल व ब्लैक बोर्ड से निकल कर खेल मैदान तक नहीं पहुंचा है। केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्द्धन राठौर ने घोषणा की है कि सीबीएसई मान्यता प्राप्त विद्यालयों में खेल को अनिवार्य बनाया जाएगा। इसलिए हर विद्यार्थी को किसी एक खेल में हिस्सा लेना अनिवार्य होगा, तभी वह वार्षिक परीक्षा में बैठ पाएगा। जब वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में शारीरिक शिक्षा विषय को शुरू करवाया था, तो उस समय के विशेषज्ञों को विश्वास था कि इस विषय के शुरू हो जाने से राज्य के विद्यालयों में खेलों का स्तर बढ़ेगा, मगर बिना खेल मैदान व अन्य खेल सुविधाओं के विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा को हम शिक्षण के कमरे से बाहर निकालने में कामयाब नहीं हो सके हैं। शारीरिक शिक्षा जमा दो स्तर पर दूरसंचार तकनीकी के साथ एैच्छिक विषय होने के कारण विज्ञान व सांख्यिकी के विद्यार्थी तो अधिकतर आईपी को ही विषय के रूप में चुनते रहे हैं। कला पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने भी इसे केवल इसलिए विषय के रूप में चुना होता है, क्योंकि इसमें बिना खेल मैदान गए ही प्रेक्टिकल में पूरे के पूरे अंक मिल जाते हैं।

इसलिए खेल मैदान अगर विद्यालय के पास हो भी तब भी वह खाली ही रहता है। बिना प्ले फील्ड गए, यह किस प्रकार की शारीरिक शिक्षा हिमाचल में हो रही है? इसके बारे में विद्यालय, प्रशासन व  सरकार भी वर्षों से चुप्पी साधे हुए हैं। वैसे तो कागजों में थ्योरी व प्रेक्टिकल के अंकों का 60ः40 के अनुपात में बंटवारा किया हुआ था। फिर बाद में प्रेक्टिकल के अब 25 अंक रखे हैं। इस समय थ्योरी से साठ व इंटरनल असेसमेंट के 15 अंक हैं। इस प्रेक्टिकल में अंकों का बंटवारा खेल प्रतिनिधित्व में वरिष्ठता के साथ उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर तथा शेष अंकों के लिए प्रेक्टिकल में किसी एक खेल के स्किल तथा एथलेटिक्स की किसी एक स्पर्धा को चुनना होता है।

विद्यालय से तो मात्र कुछ विद्यार्थी ही खेलों में विद्यालय का प्रतिनिधित्व कर पाते हैं, शेष बचे शारीरिक शिक्षा के विद्यार्थियों को किस तरह प्रेक्टिकल में खेल प्रतिनिधित्व के अंक मिलते रहते हैं, यह भी सोच का विषय है। अधिकांश विद्यालयों के पास खेल मैदान न होने के कारण एथलेटिक्स स्पर्धा कहां होती होगी, किसी ने आज तक नहीं पूछा है। पूरे विद्यालय के पास कहीं-कहीं पर तो एक ही शारीरिक शिक्षा का शिक्षक होने के कारण उसे सवेरे की सभा के साथ-साथ खेल से जुड़े विद्यालय के सभी दायित्व निभाने पड़ते हैं। ऐसे में क्या एक शिक्षक विषय के साथ अपने अन्य दायित्वों के साथ न्याय कर पाता है। आज जब एक बार फिर देश व प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए विद्यालय स्तर पर सुधार की बात होती है, तो हमें विद्यालय परिषद में खेल मैदान के साथ इंडोर खेलों के लिए भी स्थान बनाने होंगे। सरकार विद्यालयों में बड़े सुंदर भवन बनवा रही है। इनके बेसमेंट तथा ऊपर टीन की छत के नीचे बड़े हाल निकाले जा सकते हैं, उसमें जहां पूरा वर्ष खेलों के लिए सुविधा हो सकती है, वहीं पर वार्षिक परीक्षा के समय तथा अन्य उत्सवों में बड़े हाल के रूप में इनका प्रयोग हो सकता है। कई जगह समतल मैदान वाली जगह पर ही भवन बना दिए जाते हैं। अच्छा होगा समतल जगह को विद्यार्थियों की शारीरिक क्रियाओं और खेलों के लिए छोड़ दिया जाए। भवन को दूसरी जगह भी बनाया जा सकता है। खेल सामान आज बहुत महंगा है। सरकार विद्यालय को खेल सामान खरीदने के लिए अनुदान दे। शारीरिक शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न खेलों, जिनकी विद्यालय में सुविधा है, के प्रशिक्षकों को भी नियुक्त करे, ताकि किशोरावस्था से ही खिलाड़ी को सही तकनीक मिल सके। खेल आरक्षण से कई शिक्षक नौकरी में लगे हैं, वे भी खाली समय में अपने विद्यालय में उस खेल को बढ़ावा दें। आज देश जब एशियाई खेलों में ही स्वर्ण पदकों को तरस रहा है, ओलंपिक में तो कभी-कभार कोई भी पदक जीतने पर जश्न हो जाता है। ऐसे में हमें विश्व के सामने कब तक शर्मिंदा होना पड़ेगा।

खेलों की पदकतालिका से किसी भी देश की तरक्की व खुशहाली का पता आसानी से लग जाता है और इसमें शीर्ष पर आने वाले देश आज हर क्षेत्र में श्रेष्ठ हैं। हमारा नाम कई बार तो वहां मिलता भी नहीं है और अगर होता भी है, तो बहुत नीचे होता है। इसलिए हर सरकार देश व प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने की बातें तो करती है, मगर विद्यालय जहां भविष्य के विजेता पढ़ रहे हैं, उस स्तर पर खेलों में उत्कृष्टता लाने के लिए अभी तक हम फाइलों से बाहर नहीं आ पाए हैं।


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