दुविधाओं के जाल में फंसी कांग्रेस

By: Aug 10th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

हर किसी को यह समझना चाहिए कि मोदी विकासात्मक लक्ष्यों के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए एक कुशल रणनीति का अनुसरण कर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि कई विरोधियों की कड़ी आलोचना के बावजूद वह देश में सबसे अधिक लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। उन्होंने ऐसे राष्ट्रीय मसले चुने हैं कि इनके विरोध का कोई तुक नहीं बनता। इसके बावजूद विपक्ष उनकी नुक्ताचीनी में लगा हुआ है, परंतु ऐसा करके वह खुद ही जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो रहा है…

कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि यह जो भी अभियान चलाती है, यह या तो सही रणनीति बनाने में विफल हो जाती है या इस पर क्रियान्वयन में वह नाकाबिल हो जाती है। पार्टी की रणनीतियां जरा-जीर्ण हो गई हैं या अगर वे युवा हैं तो उनमें पार्टी मामलों के संचालन के सृजनात्मक दृष्टिकोण की कमी है। राहुल गांधी युवा और शिक्षित हैं, पार्टी इसे आसानी से भुना सकती थी अगर उन्हें राजनीतिक कुरुक्षेत्र में युद्ध की कला में प्रशिक्षित किया गया होता तथा पार्टी नेतृत्व की सही दिशा दिखाई गई होती। दुर्भाग्य से वंशावली संस्कृति में कांग्रेस ने सृजनात्मक और गैर-परंपरागत विचार अवरुद्ध कर दिए हैं। इसे इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि क्यों मोदी खुले रूप से सभी से उन समस्याओं पर उन्हें विचार और सुझाव देने के लिए कहते हैं जिन्हें सुलझाया जाना बाकी है। हर हफ्ते ‘मन की बात’ में वह न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक मसलों पर भी लाखों श्रोताओं से संचार करते हैं। वह इन विचारों को परिष्कृत करते हैं तथा एक मधुमक्खी की भांति फूलों से शहद एकत्र करने में उत्सुकता दिखाते हैं। लोकतंत्र का सार मात्र केवल चुनाव नहीं है, बल्कि इसका मतलब शासन की प्रक्रिया में लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करना भी है। चुनाव केवल वह सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली है। जनता से सीधा संपर्क कैसे स्थापित करना है, इसमें मोदी माहिर हो चुके हैं। साथ ही नए रास्ते खोजने की कला भी वह जानते हैं। मिसाल के तौर पर वर्ष 2014 में जब उन्होंने पाया कि मीडिया उनके पक्ष में नहीं है, तो वह सीधे जनता के पास गए तथा कई रैलियों व रोड शो को संबोधित किया।  अब वह व्यापक स्तर पर रेडियो का प्रयोग कर रहे हैं। यह एक उपेक्षित मीडिया है जो कि ग्रामीण जनसंख्या को उपलब्ध है। इस तरह उन्हें सीधे संवाद का अवसर मिल जाता है तथा जनसहभागिता तय करने का सृजनात्मक तरीका भी उपलब्ध हो जाता है। इसके जरिए जमीनी स्तर पर संवाद की व्यवस्था हो जाती है। मिसाल के तौर पर ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा बिल्कुल नया नहीं है। पुरानी सरकारों के समय भी अन्य तरीकों से इसका प्रचार होता रहा है, इसका प्रयोग होता था। लेकिन अब इस नारे को जो आकर्षक नाम दिया गया है, उसने इसे एक हिट नारा बना दिया है। यह मात्र एक जुमला नहीं है, जैसा कि विपक्ष कह रहा है, बल्कि यह मूवर और शेकर है। बेटी बचाओ शब्द सबकी जुबान पर है तथा इसका परिणाम यह हुआ है कि बालिका शिक्षा की ओर पहले से ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। मैं जंगल में स्थित एक ऐसे गांव में रहता हूं जहां 250 घर हैं। यहां पर पहले बालिका शिक्षा की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। एक अन्य दिन मैंने देखा कि बस स्टैंड पर कालेज में जाने के लिए बस में चढ़ने को 10 बालिकाएं तैयार खड़ी थीं। स्वच्छता अभियान व अन्य सामाजिक मसलों की स्थिति भी यही है, मोदी ने जब से इन मसलों को प्रोमोट किया है, इनका खूब प्रचार हुआ है और समाज में एक सकारात्मक बदलाव आया है। इन मसलों पर पहले व्यापक ध्यान नहीं दिया जाता था। कांग्रेस इस तरह का कोई सकारात्मक अभियान नहीं चला पाई तथा न ही वह सामाजिक प्रेरक शक्ति के रूप में काम कर पाई। इसके बजाय वह मोदी के सामाजिक कार्यक्रमों की नुक्ताचीनी करती रही तथा उनके प्रयासों का मजाक मात्र उड़ाती रही।

हर किसी को यह समझना चाहिए कि मोदी विकासात्मक लक्ष्यों के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए एक कुशल रणनीति का अनुसरण कर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि कई विरोधियों की कड़ी आलोचना के बावजूद वह देश में सबसे अधिक लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। उन्होंने ऐसे राष्ट्रीय मसले चुने हुए हैं कि इनके विरोध का कोई तुक नहीं बनता है। इसके बावजूद विपक्ष उनकी नुक्ताचीनी में लगा हुआ है। परंतु ऐसा करके वह खुद ही जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है। लोगों में यह भावना घर कर गई है कि मोदी ठीक करते जा रहे हैं, जबकि विपक्ष उन्हें काम करने से रोक रहा है। मोदी की इस नीति का मुकाबला महज नुक्ताचीनी से नहीं हो सकता, बल्कि भविष्य के सकारात्मक लक्ष्यों व बढि़या अभियान को आगे लाना होगा। कुछ अर्थशास्त्री इतने सिद्धांतवादी हैं कि वे माइक्रो व मैक्रो  इकोनोमिक प्लान को देख रहे हैं तथा इन कल्याणकारी मापदंडों को निरर्थक करार दे रहे हैं। किंतु मेरा विश्वास है कि वे इस बात को भूल रहे हैं कि मानव व्यवहार क्या होता है। वास्तव में यही विकास के लिए प्रेरणा बनाता है तथा आखिरकार इसी से राष्ट्र निर्माण होता है। उधर कांग्रेस के पास मोदी के मुकाबले के लिए कोई बेहतर रणनीति नहीं है। कांग्रेस के अनुसार जीएसटी के कारण आने वाले समय में विकास प्रभावित होगा, किंतु इस मसले पर वह मोदी पर दोष नहीं मढ़ सकती क्योंकि इस पर सबसे पहले सोचने वाली कांग्रेस ही थी और वह इसके लिए कुछ हद तक क्रेडिट भी तो ले रही है। मोदी अपने कार्यकाल में जो प्रोजेक्ट लेकर आए हैं, उनमें से कई मूल रूप से कांग्रेस के हैं, किंतु वह इच्छा शक्ति के अभाव में इन पर काम नहीं कर पाई थी। कई प्रोजेक्ट उसने वोट बैंक के खो जाने के डर में ही छोड़ दिए। मोदी के पास साहस की कमी नहीं है। मोदी वही हैं जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक जैसा साहसिक निर्णय किया। कुछ लोग जब यह कहते हैं कि कांग्रेस ने भी ऐसा किया था, वहीं यह कहा जाता है कि इस बार सर्जिकल स्ट्राइक संदिग्ध है, इससे कांग्रेस ही दोमुंही साबित होती है। लोगों का विश्वास है कि इस बार सर्जिकल स्ट्राइक हुई है, परंतु कांग्रेस इस पर संदेह जता रही है, इससे उसकी लोकप्रियता ही घट रही है। कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी आने के कई कारण हैं। नवीनतम मसला बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों का है। यह मसला इस वक्त गहन चिंतन का विषय बना हुआ है, इस पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विचार भी हो रहा है तथा यह भी कहा जा रहा है कि लाखों अवैध प्रवासी गायब हो चुके हैं। पहले इस मसले को कांग्रेस ने उठाया था तथा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने की बात भी चली थी, किंतु एक बड़ा वोट बैंक खो जाने के भय से कांग्रेस इस पर आगे अमल नहीं कर पाई।

अब अगर भाजपा इस काम को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है तथा वह भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में, तो इसमें रोड़े अटकाने का क्या औचित्य है। विपक्ष अब इसमें भी नुक्ताचीनी कर रहा है। अब अमित शाह खुलकर बोल रहे हैं कि इच्छा शक्ति के अभाव में कांग्रेस इस काम को नहीं कर पाई तथा वे इस काम को देश की भलाई के लिए कर रहे हैं। कांग्रेस के पास इस मसले को लेकर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है। सांगठनिक रूप से भी कांग्रेस के पास अपने नेताओं को एक बनाए रखने की कोई रणनीति नहीं है। कर्नाटक में पार्टी के भीतर असंतोष फैला हुआ है। हिमाचल में वीरभद्र सिंह व पार्टी अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू को एक करने में पार्टी नाकाम रही है। पार्टी इस मसले को सुलझा सकती है क्योंकि उसके पास कौल सिंह तथा आशा कुमारी जैसे सक्षम नेता हैं। इसके बावजूद इस मसले को सुलझाने में देरी की जा रही है। कांग्रेस को बचाने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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