भगत सिंह को बचाने में क्यों विफल हुए गांधी

By: Aug 24th, 2018 12:12 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चलाए हुए थी। लाला लाजपत राय की जब एक पुलिस लाठीचार्ज में मृत्यु हो गई तो सरदार भगत सिंह ने विद्रोह कर दिया तथा उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक आंदोलन चलाना शुरू कर दिया। उन्होंने क्रांतिकारियों से हाथ मिला लिया। इसके कारण देशभर में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हो गया तथा भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर बंदूक हाथ में थामने की कसम खा ली…

महात्मा गांधी के प्रति अहिंसा व स्वराज के चैंपियन होने के नाते आदर भाव के बावजूद मैं उनकी दो हिमालय जैसी गलतियों को कभी स्वीकार व माफ नहीं कर पाया। इनमें पहली गलती थी कि वह भगत सिंह को फांसी से नहीं बचा पाए। दूसरी गलती यह थी कि वह भारत को विभाजन से नहीं बचा पाए तथा उनकी इस घोषणा के बावजूद कि विभाजन उनकी लाश पर होगा, वह इसके लिए अंग्रेजों के आगे सहमत हो गए। विभाजन को लेकर इस पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, इस पर चर्चा भी हो चुकी है तथा इस पर आगे भी लिखा जाएगा, किंतु राष्ट्र की इस बड़ी त्रासदी पर बहुत कम अनुसंधान हुआ है कि स्वतंत्रता संघर्ष के युवा नायकों को फांसी पर चढ़ने दिया गया तथा कुछ भी नहीं हुआ। जब हम आजादी की वर्षगांठ मनाते हैं तो हम केवल यह करते हैं कि झंडा फहरा देते हैं तथा कुछ मिठाई बांट देते हैं, किंतु स्वतंत्रता संघर्ष के महान शहीदों के बार में कुछ भी नहीं सुना जाता है। यह आलेख राष्ट्र को उस ऋण की याद दिलाने के लिए है जो उन युवा शहीदों के प्रति अभी भी देय है जिन्होंने आजादी के बाद भी अपने लिए किसी महिमामंडन के बारे में नहीं सोचा था तथा इसके बावजूद जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्होंने केवल भारत मां के प्रति प्यार व सेवा की भावना के चलते अपने प्राणों की आहुति दी। वे उस विदेशी ताकत से भिड़ गए जिसने भारत को गुलाम बना रखा था।

जब मैं राम प्रसाद बिस्मिल के इस आदर्श वाक्य को सुनता हूं कि, ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है’ अर्थात मेरे दिल में यह इच्छा है कि मैं अपना सिर कटवा दूं, यह देखने के लिए कि तलवार पकड़े हुए दुश्मन की बाजु में कितनी ताकत है, तो साहस की कई हिलोरें एक साथ आने लगती हैं। एक अन्य आदर्श वाक्य, जो स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ा है, वह यह है, ‘माएं मेरा रंग दे बसंती चोला।’ इन आदर्श वाक्यों ने भारत के समस्त लोगों को उस साम्राज्यवाती ताकत के खिलाफ एकजुट कर दिया था जो उनका शोषण कर रही थी। जब मैं चेहरा ढंके हुए तीन लोगों को फांसी पर चढ़ने के लिए जाते हुए तथा यह देशभक्ति गीत गाते हुए सुनता हूं तो मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह तीनों युवा अवस्था में थे जो राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जान तक देने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। आज के इस युग में जबकि हर कोई धन एकत्र करने के लक्ष्य के पीछे भाग रहा है तथा लालचवश बड़े-बड़े पद हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, इन वीर जवानों का जीवन हम सबके सामने आदर्श के समान है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया। इन वीर जवानों में पुरुषों के साथ ही कई महिलाएं भी थीं।

महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसक आंदोलन चलाए हुए थी। लाला लाजपत राय की जब एक पुलिस लाठीचार्ज में मृत्यु हो गई तो सरदार भगत सिंह ने विद्रोह कर दिया तथा उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक आंदोलन चलाना शुरू कर दिया। उन्होंने क्रांतिकारियों से हाथ मिला लिया। इसके कारण देशभर में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हो गया तथा भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर बंदूक हाथ में थामने की कसम खा ली। भगत सिंह को थोड़े ही लोग एक बौद्धिक व्यक्ति के रूप में याद करते हैं। वह राजनीतिक दर्शन के पुरोहित थे जो बाद में अराजकतावाद की ओर मुड़ गए। वास्तव में अराजकतावाद की उनकी परिभाषा बहुत ही ज्ञानवर्द्धक थी। उन्होंने अराजकतावाद को वसुधैव कुटुंबकम की हिंदू अवधारणा के समकक्ष रखा जिसके अनुसार पूरा विश्व ही एक परिवार है। भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सांडर्स को कत्ल कर दिया। इसके बाद भगत सिंह व उनके साथी हिंसा के बजाय जन आंदोलन का रास्ता चुनने की ओर प्रवृत्त हुए, किंतु उन्हें विधानसभा में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उनकी यह कार्रवाई किसी को निशाने पर लिए बिना मात्र एक सांकेतिक कार्रवाई थी। इसके परिणामस्वरूप उन पर जो केस चला, वह ठीक ढंग से नहीं चलाया गया। उनके खिलाफ कोई पर्याप्त सबूत नहीं थे तथा उन्हें न कोई मदद दी गई व न ही अपील का अधिकार दिया गया। इन युवकों को मृत्यु दंड सुना कर जो अन्याय किया गया, उससे पूरा देश स्तब्ध रह गया तथा यहां तक कि मुहम्मद अली जिन्ना ने भी इन्हें बचाने की भरपूर कोशिश की। महात्मा गांधी के लार्ड इरविन से अच्छे संबंध थे जो एक समझौते के लिए वार्ता की तैयारी में लगे थे। कई लोग विश्वास करते हैं कि महात्मा गांधी उन्हें छोटे दंड के लिए राजी नहीं कर पाए, बजाय यह कि उन्हें मृत्यु दंड दे दिया जाए। गांधी इस संबंध में इरविन से मिले तथा उन्हें पत्र भी लिखे, परंतु कहा यह जाता है कि गांधी ने यह सब कुछ गंभीरता के साथ नहीं किया। राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया गया। कई कांग्रेस नेताओं ने क्रांतिकारियों को मृत्यु दंड निलंबित करने की अपील भी की, किंतु गांधी ने पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि चूंकि वह अहिंसा के पुजारी हैं, वह इस केस में अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। गांधी चाहते तो कोर्ट में जो सुनवाई चली, उसकी अन्यायपूर्ण भावना तथा क्रांतिकारियों को बचाव का अवसर न दिए जाने के आधार पर सरकार से आसानी से भिड़ सकते थे। लाला लाजपत राय की जिस तरह लाठीचार्ज में मृत्यु हुई, उस उकसाने वाली कार्रवाई को भी बचाव के एक बिंदु के रूप में पेश किया जा सकता था। इसी समय पूरा राष्ट्र भगत सिंह के पीछे खड़ा था तथा उनकी लोकप्रियता भी यहां तक कि नेहरू व गांधी जी से ज्यादा बढ़ गई थी।

इंडिया टुडे ने कई वर्षों बाद वर्ष 2008 में एक सर्वे भी आयोजित किया जिसमें उन्हें महात्मा गांधी व सुभाष चंद्र बोस से भी आगे दिखाया गया। इसलिए यह सही समय है जब हम सबको सरकार से आग्रह करना चाहिए कि वह इन युवा स्वतंत्रता सेनानियों की याद में एक स्मारक बनाए तथा 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर एक यादगारी कार्यक्रम भी आयोजित करे। चूंकि साम्राज्यवादी ताकत से आजादी दिलाने के लिए इन युवा शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी, इसलिए मैं इन नायकों को अभिनंदन व प्यार प्रेषित करता हूं।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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