भारत माता की जय या दुश्मन चिरंजीवी हों ?

By: Aug 31st, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

आखिरकार ओसामा बिन लादेन एक बेरोजगार युवक नहीं था। स्पष्ट रूप से यह राजनीतिक प्रोपोगेंडा था, परंतु तथ्यों के प्रति सम्मान के बिना राहुल विदेशी जमीं पर अप्रमाणित सूचना फैला कर देश को ही नुकसान पहुंचा रहे थे, न कि केवल सत्ताधारी दल को। एक अन्य विवाद उन्होंने यह वक्तव्य देकर पैदा कर दिया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा मुस्लिम ब्रदरहुड एक ही किश्ती पर सवार हैं। राष्ट्रवादी, जो कि आरएसएस के सामाजिक सेवा संगठन होने का दावा करते हैं, वे अपना तापमान खो बैठे तथा देश में एक विस्फोटक चर्चा आरंभ हो गई…

जैसे-जैसे हम वर्ष 2019 की ओर बढ़ रहे हैं, राष्ट्रवादियों और तथाकथित राष्ट्र द्रोहियों या नकली उदारवादियों के बीच दरार ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट होती जा रही है। इस लड़ाई में फारूक अब्दुल्ला की हाल में एंट्री हुई है जबकि उन्होंने श्रीनगर में शाही मस्जिद में ईद की नमाज में भारत माता की जय तथा जय हिंद का नारा बुलंद किया और वह हमले का शिकार हो गए। पाकिस्तान समर्थक नारे लगाती गुस्साई भीड़ ने उनका मजाक भी उड़ाया। राष्ट्र समर्थक तथा राष्ट्र विरोधी ताकतें अब आमने-सामने आ गई हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी फारूक एक ऐसे नेता हैं जो ग्लैमर तथा नाटकीयता के लिए जाने जाते हैं। इससे पहले उन्होंने पृथकतावादियों का समर्थन किया तथा आजादी चाहते थे, किंतु अब वह दूसरे सिरे पर खड़े हैं। वह इस हद तक चले गए कि उन्होंने उनसे यह कह दिया, ‘मैं कहता हूं कि पहले बेगारी, बीमारी और भुखमरी हटाओ, फिर आजादी पाओ।’ अर्थात आजादी के लिए मांग उसी परिप्रेक्ष्य में जायज है जब इन तीन समस्याओं से छुटकारा मिल जाए। पूरा वातावरण राष्ट्र विरोधी तत्त्वों के खिलाफ लामबंद राष्ट्रवादी ताकतों के साथ अधिभारित है। इससे पहले ही नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान दौरे से आग भीतर ही भीतर कहीं सुलग रही थी। वह वहां पर इमरान खान की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए गए थे, जो कि एक प्रख्यात क्रिकेटर हैं तथा जिनके भारतीय टीम में भी कई दोस्त हैं। वर्तमान में कैप्टन अमरेंद्र सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल सिद्धू वहां बुलाए गए लोगों में से एक थे।

जबकि अन्य आमंत्रित लोगों ने निमंत्रण के मामले को निजी मित्रता से ऊपर देश को प्राथमिकता देकर लिया, उधर सिद्धू ने आमंत्रण को स्वीकार करते हुए पाकिस्तान का दौरा किया। समारोह में उन्हें तीसरी पंक्ति में स्थान चिन्हित किया गया था, किंतु शरारतपूर्ण ढंग से उन्हें पहली पंक्ति में लाकर पाक अधिकृत कश्मीर के मुख्यमंत्री के साथ लाकर बिठा दिया गया। यह प्रतीक ही जैसे काफी नहीं था, सिद्धू ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख बाजवा को आलिंगनबद्ध कर लिया तथा अंतरंग संबंधों का परिचय दिया। ऐसे कई अवसर आए हैं जब भारतीय नेताओं ने संबंधों को सुधारने की दृष्टि से पाकिस्तान के दौर किए हैं। मिसाल के तौर पर कुछ वर्ष पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर बस में सवार हुए थे तथा वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिना किसी पूर्व घोषणा के अचानक ही पाक प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। परंतु यह दौरे किसी राष्ट्र के मुखिया द्वारा कुछ निश्चित लक्ष्य से किए गए दौरे थे, न कि किसी निजी नागरिक द्वारा सार्वजनिक समारोह में शामिल होना था। राष्ट्र की रणनीति के एक अनुभाग के रूप में सिद्धू के पास ऐसे मिशन के लिए संबंधित अधिकारियों की कोई औपचारिक स्वीकृति नहीं थी। सिद्धू ने जो किया, वह केवल मित्रता का दिखावा करना है जिसे राष्ट्र की मान्यता मिल भी सकती है तथा नहीं भी, प्रधानमंत्री के दौरों से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। उन्होंने यह दिखावा किया कि उनके पास उनके नेतृत्व व पार्टी का पूरा समर्थन प्राप्त है। जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने बाद में इसकी आलोचना की, तो उनके पूरे समर्थन के दावे की पोल खुल गई। इससे कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता कि उन्होंने जो किया, उसकी उन्हें स्वीकृति थी। परंतु यह मध्यवर्ती नेतृत्व हो सकता है जिसने उन्हें इसकी इजाजत दी। राष्ट्र विरोधी वायरस को बढ़ाते हुए उनकी पार्टी के मुखिया ने भी विदेशी जमीं पर अपने देश की निंदा की। जबकि देश यहां आई बाढ़ से निपटने में लगा था, राहुल गांधी विदेशियों को यह बताने में लगे थे कि किस तरह भारत में खतरनाक कानून व अन्य परिस्थितियां बन रही हैं तथा सरकार की नीतियां विफल होती जा रही हैं। राहुल गांधी ने जर्मनी व लंदन में संस्थानों से बात करते हुए अपने ही देश के प्रधानमंत्री की आलोचना कर दी। उन्होंने दावा किया कि विमुद्रीकरण से बेकारी बढ़ी है जिससे आतंकवाद पैदा हो रहा है। आतंकवाद के कारण के रूप में कुछ भी जोड़ा जा सकता है क्योंकि यह एक सामाजिक  गोचर घटनाक्रम है जो कि सामाजिक तनाव के कारण पैदा हुआ है। किंतु इससे भी बढ़कर आतंकवाद के पीछे धर्मांधता कारण के प्रति कटिबद्धता है। आखिरकार ओसामा बिन लादेन एक बेरोजगार युवक नहीं था। स्पष्ट रूप से यह राजनीतिक प्रोपोगेंडा था, परंतु तथ्यों के प्रति सम्मान के बिना राहुल विदेशी जमीं पर अप्रमाणित सूचना फैला कर देश को ही नुकसान पहुंचा रहे थे, न कि केवल सत्ताधारी दल को। एक अन्य विवाद उन्होंने यह वक्तव्य देकर पैदा कर दिया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा मुस्लिम ब्रदरहुड एक ही किश्ती पर सवार हैं। राष्ट्रवादी, जो कि आरएसएस के सामाजिक सेवा संगठन होने का दावा करते हैं, वे अपना तापमान खो बैठे तथा देश में एक विस्फोटक चर्चा आरंभ हो गई। आखिरकार आरएसएस, चाहे उसके हिंदुओं से संबंध हों, हिंसा को प्रोत्साहित करने वाला संगठन नहीं है तथा उसके कार्यकर्ता देश में प्राकृतिक आपदाओं में अपनी राहत सेवाएं दे रहे हैं, साथ ही नेपाल के भूकंप के दौरान भी उन्होंने सेवाएं दीं। अब वे केरल में बाढ़ पीडि़तों की मदद कर रहे हैं। परंतु क्या राहुल जानते हैं कि मुस्लिम ब्रदरहुड को मिस्र, बहरीन, रूस, सउदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है। यह अंतरराष्ट्रीय सुन्नी इस्लामिक संगठन हिंसा तथा सांप्रदायिक नरसंहार के लिए जाना जाता है।

कई बार हम देश के लिए प्रेम के नारे लगाते हैं तथा कई बार हम राष्ट्र हित के विरुद्ध काम करते हैं। यहां तक कि राष्ट्र गीत वंदे मातरम, जो स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास से जुड़ा है, पर भी सवाल उठाए जाते हैं। मैं कामना करता हूं कि इस गीत का संदर्भ गाया जाता है क्योंकि यह बंकिम चंद्र चैटर्जी के आनंद मठ, जो कि स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी है, से है। कुछ लोग इसे गाते हैं तो कुछ इसे गाने से इनकार कर देते हैं। कई बार इसे सांप्रदायिक रंग दिया जाता है तथा मुसलमान इसे इस अथवा उस बहाने से रद कर देते हैं। मेरा मानना है कि क्या राष्ट्र-विरोधी माना जाता है, इसकी व्याख्या और ज्यादा स्पष्ट तरीके से होनी चाहिए। ऐसी अभिव्यक्ति जिससे दुश्मन का हित परिपुष्ट होता हो तथा अपने देश का अहित होता हो, बढ़ गई है। राष्ट्रीय संस्कृति तथा देश के प्रति प्रेम के निर्माण के लिए सामूहिक रूप से विचार करने तथा नकारात्मक गतिविधियों से बचने की जरूरत है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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