सेना के प्रधानमंत्री हैं इमरान खान

By: Aug 25th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

अलबत्ता फांसी, जेल में डालना आदि काम सेना वहां की न्यायपालिका के माध्यम से करवाती है। उसी प्रकार जिस प्रकार वह देश में प्रधानमंत्री चुनवाने का काम वहां की जनता से करवाती है। इमरान खान को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की सारी रस्में सेना ने पाकिस्तान की आम जनता से ही करवाई। इमरान खान भी इसे समझते हैं कि वह प्रधानमंत्री पाकिस्तानी सेना के हैं, वहां की आवाम के नहीं। जिस दिन उन्हें आवाम के प्रधानमंत्री होने का बहम हो जाएगा, उस दिन सेना उन्हें अगला विवाह करने की अनुमति नहीं देगी…

पाकिस्तान की सेना को पिछले कुछ समय से एक अदद प्रधानमंत्री की जरूरत थी। सेना यदि चाहती तो किसी को भी प्रधानमंत्री बना और बिठा सकती थी। सेनाध्यक्ष खुद भी यह गुरुतर भार संभाल सकता था। पाकिस्तान में यह परंपरा अयूब ने शुरू भी कर दी थी, जिसका पालन पाकिस्तानी सेना समय-समय पर करती भी रही है, लेकिन यह इक्कीसवीं शताब्दी चल रही है। मध्ययुग होता, तो सेना यह काम बिना झंझट के कर सकती थी। आधुनिक युग के अपने तौर-तरीके हैं। इस युग में ज्यादा काम और निर्णय पर्दे के पीछे करने की परंपरा बन चुकी है। सेना निर्णय करती है और उसे उचित माध्यम से पूरा करती है, लेकिन जितनी मर्जी एहतियात बरती जाए, कई बार जैसी योजना होती है, उसके अनुरूप परिणाम नहीं भी आते। या फिर सेना जिसको प्रधानमंत्री बनाती है, उसको ही यह बहम हो जाता है कि वह सचमुच प्रधानमंत्री बन गया है। ऐसे प्रधानमंत्री का इलाज सेना को करना पड़ता है, परंतु चुनना उसके लिए भी माध्यम ही पड़ता है। सेना सीधे-सीधे दखलअंदाजी नहीं कर सकती। भुट्टो को यही बहम हो गया था कि वह असली प्रधानमंत्री है। इसलिए सेना को विवश होकर उसे फांसी देनी पड़ी। फिर उसकी बेटी बेनजीर को भी किसी समय यही भ्रम हो गया था। उसे सेना ने सही रास्ते पर चलने के अनेक अवसर दिए, लेकिन वह डाटर आफ ईस्ट बनने के फरेब में आ गई। इसलिए उसे भी समय से पहले यह ग्रह छोड़ना पड़ा। नवाज शरीफ को भी सुधरने के अनेक अवसर सेना ने दिए थे।

जब वह अटल जी से बातचीत कर रहे थे और दोनों देशों में दोस्ती की लकीर के लिए रंगों की तलाश कर रहे थे, तो सेना ने कारगिल में भारत पर हमला कर, उन्हें यह बताया था कि रंगों का डिब्बा सेना के पास रहता है। इसमें से कौन सा रंग प्रयोग करना है काला या सफेद, इसका फैसला पाकिस्तान की सेना करती है, प्रधानमंत्री नहीं, लेकिन नवाज शरीफ फिर नहीं माने। पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव लड़ने की इच्छा पालते रहे। उसी का परिणाम है कि आज बाप-बेटी दोनों जेल में सड़ रहे हैं। अलबत्ता फांसी, जेल में डालना इत्यादि काम सेना वहां की न्यायपालिका के माध्यम से करवाती है। उसी प्रकार जिस प्रकार वह देश में प्रधानमंत्री चुनवाने का काम वहां की जनता से करवाती है। इमरान खान को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की सारी रस्में सेना ने पाकिस्तान की आम जनता से ही करवाई थीं। इमरान खान भी इसे बखूबी समझते हैं कि वह प्रधानमंत्री पाकिस्तानी सेना के हैं, वहां की आवाम के नहीं। जिस दिन उन्हें आवाम के प्रधानमंत्री होने का बहम हो जाएगा, उस दिन सेना उन्हें अगला विवाह करने की अनुमति नहीं देगी। इसलिए इमरान खान की सरकार भारत से संबंध सुधारने की दिशा में कितने कदम बढ़ा पाएगी, इसके बारे में अभी से कुछ कहना संभव नहीं होगा। पाकिस्तानी सेना को प्रधानमंत्री नियुक्त करने की जरूरत थी, यह बात तो पाकिस्तान की राजनीति को नजदीक से देखने वालों को आसानी से समझ आ सकती है, लेकिन इमरान खान को नवजोत सिंह सिद्धू की क्या जरूरत थी, इमरान खान खुद तो कभी इसका खुलासा करेंगे नहीं।

सिद्धू इसके बारे में खुद क्या बताएंगे। वैसे वह कह ही रहे हैं कि उनके यार ने उन्हें अपनी ‘खुशी में बुलाया है, तो जाऊं कैसे नहीं।’ यार की यारी की तो मिसाल दी जाती है और फिर सिद्धू तो यारों के यार हैं, लेकिन थोड़ी हैरानी होती है कि इमरान खान ने अपनी दो-तीन शादियों में से किसी में भी अपने इस पुराने यार को नहीं बुलाया। ये आपसी बातें तो ये दोनों यार जानते होंगे, लेकिन इमरान पठान ने सिद्धू का स्वागत करीने से किया। उनके साथ पीओजेके का सदर बिठा दिया और जफ्फी के लिए अपना सेनापति बाजवा भेज दिया। अब सिद्धू साहिब कह रहे हैं कि ‘मेढ़े क्या पता मेरे साथ कौन बैठा है, जब सेनापति आए बड्डा तो मैं इनकार कैसे कर सकता था। आखिर तहजीब भी कोई चीज है।’ बात तो सिद्धू की दुरुस्त है, लेकिन आगे से उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि जब किया यार के घर जाएं, तो उसकी भी तहजीब के बारे में थोड़ा बहुत पता कर लिया करें। एक प्रश्न अब भी पाकिस्तानी सेना की गतिविधि और रणनीति पर गहरी नजर रखने वालों को तंग कर रहा है। आखिर पाकिस्तानी सेना को हमारे मणिशंकर अय्यर की क्या जरूरत थी। इमरान की जरूरत तो समझ में आती है। क्या पाकिस्तानी सेना मणिशंकर का प्रयोग करके नरेंद्र मोदी को हटाना चाहती है? कडि़यां कहां-कहां जुड़ती हैं, पाकिस्तानी सेना जम्मू-कश्मीर में आतंकी भेजती है, सीमा समीप के गांवों पर हमले कर आम नागरिकों को मारती है। जम्मू-कश्मीर में  पाकिस्तानी आतंकियों और कुछ सीधे पाकिस्तानी सेना द्वारा आम भारतीय नागरिक मारे जाएंगे, तो जाहिर है लोगों में गुस्सा आएगा। ठीक उसी समय कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर को पाकिस्तान बुलाया जाता है और वहां के टीवी से वह भारतीयों को सीधे-सपाट कहते हैं कि जब तक मोदी भारत के प्रधानमंत्री रहेंगे, तब तक शांति नहीं हो सकती।

इस काम के लिए मणिशंकर की उपयोगिता पाकिस्तान के लिए समझ में आती है। इस बार फिर जब पाकिस्तानी सेना ने इमरान खान की प्रधानमंत्री गद्दी पर ताजपोशी की, तो उन्हें एक बार फिर मणिशंकर की जरूरत पड़ी। मणिशंकर फिर प्रकट हुए और बोले भारत को इमरान खान से बातचीत करनी चाहिए। इस बयान के आते ही सोनिया कांग्रेस ने उन्हें तुरंत पार्टी में नेता पद पर बहाल कर दिया। पाकिस्तान के लिए इमरान खान और  मणिशंकर अय्यर की उपयोगिता तो समझ में आती है। सिद्धू तो बेवजह ‘गुरु दे ताली’ के कहते-कहते  ताली पिटवाने के चक्कर में पिट गए।

ई-मेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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