स्वास्थ्य के बिना शिक्षा अधूरी है

By: Aug 31st, 2018 12:06 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

आज जब विद्यार्थी को विभिन्न प्रकार के नशे तथा मोबाइल का गुलाम होने से बचाना है, तो वैज्ञानिक समाधान किसी फिटनेस के विशेषज्ञ से हर विद्यालय को अपने यहां शुरू करवाना होगा, ताकि हर विद्यार्थी का शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो सके…

शिक्षा मानव का शारीरिक व मानसिक रूप से संपूर्ण विकास करती है, ताकि मानव अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से सफलतापूर्वक निपटकर खुशहाल व सम्मानित जीवनयापन कर सके। राज्य के शिक्षा संस्थानों में रट्टे का शिक्षण तो खूब हो रहा, मगर संस्थानों के पास शारीरिक विकास तथा अन्य गतिविधियों के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है। विद्यालय में बहुत अच्छे अंकों में पास होकर विद्यार्थी नामीगिरामी संस्थानों से चिकित्सक, अभियंता, प्रबंधक, अधिकारी-कर्मचारी तो बन रहा है, मगर फिटनेस के अभाव में वह अपने जीवन के साठ वर्षों तक अपने शिक्षण, प्रशिक्षण तथा अनुभव का सही सेवा निष्पादन नहीं कर पा रहा है। विकास की इस दौड़ में कदम से कदम मिलाने के लिए निकट भविष्य में इनसान को और भी फिटनेस की जरूरत पड़ेगी। फिटनेस कार्यक्रम से जहां प्रदेश के विद्यालय खेल नर्सरी का काम कर भविष्य के विजेता खिलाड़ी निकलने का माध्यम है, वहीं पर सामान्य जीवन जीने के लिए फिटनेस जो बहुत जरूरी है, उसकी नींव भी विद्यालय से ही रखी जाती है।

आज की शिक्षा प्रणाली में फिटनेस के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है। बचपन से किशोर व किशोर से युवा अवस्था तक कैसे फिटनेस का विकास किया जाएगा, इसका इस समय विद्यालय में कोई भी कार्यक्रम नहीं है और न ही इस विषय पर निकट भविष्य में कोई योजना बनने वाली है। राज्य में फिटनेस के लिए कोई भी वैज्ञानिक समाधान अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। स्वास्थ्य शिक्षा पूरे विश्व में शिक्षा का अभिन्न अंग है, मगर हमारे देश में चिकित्सा विभाग का नाम ही स्वास्थ्य विभाग रखा हुआ है। जैसे बच्चा कब किस उम्र में भाषा अंक व व्याकरण को समझता है, ठीक उसी तरह जीवन के शुरुआती 18 वर्षों तक मानव का शारीरिक विकास भी होता रहता है। इसलिए इस उम्र अवधि में विभिन्न शारीरिक क्षमताओं का विभिन्न आयु अवधि में ही संपूर्ण विकास होता है। जैसे स्पीड के लिए आठ वर्ष से 12 वर्ष तक काम नहीं किया, तो फिर भविष्य में उसे हम ज्यादा नहीं बढ़ा सकते हैं।

इसी तरह विभिन्न क्रियाओं को अलग-अलग समय में वैज्ञानिक तरीके से विद्यार्थियों में लोकप्रिय बनाकर उनके दैनिक जीवन के कार्यक्रम में शामिल करके हम उन्हें भविष्य के फिट नागरिक बना सकते हैं। आज जब हर बच्चा विद्यालय जा रहा और चार वर्ष से लेकर 17 वर्ष तक का जीवन विद्यालय परिषद में अधिक गुजर रहा है, तो फिर हर विद्यालय के पास हर विद्यार्थी की फिटनेस को ठीक रखने का वैज्ञानिक कार्यक्रम होना बहुत जरूरी हो जाता है। सत्तर के दशक में फिटनेस पर हर विद्यालय में भारत सरकार ने भी अपने कार्यक्रम चलाए, मगर वे सब आगे नहीं बढ़ पाए, क्योंकि उस समय इस सबकी इतनी जरूरत नहीं थी। चार दशक पूर्व विद्यालय पहुंचने के लिए हर विद्यार्थी को औसतन कम से कम चार-पांच किलोमीटर प्रतिदिन आना-जाना होता था। हर विद्यार्थी अपने मां-बाप के पेशे में अपना योगदान भी देता था।

अधिकतर हिमाचली किसान-बागबान या विद्यार्थी को घर में काम करना पड़ता था। इसलिए सवेरे की प्रार्थना सभा तथा ड्रिल का पीरियड विद्यार्थियों को बोझ लगता था। उस समय प्रदेश व देश में बहुत कम उच्च शिक्षा, तकनीकी व चिकित्सा शिक्षा के संस्थान होने के कारण इस स्तर पर दाखिला लेने के लिए भी अधिक पढ़ाई करनी पड़ती थी। इसलिए धीरे-धीरे ड्रिल का पीरियड व घर मंे काम करने तथा खेलने का समय पढ़ाई ने ले लिया और जो फिटनेस बिना किसी फिटनेस कार्यक्रम के हो जाती थी, बंद होती चली गई। बाद में अधिक सरकारी व निजी विद्यालय खुल जाने तथा वाहनों में विद्यालय आने व जाने से पैदल चलना भी बंद हो गया। ऐसे में आज के विद्यार्थी को विद्यालय स्तर पर फिटनेस कार्यक्रम की बेहद जरूरत है, जो इस समय सैनिक स्कूल, नवोदय विद्यालय तथा प्रदेश के कुछ चुनिंदा निजी विद्यालयों को छोड़कर पूरे हिमाचल में कहीं भी देखने को नहीं मिल रही है।

आज जब विद्यार्थी को विभिन्न प्रकार के नशे तथा मोबाइल का गुलाम होने से बचाना है, तो वैज्ञानिक समाधान किसी फिटनेस के विशेषज्ञ से हर विद्यालय को अपने यहां शुरू करवाना होगा, ताकि हर विद्यार्थी का शारीरिक विकास ठीक ढंग से हो सके। शारीरिक क्षमताओं को मापकर उनका सही मूल्यांकन करके विद्यार्थी व उसके अभिभावक को सही सुझाव देकर विद्यार्थियों की फिटनेस के विकास के लिए निकट भविष्य में हर विद्यालय को कार्य करना पड़ेगा, तभी हम सही शिक्षा का निष्पादन करने वाले समझे जाएंगे।


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