उम्मीद की किरणें हैं बेटियां

By: Sep 1st, 2018 12:05 am

रीमा, फतेहपुर धमेटा

बद्दी में नवजात मासूम बच्ची का कचरे के ढेर में मिलना हमारी संकीर्ण मानसिकता और हीनता की पराकाष्ठा है। स्वयं के आधुनिक होने का दावा करने वाले इनसान आज भी संकीर्ण सोच के भंवर में फंसे हैं। न जाने क्यों लड़कों को सिर का ताज और लड़कियों को दीए की बुझती लौ समझा जाता है। मां-बाप ही बच्चियों की जगह कचरे में समझने लगे हैं, तो बाकि पूरी दुनिया से क्या उम्मीद कर सकते हैं। आज उन कलियों को खिलने का मौका भी नहीं दिया जा रहा है, जो भविष्य में फूल बनकर पूरे घर को महकाती हैं। कम से कम अब तो लड़कियों को बोझ मत समझो, जब यही लड़कियां घर को ही नहीं पूरे देश को रोशन कर रही हैं।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App