एचपीयू से 45 साल में 175 छात्रों ने की हिंदी में पीएचडी

By: Sep 14th, 2018 12:01 am

शिमला— हिमाचल प्रदेश में हिंदी भाषा भले ही प्रयोग हो रही हो, लेकिन कहीं न कहीं युवा आज पाश्चात्य हिंदी को भूल रहे हैं। प्रदेश विवि में 1972 में हिंदी भाषा में पीएचडी की सुविधा शुरू की गई थी। जानकारी के अनुसार तब से लेकर आज तक विवि से लगभग 175 छात्र पीएचडी की डिग्री कर निकले हैं। हैरानी की बात है कि विवि से पीएचडी करके निकलने वाले छात्रों ने अभी तक जो विषय चुने हैं, वे सभी लगभग एक जैसे ही रहे हैं। विवि के हिंदी विभाग से आई जानकारी के अनुसार अभी तक छात्रों ने यहां से लोक साहित्य, समाजिक, संस्कृत, लोक गीत, कथा सहित्य, समाजिक यथार्थ, काव्य कविताओं पर ही रिसर्च किया है। इसके अलावा कई ऐसे अहम विषय भी रहे हैं, जिन्हें विवि के तहत पढऩे वाले छात्र टच तक नहीं कर पाए। हिंदी के जिन विषयों पर छात्र अभी तक रिसर्च नहीं कर पाए, उनमें भाषा विज्ञान, काव्य शास्त्र, पाश्चात्य काव्य दूरसंचार और इस तरह के कई विषय हैं। विवि के हिंदी विभाग के सभी प्रोफसर इस बात से चितिंत हैं कि हमारी राजभाषा हिंदी की ओर युवाओं का रुझान कम होता नजर आ रहा है। जानकारी के अनुसार हिंदी में पीएचडी करने वाले ज्यादातर छात्र लोक साहित्य के विषय को भी चुन रहे हैं। इसमें अपनी संस्कृति से जुड़े कई नए पहलु अपने रिसर्च के माध्यम से उजागर कर रहे हंै। वहीं कथा साहित्य के माध्यम से ललित विमर्श, स्त्री विमर्श जैसे समाजिक मुद्दो को उठा रहे हैं। विवि के हिंदी विभाग से भले ही हर साल पांच-पांच  छात्र पीएचडी की डिग्री करते हों, लेकिन जानकारी के अनुसार अब छात्र ज्यादा मेहनत न कर, बल्कि ऑनलाइन ही डिटेल का जुगाड़ कर अपने थिसिस में इस्तेमाल करते हैं। हिंदी के विशेषज्ञों के अनुसार अब छात्रों के हिंदी भाषा में इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में हिंदी की खड़ी बोली के शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार आज के दौर में हिंदी का कम रुझान होने का सबसे बड़ा कारण ऑनलाइन सिस्टम भी कहीं न कहीं है। हिंदी विशेषज्ञ कहते हैं कि विवि में पढऩे वाले छात्र अपने रिसर्च और विषयों के लिए ऑनलाइन थिसिस की सहायता लेते हैं। यही कारण है कि हिंदी विभाग के छात्र भी पाश्चात्य हिंदी और संस्कृत के शब्दों की पहचान और उसके महत्त्व को नहीं समझ पा रहे हैं। विवि से निकले 60 प्रतिशत ऐसे छात्र हंै, जिन्होंने रिसर्च तो अलग-अलग एंगल से ही किया, लेकिन विषय उनके मिले-जुले ही रहे। हर साल विवि को 50 सीटें भरना कई बार मुश्किल भी हो जाता है। हालांकि छात्रों का हिंदी भाषा की ओर रुझान बढ़े, इसके लिए हिंदी विभाग में समय-समय पर कविताओं, काव्य, कहानियों पर परिचर्चा और संगोष्ठी का भी आयोजन किया जाता है। बता दें कि विवि के हिंदी विभाग में सेवारत कई अधिकारियों और प्रोफसरों को विश्व हिंदी दिवस और हिंदी भाषा में बेहतरीन कार्य करने पर सम्मानित भी किया जा चुका है।

भाषा विज्ञान के लिए प्रयोगशाला नहीं

हिमाचल प्रदेश विवि से पीएचडी करने वाले छात्र इस वजह से भी हिंदी के भाषा विज्ञान विषय पर रिसर्च नहीं कर पाए, क्योंकि उन्हें इसका ज्ञान ही नहीं है। भाषा विज्ञान में हिमाचल के छात्रों का पिछड़े रहने का सबसे बड़ा कारण प्रयोगशाला का न होना है। हैरानी की बात है कि  45 सालों से अभी तक विवि में भाषा विज्ञान के लिए प्रयोगशाला का बंदोबस्त ही नहीं किया गया। विवि में अगर यह सुविधा हिंदी विभाग के छात्रों को उपलब्ध करवाई जाती तो वे हिंदी के व्यंजनों को सही रूप से उपकरणों के माध्यम से माप व समझ सकते थे।

हर साल 45 फीसदी कम हो रहा रुझान

हिमाचल प्रदेश में छात्रों के रुझान में हर साल गिरावट आ रही है। प्रदेश भर के कालेजों से पढऩे के बाद छात्र विवि के हिंदी विभाग में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए आते हैं। आज से दस व पांच साल पहले 5000 से 6000 तक के छात्र एंट्रांस देने विवि में आते थे। वहीं अब साल धर साल इस आकंड़े में भारी गिरावट हो रही है। हैरानी की बात है कि 2017 में जहां 1195 छात्र प्रवेश परीक्षा देने आए थे, इस बार 665 ही छात्र इस बार प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए आ पाए।

भाषा को मन से अपनाने की जरूरत

विवि के हिंदी विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. नरेश कुमार ने कहा कि हिंदी को मन से अपनाने की जरूरत है। जब आज की युवा पीढ़ी हिंदी को मन से अपनाएगी, तभी हिंदी की महत्त्वता को वापस लोटाया जा सकता है। वहीं हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलना भी अब आज की जरूरत है।


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