झूठ का पुलिंदा है ‘आयुष्मान भारत’

By: Sep 27th, 2018 12:08 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

इस योजना के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी इकट्ठी की जाएगी। आयकर दाताओं की जेब से टैक्स के रूप में निकले हजारों करोड़ रुपए की लागत से लगभग 50 करोड़ लोगों का डेटा इकट्ठा किया जाएगा और फिर वह जानकारी न केवल निजी अस्पतालों, बल्कि फार्मास्युटिकल कंपनियों तक भी पहुंच जाएगी। ‘आयुष्मान भारत’  एक इतना बड़ा पब्लिक डेटा प्लेटफार्म है, जो इसके भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए अवैध कमाई का बहुत बड़ा साधन बन जाएगा…

सन् 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी हर जनसभा में और हर पत्रकार सम्मेलन में डींगें हांका करते थे कि उनकी सरकार ने ‘खाद्य सुरक्षा बिल’ पास कर दिया है। मानो, एक कानून बन जाने मात्र से देश की गरीबी और भुखमरी दूर हो गई। भूखों मरने वाले लोगों को भोजन मिलने लग गया, किसानों की आत्महत्याएं समाप्त हो गईं। आज किसी को इसका नाम भी याद है क्या? खुद राहुल गांधी को ही आज इसकी याद है क्या? प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने ताबड़-तोड़ घोषणाएं की थीं, नई-नई योजनाएं आरंभ की, योजनाओं को आकर्षक नाम दिए, उनमें से अधिकांश का नाम तो खुद मोदी को भी याद नहीं होगा। प्रधानमंत्री मोदी की नवीनतम योजना ‘आयुष्मान भारत’ है, जिसका मकसद गरीबों और वंचितों को बहुत सस्ती स्वास्थ्य योजना का लाभ देना है। यह सच है कि दक्षिण पूर्व एशिया में भारत अपनी जीडीपी का सबसे कम भाग, यानी सिर्फ 1.1 प्रतिशत, स्वास्थ्य सेवाओं पर लगाता है। भारत से नीचे सिर्फ म्यांमार है, जो अपनी जीडीपी का 0.5 प्रतिशत ही स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए खर्च करता है, जबकि मालदीव 6.2 प्रतिशत खर्च के साथ सबसे ऊपर के पायदान पर है। मालदीव के बाद थाईलैंड 3.7 प्रतिशत, भूटान 2.7 प्रतिशत, श्रीलंका 1.4 प्रतिशत, बांग्लादेश 1.3 प्रतिशत और इंडोनेशिया अपनी जीडीपी का कुल 1.2 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रहे हैं। इसी कड़ी में आगे के आठवें नंबर की पायदान पर भारत है, जो अपनी जीडीपी का 1.1 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है।

नेशनल हैल्थ स्टैक के नाम से आयुष्मान भारत का जो सबसे पहला दस्तावेज सामने आया है, वह स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित होने के बजाय आंकड़ों और संभावित रोगियों की जानकारियां इकट्ठी करने का कार्यक्रम अधिक है। यह आईटी आधारित कार्यक्रम है, जिसमें रोगियों के इलाज की कम, और रोगियों की जानकारी इकट्ठी करने की ललक ज्यादा है। खुद आधार पर आंकड़े और जानकारियां लीक होने का आरोप लगता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की आईटी टीम अपनी चुनावी सफलता के लिए मतदाताओं से संबंधित आंकड़े और जानकारियां इकट्ठी करने और अपने लाभ के लिए उनका उपयोग करने के लिए बदनाम है। भाजपा आईटी सैल की तकनीकी महारत से हम अनजान नहीं हैं और नेशनल हैल्थ स्टैक दस्तावेज से जाहिर है कि इस योजना के माध्यम से भी देश के उस सबसे बड़े तबके के बारे में आवश्यक जानकारी इकट्ठी की जाएगी, जो मतदान में सबसे आगे रहता है। ‘आयुष्मान भारत’ की सफलता के लिए विभिन्न निजी अस्पतालों को भी योजना के साथ जोड़ा जा रहा है। इस योजना के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी इकट्ठी की जाएगी। आयकर दाताओं की जेब से टैक्स के रूप में निकले हजारों करोड़ रुपए की लागत से लगभग 50 करोड़ लोगों का डेटा इकट्ठा किया जाएगा और फिर वह जानकारी न केवल निजी अस्पतालों, बल्कि फार्मास्युटिकल कंपनियों तक भी पहुंच जाएगी। ‘आयुष्मान भारत’  एक इतना बड़ा पब्लिक डेटा प्लेटफार्म है, जो इसके भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए अवैध कमाई का बहुत बड़ा साधन बन जाएगा।

आयुष्मान भारत से लोगों का स्वास्थ्य सुधरे या न सुधरे, स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं देने वाली कंपनियों का स्वास्थ्य अवश्य सुधर जाएगा। ‘आयुष्मान भारत’ का यह एक पहलू मात्र है। दूसरा पहलू वही है, जिसकी चर्चा हम पहले भी खाद्य सुरक्षा बिल के रूप में कर चुके हैं। खाद्य सुरक्षा बिल पास होने के बाद क्या भारत से भुखमरी दूर हो गई, भूख के कारण होने वाली मौतें कम हो गईं, देश के अन्नदाता किसानों की आत्महत्याओं में कोई कमी आई? उपलब्ध संसाधनों पर गौर किए बिना, उनमें आवश्यक सुधार किए बिना जब कानून बनाए जाते हैं, तो उनका हश्र हमेशा खाद्य सुरक्षा बिल जैसा ही होता है, उस कानून को बनाने वाली सरकार चाहे कोई भी हो। मिड-डे मील, मनरेगा और अन्य जनहितकारी मानी जाने वाली योजनाओं के कार्यान्वयन में जारी भ्रष्टाचार किससे छुपा है? स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि सरकार यदि किसी योजना पर एक रुपया खर्च करती है, तो उसमें से मुश्किल से पंद्रह पैसे ही जनहित के काम आ पाते हैं, शेष 85 पैसे बिचौलियों की जेब में चले जाते हैं। ऐसे में ‘आयुष्मान भारत’ का भविष्य क्या होगा, कल्पना कर पाना मुश्किल नहीं है। देश में अस्पतालों की कमी है, अस्पतालों में सुविधाओं की कमी है, डाक्टरों की कमी है, दवाइयों की कमी है, उपकरणों की कमी है, बिस्तरों की कमी है, यहां तक कि इमरजेंसी वार्ड तक के रोगी फर्श पर पड़े रह जाते हैं। सरकारी अस्पतालों के डाक्टरों की उपस्थिति और रवैये को लेकर सदैव सवाल उठते रहे हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए क्या किया गया है? सरकारी डाक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस के लालच को आप कैसे रोक पाएंगे? इन समस्याओं के प्रभावी समाधान के बिना कोई भी योजना, कोई भी कानून बेमानी है।

‘आयुष्मान भारत’ का कुल बजट 2000 करोड़ रुपए है, जिसमें से आधा, यानी 1000 करोड़ रुपए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का धन है, जो ‘आयुष्मान भारत’ के बिना भी लगना ही था। यह पैसा पहले भी था, अब भी है। बाकी बचे 1000 करोड़ रुपए से डेढ़ लाख अस्पतालों में हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर बनाए जाएंगे। अब इस झूठ को भी परखिए, तो समझ आएगा कि डेढ़ लाख हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोलने के लिए जो 1000 करोड़ की धनराशि बचती है, उसका अर्थ यह है कि हर सेंटर के निर्माण पर लगभग 80,000 खर्च किए जाएंगे।

इतनी कम धनराशि में हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर का बन पाना संभव ही नहीं है। इसलिए होगा यही कि पुरानी डिस्पेंसरियों और अस्पतालों का नाम बदल कर उन्हें हैल्थ एंड वेलनेस सेंटर कहना शुरू कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त जिन दस करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा देने का दावा किया जा रहा है, उसके लिए इस योजना में एक भी पैसा नहीं रखा गया है, सरकार ने इसके लिए कोई धनराशि आवंटित नहीं की है। ऐसे में ‘आयुष्मान भारत’ नाम की यह योजना वस्तुतः झूठ का एक पुलिंदा मात्र है, मोदी की अन्य अधिसंख्य योजनाओं की तरह इसके टांय-टांय फिस्स होने में भी समय नहीं लगेगा।

ईमेलः indiatotal.features@gmail.


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App