बाल गुरु  प्रणाम

By: Sep 2nd, 2018 12:05 am

राजा कुछ देर तो उसे टकटकी लगाए देखता रहा, फिर उससे चुप न रहा गया और बोला .. बालक तुम तो बड़े अजीब हो, चने खाने में इतना समय लगा रहे हो । इससे तो अच्छा है मुट्ठी भर चने निकालो और दो -तीन बार में गप्प से खा जाओ। लड़के ने ऊपर से नीचे राजा को घूर कर देखा और बोला, श्रीमान आप मेरी बात समझ नहीं पाएंगे क्योंकि आपने भूख नहीं देखी है । तब भी मैं आपको  समझाने की कोशिश करता हूं। मैं सुबह से भूखा हूं । एक -एक करके चने निकालने खाने में समय तो लगता है पर उतनी देर मुझे भूख नहीं लगती। यदि तीन- चार बार में ही चने खा लूं तो  वे जल्दी खत्म हो जाएंगे…

एक अकेला दीपक सैकड़ों और दीपों को प्रकाश दे सकता है। ठीक उसी प्रकार एक ज्ञानी बहुतों को ज्ञान दे सकता है। बहुत से दीप जलाने के बाद भी उस दीप के प्रकाश का तेज कम नहीं होता । शिक्षक एक ऐसा ही दीपक है।

गर्मी के दिन थे सूरज अपने ताप पर था। ऐसे समय में एक लड़का पेड़ की छाया  में बैठा ठंडी- ठंडी हवा खाकर मस्त था। घुटनों से ऊंचा-ऊंचा केवल  एक निकर पहने हुए  था।  धूप से बचाव  के लिए सिर को तौलिए से भी नहीं ढक रखा था। संयोग से वहां का राजा किसी काम से उधर ही आ निकला । लड़के को देखकर वह ठिठक गया। उसके पास एक सफेद थैली थी । उसमें से वह एक चना निकालता थैली बंद करता फिर उसे मुंह में रखकर  बड़े इत्मिनान से  धीरे-धीरे चबाता।  दोबारा फिर थैली खोलता ,उसमें से चना निकालता और पहले की तरह थैली बंद करके उसे खाता। राजा कुछ देर तो उसे टकटकी लगाए देखता रहा फिर उससे चुप न रहा गया और बोला ..

बालक तुम तो बड़े अजीब हो, चने खाने में इतना समय लगा रहे हो। इससे तो अच्छा है मुट्ठी भर चने निकालो और दो -तीन बार में गप्प से खा जाओ । लड़के ने ऊपर से नीचे राजा को घूर कर देखा और बोला श्रीमान आप मेरी बात समझ नहीं पाएंगे क्योंकि आपने भूख नहीं देखी है। तब भी मैं आपको  समझाने की कोशिश करता हूं। मैं सुबह से भूखा हूं। एक-एक करके चने निकालने खाने में समय तो लगता है पर उतनी देर मुझे भूख नहीं लगती यदि तीन- चार बार में ही चने खा लूं तो  वे जल्दी खत्म हो जाएंगे मुझे भूख भी जल्दी लगने  लगेगी। इसलिए सोचा ……..

थोड़ा- थोड़ा करके खाया जाए ।

तुम तो बहुत चतुर हो। तुमसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। बोलो मेरे साथ चलोगे! हां -हां मैं खुली हवा में रहने वाला आजाद पंछी  महल तो मेरे लिए पिंजरा है पिंजरा। चिडि़या की तरह मैं उसमें कैद हो जाऊंगा। जब इच्छा हो तब यहां चले आना इसमें क्या मुश्किल है!

चलता हूं  देखता हूं आपके साथ मेरा क्या भविष्य है।

लड़का ठहरा बातूनी एक बार इंजन चालू हुआ तो चालू !

बोल ही उठा तो आप मुझसे कुछ सीखना चाहते हैं।

बिलकुल ठीक कहा।

इसका मतलब मैं आपका गुरू हुआ।

गुरु ….गुरु नहीं महागुरु । राजा ने हाथ जोड़ दिए ।

महल में पहुंचते ही राजा को  लड़के के साथ दरबार में जाना पड़ा।

आदर के अनुसार वह सिंहासन पर बैठ गया।

लड़का 2 मिनट तो खड़ा रहा फिर तपाक से बोला वाह महाराज यहां आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लिया। अपने गुरु को ही भूल गए।

राजा बहुत शर्मिंदा हुआ । तुरंत अपने सिंहासन से उतर पड़ा। सेवक को  अपने से भी ऊंचा सिंहासन लाने की आज्ञा दी। बैठिए बालगुरू। राजा ने बड़ी शालीनता से कहा।

बस महाराज ! मैं चलता हूं फिर आऊंगा। आज का पाठ

पूरा हुआ। आपको मालूम हो गया कि गुरु का स्थान क्या होता है। बालगुरु चल दिया।

राजा सोच रहा था, जिससे भी हमें कुछ सीखने को मिले अवश्य सीखना चाहिए चाहे वह बड़ा हो या छोटा और वह सम्मान के योग्य भी है।  राजा का स्वतः सिर झुक गया ..बाल गुरु  प्रणाम!

तभी तो कहते हैं किसी को छोटा बड़ा मत समझो जहां कुछ ज्ञान मिले उसे ले लो।


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