महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग कब तक ?

By: Sep 17th, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

जिन-जिन महाविद्यालयों में जिस-जिस खेल की सुविधा है, वहां पर उस खेल का विंग चला देना चाहिए। इससे जहां खिलाड़ी को वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षक मिलेगा, वहीं पर उसे ठीक तरह से खाने, रहने की व्यवस्था भी अपने महाविद्यालय में ही मिल जाएगी…

किसी भी स्तर पर ऊपर उठना है, तो उसके लिए लगातार वैज्ञानिक ढंग से शिक्षण व प्रशिक्षण अनिवार्य हो जाता है। हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन दशकों से स्कूली स्तर पर कई खेलों के खेल छात्रावास लड़के व लड़कियों के लिए विभिन्न जिलों में चल रहे हैं। अंडर-21 वर्ष आयु वर्ग के खिलाडि़यों के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण व राज्य खेल विभाग के खेल छात्रावास चल रहे हैं, मगर महाविद्यालय स्तर पर हिमाचल प्रदेश में किसी भी महाविद्यालय के पास आज तक किसी खेल का कोई भी विंग शुरू नहीं हो पाया है। बड़े महाविद्यालयों के पास तो दो हजार के आसपास विद्यार्थी हैं और उनके लिए खेल व अन्य गतिविधियों को चलाने के लिए शारीरिक शिक्षा का एकमात्र प्राध्यापक होता है।

यह अलग बात है कि कई स्वयंसेवी प्रशिक्षकों के सहारे हमीरपुर में एथलेटिक्स व जूडो, सुंदरनगर में मुक्केबाजी तथा अब नालागढ़ में भारोत्तोलन खेल में राष्ट्रीय स्तर तक हिमाचल प्रदेश व प्रदेश विश्वविद्यालय को पदक मिलते रहते हैं। इन स्वयंसेवी प्रशिक्षकों ने अपने दम पर कई खिलाडि़यों के रहने व खाने की व्यवस्था भी स्वयं ही कर रखी थी। यानी कुल मिलाकर खेल विंग का वातावरण बनाया हुआ था। इन प्रशिक्षकों में से जहां-जहां प्रशिक्षक केंद्र छोड़ चुके हैं, वहां पर अब फिर खेल का स्तर नीचे आ गया है। इस सबसे पता चलता है कि महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग खेलों में उत्कृष्ट परिणामों के लिए बहुत जरूरी है। स्कूली स्तर पर जहां अच्छा प्रशिक्षक खेल छात्रावास में है, वहां पर राष्ट्रीय स्तर के पदक वहां के खिलाडि़यों ने जीते हैं। पपरोला में जब जनम चंद कटोच बास्केटबाल के प्रशिक्षक थे, एशियाई स्कूली खेलों में बास्केटबाल की भारतीय टीम में कई खिलाड़ी पपरोला खेल छात्रावास प्रशिक्षण से निकल कर वहां तक पहुंचे थे। हाकी प्रशिक्षक अशोक शर्मा जब सुंदरनगर खेल छात्रावास आए, तो वहां से भी हिमाचली खिलाडि़यों ने राष्ट्रीय खेलों की अंडर-17 आयु वर्ग में उपविजेता ट्राफी उठाई थी। हाकी प्रशिक्षक चंद्रशेखर के प्रशिक्षण में माजरा खेल छात्रावास की लड़कियां राष्ट्रीय स्कूली खेलों में लगभग हर वर्ष पदक झटक लेती हैं, मगर उसके बाद राज्य के महाविद्यालय में प्रशिक्षण सुविधा के लिए खेल विंग जैसा कोई प्रावधान न होने के कारण वह पड़ोसी राज्यों के महाविद्यालयों में चल रहे खेल विंगों में प्रवेश लेकर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रख रहे हैं। राज्य में चल रहे खेल छात्रावासों के कारण ही कबड्डी महिला व पुरुष में आज अपना दबदबा एशियाई खेलों तक बनाए हुए है। पूजा ठाकुर व कविता ठाकुर जहां धर्मशाला खेल छात्रावास के प्रशिक्षण कार्यक्रम से निकल कर एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक प्राप्त कर सकी हैं, वहीं पर प्रियंका नेगी व रितु नेगी ने भी राज्य खेल छात्रावास बिलासपुर में गहन प्रशिक्षण प्राप्त कर एशियाई खेलों में रजत पदक का सफर तय किया है। अजय ठाकुर भी भारतीय खेल प्राधिकरण खेल छात्रावास बिलासपुर की ही देन है।

इसी तरह और भी कई खिलाड़ी हैं, जो लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम की देन हैं। शिक्षा संस्थानों में कार्यरत शारीरिक शिक्षा का शिक्षक जहां शिक्षा संस्थान के हर विद्यार्थी की सामान्य फिटनेस के लिए तो जरूर उत्तरदायी है, मगर खेल में उसने कभी खेला ही नहीं, उसके प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए तो महाविद्यालय सरपट खेल का विंग चाहिए ही। हिमाचल प्रदेश में खेल प्रशिक्षण के लिए बहुत ही उपयुक्त जलवायु है, मगर राज्य में खेल प्रशिक्षण के लिए अभी बहुत ही सीमित साधन हैं। कई बार इस विषय पर ध्यान आकर्षित किया जा चुका है कि राज्य में महाविद्यालय स्तर पर खेल विंगों की बेहद जरूरत है, लेकिन परिस्थितियां जस की तस बनी हुई हैं। वैसे तो जिला स्तर पर हिमाचल में खेल ढांचा काफी विकसित हुआ है और किसी-किसी खेल का वहां प्रशिक्षक भी नियुक्त है, मगर हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए 20 किलोमीटर के लिए कई बार तो एक घंटे से भी अधिक समय लग जाता है। हिमाचल के महाविद्यालयों में अधिकतर विद्यार्थी 15-20 किलोमीटर सफर तय करके ही महाविद्यालय पहुंच पाते हैं, फिर शाम को वे फिर बस से अपने-अपने घरों को चले जाते हैं। प्रशिक्षण के लिए उनके पास समय ही नहीं होता है। इसलिए भी महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग जरूरी हो जाता है। जिन-जिन महाविद्यालयों में जिस-जिस खेल की सुविधा है, वहां पर उस खेल का विंग चला देना चाहिए। इससे जहां खिलाड़ी को वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षक मिलेगा, वहीं पर उसे ठीक तरह से खाने, रहने की व्यवस्था भी अपने महाविद्यालय में ही मिल जाएगी। पंजाब के विश्वविद्यालयों ने अपने यहां महाविद्यालय स्तर पर खेल विंग चला कर कई बार अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला ने तो कई महाविद्यालयों में स्वयं के खर्चे पर खेल विंग चलाए हैं। खेल में अग्रणी राज्यों ने अपने खिलाडि़यों के लिए महाविद्यालय स्तर पर अच्छी प्रशिक्षण सुविधा दी है। इसलिए देश के अधिकांश पदक विजेता खिलाड़ी खेल छात्रावासों तथा खेल विंगों से निकल कर आ रहे हैं। इन्हीं राज्यों की तर्ज पर हिमाचल अपने महाविद्यालयों के खिलाड़ी विद्यार्थियों को खेल विंग जैसी खेल प्रशिक्षण सुविधा देकर प्रदेश की संतानों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकने का मौका दे।


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