संघ के स्वरूप में बदलाव के निहितार्थ

By: Sep 20th, 2018 12:08 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

दरअसल, मुस्लिम विरोध की उग्रता में मोदी और शाह बहुत आगे चले गए थे और हिंदू राष्ट्र के निर्माण को लेकर उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में इतनी उम्मीदें जगा दी थीं कि अब वापस लौटना आसान नहीं था। यही कारण है कि मोहन भागवत से यह कहलवाया जा रहा है कि संघ सर्वयुक्त भारत में विश्वास करता है, और जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए, उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा। इस बयान के बाद संकेत यह जाएगा कि मोदी और शाह तो जो कुछ कर रहे हैं वह देशहित में है और संघ के निर्देश पर हो रहा है…

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान माला ‘भविष्य का भारत’ शृंखला के अपने व्याख्यान के पहले दिन बहुत सी ऐसी बातें कहीं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी, भाजपा प्रमुख अमित शाह के स्टैंड से बिलकुल अलग हैं। संघ प्रमुख ने आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के योगदान को सराहनीय बताया और कहा कि कांग्रेस ने देश को कई बड़े महापुरुष दिए हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही नहीं, भाजपा के उत्साही कार्यकर्ता भी कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देते हैं, जबकि मोहन भागवत ने कहा कि संघ सर्वयुक्त भारत में विश्वास करता है, किसी से मुक्त भारत में नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि संघ देश की विविधता में भरोसा करता है।

इसके बाद दूसरे दिन उन्होंने हिंदुत्व के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि वैदिक काल में हिंदू नाम का कोई धर्म नहीं था, बल्कि सनातन धर्म हुआ करता था। उन्होंने कहा कि जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए, उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा। संघ प्रमुख ने शिक्षाविद सर सय्यद अहमद खान का उद्धरण देते हुए कहा कि जब सर सय्यद अहमद खान ने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की, तो लाहौर में आर्य समाज ने उनका अभिनंदन किया था, क्योंकि सर सय्यद अहमद खान मुस्लिम समुदाय के पहले छात्र थे, जिन्होंने बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की थी। भागवत बताते हैं कि उस समारोह में सर सय्यद अहमद खान ने इस बात पर दुख प्रकट किया था कि आर्य समाज ने उन्हें ‘अपने समुदाय’ का नहीं माना।

मोहन भागवत के इन बयानों ने कांग्रेस को संजीवनी दे दी है और अब कांग्रेस मोहन भागवत के बयानों का भी हवाला दे सकेगी। दूसरी ओर सोशल मीडिया में भी बदलाव देखने को मिला है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आलोचना का दौर एकदम से धीमा हो गया है। समझना यह होगा कि यह संघ की स्थापित विचारधारा का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एक नई रणनीति है। यह सच है कि समय के साथ व्यक्ति बदलता है। यदि किसी संस्था का सर्वोच्च अधिकारी बदल जाए, तो कई बार संस्था का चरित्र बदलना शुरू हो जाता है। संभव है कि संघ के नजरिए में भी कुछ बदलाव आना शुरू हुआ हो, लेकिन इस बात की संभावना अधिक है कि चुनावों के मद्देनजर यह भाजपा और संघ की नई रणनीति हो। अगर ताजा घटनाक्रम पर नजरसानी की जाए, तो स्पष्ट हो जाएगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में मिली हार के बाद भाजपा की रणनीति में आया बदलाव स्पष्टतः देखने को मिल रहा है। मोदी-शाह की जोड़ी ने समझ लिया है कि विकास का उनका जुमला फेल हो गया है, मुसलमान डरे हुए हैं और हिंदू नाराज हैं, भाजपा के मुख्यमंत्री भ्रष्ट और नाकारा साबित हो रहे हैं, लेकिन उन्हें एकदम से बदल पाना संभव नहीं है। मोदी की घोषणाएं हवाई सिद्ध हुई हैं और भाजपा के सहयोगी दलों में डर और गुस्से की मिली-जुली भावना है। विपक्ष की एकता में दरारों के बावजूद भाजपा के लिए खतरा बढ़ा है। इन सबके मद्देनजर अब भाजपा ने छोटे-छोटे वोट बैंकों को लुभाने की रणनीति अपनाई है। दलितों को लुभाने का प्रयास असफल होता देखकर मोदी बोहरा मुसलमानों के धर्मगुरू के दरबार में नंगे पांव पहुंचे और उन्होंने वहां वजू किया।

यह बदलाव यूं ही नहीं आया है, लेकिन मोदी के इस कदम के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में निराशा देखने को मिली। कार्यकर्ताओं में उपजी निराशा को बढ़ने से रोकने के लिए ही अब संघ को आगे किया गया है। यह कोई ढका-छुपा तथ्य नहीं है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भाजपा सरकार और संघ में हमेशा तालमेल रहा है, इसलिए यह कहना कि भागवत अचानक मोदी के स्टैंड से अलग स्टैंड ले रहे हैं, भूल होगी। दरअसल, मुस्लिम विरोध की उग्रता में मोदी और शाह बहुत आगे चले गए थे और हिंदू राष्ट्र के निर्माण को लेकर उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में इतनी उम्मीदें जगा दी थीं कि अब उनके लिए वापस लौटना आसान नहीं था। यही कारण है कि मोहन भागवत से यह कहलवाया जा रहा है कि संघ सर्वयुक्त भारत में विश्वास करता है, और जिस दिन हम कहेंगे कि हमें मुसलमान नहीं चाहिए, उस दिन हिंदुत्व नहीं रहेगा। मोहन भागवत के इस बयान के बाद संकेत यह जाएगा कि मोदी और शाह तो हिंदुत्व की बात से पीछे नहीं हटे थे, पर वे जो कुछ कर रहे हैं वह देशहित में है और संघ के निर्देश पर हो रहा है। यानी, सांप भी मरा और लाठी भी सलामत। भाजपा को समझ आ गया है कि उसकी सीटें खतरे में हैं, विकास का उसका नारा खोखला साबित हो चुका है और उसके लिए हिंदुत्व का कार्ड खेलने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था। फिर जब हिसाब यह बना कि हिंदुत्व के कार्ड से भी बहुमत नहीं आ सकता, तो रणनीति में एक और नया बदलाव यह किया गया कि हर छोटे-बड़े तबके से पींगें बढ़ाई जाएं। मुसलमानों को भी खुश करने की जुगत भिड़ाई जाए, लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि उग्र हिंदुओं के जिस वर्ग का समर्थन हासिल था, वह हाथ से न फिसल जाए। बोहरा समुदाय बहुत संकीर्ण विचारों वाला वर्ग है। महिलाओं का शोषण यहां सबसे ज्यादा होता है। तीन तलाक का नारा लगाने वाले मोदी यहां यूं ही नहीं गए। यह ध्यान देने की बात है कि बोहरा मुसलमानों में बड़े व्यवसायी शामिल हैं और वे खूब चंदा देते हैं।

इस वर्ग के धर्मगुरू से भाजपा को बड़ा चंदा मिलता है, लेकिन मुसलमानों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना खतरे से खाली नहीं था। यही कारण है कि भाजपा ने मोहन भागवत नामक बह्मास्त्र का प्रयोग किया है, ताकि भाजपा के अनुषंगी संगठनों में सही संकेत जाए और संघ व भाजपा के कार्यकर्ताओं को समझाना आसान हो जाए। मोहन भागवत के इन बयानों का असर यह होगा कि मोदी और शाह को अपना स्टैंड बदलने में परेशानी नहीं होगी और आम कार्यकर्ताओं को रणनीति की बारीकियां समझाने की उलझन भी नहीं होगी। संघ और भाजपा ‘भक्तों’ के संगठन हैं, जहां सवाल-जवाब नहीं होते, निर्देश होते हैं और भक्तों की सेना पूरी निष्ठा से निर्देशों का पालन करती है। यही कारण है कि भाजपा ने स्टैंड बदला है, तो बंदूक मोहन भागवत के कंधे से चलाई है। यह देखना रुचिकर होगा कि चुनावों से पहले भाजपा और क्या-क्या स्वांग रचती है।

 ईमेलःindiatotal.features@gmail.


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