कसौली फेस्टिवल में ज्यादा राजनीति

By: Oct 19th, 2018 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

इस तरह के फेस्टिवल नए उभरते लेखकों के लिए अपनी कृतियां पेश करने के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होते हैं। आयोजकों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि जहां पर ऐसे आयोजन हों, उस राज्य के लेखकों व कलाकारों की कृतियों का प्रदर्शन तथा वहां की संस्कृति को दिखाना अनिवार्य हो। उस राज्य की संस्कृति व सृजनशीलता का प्रदर्शन अनिवार्य किया जाना चाहिए। कसौली फेस्टिवल में राजनीति व उसके क्रियाकलापों पर ज्यादा जोर रहा और इसमें अधिकतर कांग्रेस के ही नेताओं ने हाजिरी भरी…

हाल में हिमाचल के कसौली में संपन्न फेस्टिवल आफ लिटरेचर में तीन दिन के टॉक शो में केवल राजनीति, और राजनीति की ही बात होती रही। हिमाचल के लेखकों व कलाकारों की इसमें भागीदारी व प्रतिनिधित्व नहीं रहा, जिस पर राज्य के लेखकों व कलाकारों ने सहज ही असंतोष प्रकट किया। इस उत्सव की पूरी तस्वीर एक राज्य को मात्र एक ऐसे होटल के रूप में दर्शाती है जहां पर इसका आयोजन जरूर हुआ, किंतु न तो राज्य के लेखकों व कलाकारों को इसमें प्रतिनिधित्व मिला, न ही जनता से उनका परिचय हो पाया। किंतु इसमें इससे भी बुरा यह हुआ कि इसमें मात्र राजनीति और इसके क्रियाकलापों पर ही चर्चा हुई। इस उत्सव में नैनसुख जैसे चित्रकार और चंद्रधर शर्मा गुलेरी जैसी साहित्यिक हस्तियों के सृजन व उनकी कलात्मकता की कोई चर्चा नहीं हुई। हिमाचल का सृजन, साहित्यिक संसार व कलात्मक पक्ष चर्चा से दूर रहा। शायद उत्सव के आयोजक इस बात को लेकर जागरूक नहीं थे। यह उत्सव दिल्ली के अभिजात्य वर्ग की भीड़ मात्र बनकर रह गया जिसने लुटियन संस्कृति तथा साहित्यिक संसार के प्रति अभिजात्य दृष्टिकोण को प्रकट किया। यह उत्सव कसौली में इसलिए आयोजित हुआ क्योंकि यहां के शीत मौसम में खुशवंत सिंह का एक विल्ला अर्थात घर है। इसमें संदेह नहीं कि अमृता प्रीतम को भी स्मरण किया जा सकता था क्योंकि अवस्थिति पंजाब के मैदानों की उपेक्षा कर रही थी। साहित्यिक उत्सवों की कहानी प्रायः देश के विविध दस बड़े शहरों तक फैली है तथा इनमें जो प्रसिद्ध हैं वे हैं जयपुर, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व लखनऊ के साहित्यिक उत्सव।

इस तरह के फेस्टिवल नए उभरते लेखकों के लिए अपनी कृतियां पेश करने के नजरिए से महत्त्वपूर्ण होते हैं। आयोजकों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि जहां पर ऐसे आयोजन हो, उस राज्य के लेखकों व कलाकारों की कृतियों का प्रदर्शन तथा वहां की संस्कृति को दिखाना अनिवार्य हो। उस राज्य की संस्कृति व सृजनशीलता का प्रदर्शन अनिवार्य किया जाना चाहिए। कसौली फेस्टिवल में राजनीति व उसके क्रियाकलापों पर ज्यादा जोर रहा और इसमें अधिकतर कांग्रेस के ही नेताओं ने हाजिरी भरी। मिसाल के तौर पर इसमें सलमान खुर्शीद, मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर व कुछ अन्य कांग्रेस नेता शामिल होने के लिए आए। यहां तक कि करण थापर की पुस्तक से भी राजनीतिक व्यवहार हुआ तथा शशि थरूर की किताब ने भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में भारतीय जनता पार्टी की दक्षिणपंथी राजनीति का अवरोध किया। उधर, पाकिस्तान के मसले पर आलोचना के शिकार हुए नवजोत सिंह सिद्धू से तो वैसे भी साहित्य पर किसी प्रकार की चर्चा की उम्मीद ही नहीं थी। पंजाब के खेल मंत्री अपने प्रदेश में खेल के क्षेत्र में हुई विकास गतिविधियों को दर्शाने में सफल रहे। उत्सव में राजनीति की आमद भारी-भरकम रही जो कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा थी। इसमें साहित्य पर कम ही संवाद हुआ। हाल में हिमाचल से जुड़े कई लेखकों, जिनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान भी है, ने कई किताबें लिखी हैं, किंतु हिमाचल में लिट फेस्ट होने के बावजूद आयोजकों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। चूंकि इन लेखकों का कोई ठोस राजनीतिक जुगाड़ नहीं है, इसलिए वे आयोजन तक अपनी पहुंच नहीं बना सके।

प्रसिद्ध लेखक भानु धमीजा ने एक चर्चित किताब ‘व्हाई इंडिया नीड्स प्रेजिडेंशियल सिस्टम’ लिखी है। हार्पर कोलिन्स द्वारा प्रकाशित यह किताब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर दिल्ली में जारी की गई थी। यह अमेजन की बेस्ट सेलर्स की सूची में है। इस किताब में लेखक महोदय तर्क पेश करते हैं कि अमरीका की तरह की राष्ट्रपति प्रणाली भारत के लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि यह एक ज्यादा विकेंद्रित तथा उत्तरदायी सरकार की स्थापना करती है। इस तरह की सरकार में एक पर्याप्त केंद्रीकृत शक्ति होती है जिसमें विधानपालिका तथा न्यायपालिका का चेक एंड बैलेंस भी होता है।  इसमें सरकार के तीनों अंग स्वायत्तता के साथ काम करते हैं तथा  शक्तिशाली नेतृत्व माडल में तीनों बैलेंसिंग फैक्टर के रूप में विद्यमान रहते हैं। इसमें राष्ट्रपति सीधा जनता द्वारा चुना जाता है जिसके पास पर्याप्त शक्तियां होती हैं, किंतु साथ ही विधानपालिका व न्यायपालिका का उस पर कुछ नियंत्रण होता है जिससे वह एक उत्तरदायी कार्यकारी के रूप में काम करता है। देश की वर्तमान स्थितियों में भानु धमीजा की किताब पर चर्चा करना एक प्रासंगिक बात होती, लेकिन आयोजकों का ध्यान केवल एक विशेष पार्टी के हितों के संवर्धन मात्र पर ही रहा। एक अन्य लेखक प्रोफेसर एनके सिंह की चर्चित किताब ‘ ईस्टर्न एंड क्रास कल्चरल मैनेजमेंट’ भी हाल ही में जर्मन पब्लिशर स्प्रिंजर द्वारा प्रकाशित हुई है। इसमें प्रबंधन को एक ऐसे विषय के रूप में देखा गया है, जिसके न केवल पश्चिमी परिप्रेक्ष्य हैं, बल्कि इसका विकास पूर्वी परिप्रेक्ष्य में होता देख चाणक्य तथा दूसरे लेखकों तक ने इस विषय पर काफी पहले विशद विवेचन कर लिया था। यह किताब भारत से प्रासंगकिता बिठाते हुए प्रभावी प्रबंधन का सिद्धांत पेश करती है जिसका आधार भारत में सैकड़ों संगठनों का व्यापक अध्ययन है। इसी लेखक ने अपना रिसर्च वर्क ‘कोरोनेशन आफ शिवा’ भी पेश किया है जो कि हिमाचल में सातवीं शताब्दी में एकमात्र मोनोलिथिक (पत्थर की नक्काशी) मसरूर मंदिर के निर्माण के रहस्यों को खोलता है। इसी तरह दलाई लामा से नजदीकी से जुड़े तथा हिमाचल से संबंधित 95 वर्षीय लेखक डा. पीएन शर्मा ने हाल में अपनी आत्मकथा लिखी है। 72 कवियों का संग्रह सनातन धर्म सभा, सोलन द्वारा प्रकाशित किया गया है।

हिमाचल सरकार का भाषा तथा संस्कृति विभाग भी है जो इस तरह के मसलों से डील करता है। यह उचित समय है जब विभाग को ऐसे साहित्यिक व कला उत्सव के आयोजन पर विचार करना चाहिए जो पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हों। इनमें चित्रकला प्रदर्शनी, पुस्तक प्रदर्शनी तथा विचार-विनिमय का भी आयोजन किया जाना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मसरूर के मंदिरों पर तथा मेरी किताब की लांचिंग के लिए सम्मेलन का आयोजन किया था। इसका पाठकों तथा साहित्य से जुड़े लोगों ने शानदार स्वागत किया था। उस प्रकार के उत्सवों का वन टाइम अफेयर (एक ही बार आयोजन) होने के बजाय संस्थानीकरण किया जाना चाहिए।

 ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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