क्यों नहीं मिल रहा बढ़ा हुआ समर्थन मूल्य

By: Oct 23rd, 2018 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

इस समस्या का उपाय यह है कि वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जो फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि के माध्यम से किसानों को सबसिडी दी जा रही है, उस रकम को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए। इन मदों पर केंद्र सरकार द्वारा लगभग पांच सौ हजार करोड़ रुपए की सबसिडी प्रतिवर्ष दी जा रही है। यदि इस रकम को देश के दस करोड़ किसान परिवारों में वितरित कर दिया जाए, तो प्रत्येक किसान परिवार को पचास हजार रुपए की रकम प्रति वर्ष सीधे दी जा सकेगी…

पिछले बजट के बाद सरकार ने चिन्हित फसलों के समर्थन मूल्यों में भारी वृद्धि की थी। माना जा रहा था कि इससे किसान की आय बढ़ेगी और किसान की समस्या का निदान होगा, लेकिन ताजा समाचार बताते हैं कि किसान को यह बढ़ा हुआ मूल्य नहीं मिल रहा है। मंडियों में धान जैसी प्रमुख फसलों का मूल्य समर्थन मूल्यों से 20 से 50 प्रतिशत कम चल रहा है। यानी बढ़ा हुआ समर्थन मूल्य केवल कागजी कार्रवाई रह गया है और किसान उस लाभ से वंचित हैं। इस दुरूह परिस्थिति का सीधा कारण फूड कारपोरेशन आफ इंडिया की निष्क्रियता है। समर्थन मूल्य पर फसल को खरीदने की जिम्मेदारी फूड कारपोरेशन की होती है। मंडी में फसल का दाम नीचा होने का सीधा कारण है कि फूड कारपोरेशन द्वारा निर्धारित मूल्य पर खरीद नहीं की जा रही है। यह कहना मुश्किल है कि यह अकुशलता है अथवा भ्रष्टाचार के कारण है अथवा सरकार की एक सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत ऐसा किया जा रहा है। शंका बनती है कि सरकार फसलों की खरीद जानबूझ कर बढ़े हुए दाम पर नहीं कर रही है। इसका कारण यह है कि प्रमुख फसलों के वैश्विक दामों में गिरावट आ रही है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एवं एग्रीकल्चर के आर्गेनाइजेशन के अनुसार वर्ष 2011 में कृषि उत्पादों का मूल्य सूचकांक 229 था। 2018 में यह घटकर 173 रह गया है। वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों के दामों में गिरावट आ रही है। ऐसी परिस्थिति में फूड कारपोरेशन के सामने समस्या है कि वह ऊंचे दाम में खरीदे हुए माल का निष्पादन कैसे करेगा?

बढ़ाई गई कीमतों पर यदि फूड कारपोरेशन माल खरीदता है, तो उसे बड़ी मात्रा में फसलों को खरीदना पड़ेगा, लेकिन देश में इन उत्पादों की मांग सीमित है। अतः फूड कारपोरेशन के पास खरीदे हुए माल का भंडार निरंतर बढ़ता जाएगा, इसका निर्यात करना भी कठिन होगा, क्योंकि विश्व बाजार में दाम घट रहे हैं। ऊंचे समर्थन मूल्य की मूल समस्या है कि ऊंचे दाम के कारण किसानों द्वारा अधिक उत्पादन किया जाएगा, लेकिन उस उत्पादन के निष्पादन का कोई रास्ता उपलब्ध नहीं है। अतएव ऐसा प्रतीत होता है कि फूड कारपोरेशन द्वारा जानबूझ कर बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर किसानों की फसल की खरीद नहीं की जा रही है। बढे़ हुए समर्थन मूल्य की पालिसी हमारे लिए दोहरे नुकसान की पालिसी है। पहले सरकार द्वारा फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि के अंतर्गत किसान को सबसिडी दी जाती है। फर्टिलाइजर सबसिडी के अंतर्गत सस्ता फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी के अंतर्गत बढ़े हुए दाम पर फसल की खरीद, लोन सबसिडी के अंतर्गत किसान को सस्ते लोन और मनरेगा के अंतर्गत किसान की निजी भूमि पर विकास के कार्य किए जाते हैं। इन सबसिडी के कारण किसान फसलों के उत्पादन में वृद्धि करता है, परंतु इस बढ़े हुए उत्पादन की देश में खपत नहीं है। अतः इसे निर्यात करना पड़ता है। चूंकि विश्व बाजार में कीमतें ढलान पर हैं, अतः निर्यात करने के लिए सरकार को फूड कारपोरेशन को दोबारा सबसिडी देनी पड़ेगी। जैसे यदि विश्व बाजार में चीनी का दाम 28 रुपया प्रति किलो है और अपने देश में उसकी उत्पादन लागत 35 रुपया प्रति किलो है, तो सरकार को 7 रुपए की प्रति किलो पर सबसिडी देकर चीनी का निर्यात करना होगा।

अपने देश में चीनी का दाम 35 रुपया इसलिए है, चूंकि सरकार ने गन्ने के दाम ऊंचे निर्धारित कर रखे हैं। इस प्रकार सरकार पहले गन्ने के ऊंचे दाम निर्धारित करके उत्पादन बढ़ाती है और फिर उस बढ़े हुए उत्पादन का निष्पादन करने को सबसिडी देकर उस चीनी का निर्यात करती है। यह इस प्रकार हुआ कि आप बाजार से आलू का एक कट्टा खरीद कर घर लाए और उसके बाद एक कुली को बुलाकर उस कट्टे को कूड़ेदान में डालने के लिए पुनः पैसा दे रहे हैं। बेहतर यह होता कि हम आलू खरीद कर ही नहीं लाते। इसी प्रकार पहले उत्पादन बढ़ाकर फिर उसके निष्पादन के लिए सबसिडी देना अनुचित है। इससे बेहतर है कि हम उत्पादन ही कम करें। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि उत्पादन इसलिए अधिक होता है, चूंकि सरकार ने समर्थन मूल्य बढ़ाकर निर्धारित कर रखे हैं। इसलिए उत्पादन कम करने के लिए सरकार को समर्थन मूल्य को गिराना होगा, तभी किसान उत्पादन कम करेंगे, लेकिन ऐसा करने से किसान पर सीधा दुष्प्रभाव पड़ेगा जो कि अनुचित है और सरकार के लिए राजनीतिक संकट भी पैदा करेगा। इस समस्या का उपाय यह है कि वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा जो फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि के माध्यम से किसानों को सबसिडी दी जा रही है, उस रकम को सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाए। इन मदों पर केंद्र सरकार द्वारा लगभग पांच सौ हजार करोड़ रुपए की सबसिडी प्रतिवर्ष दी जा रही है। यदि इस रकम को देश के दस करोड़ किसान परिवारों में वितरित कर दिया जाए, तो प्रत्येक किसान परिवार को पचास हजार रुपए की रकम प्रति वर्ष सीधे दी जा सकेगी। यह रकम परिवार के लिए अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। इसके बाद फर्टिलाइजर, खाद्य सबसिडी, सस्ते लोन एवं मनरेगा आदि जैसी तमाम योजनाओं को पूर्णतया समाप्त किया जा सकता है। ऐसा करने से समर्थन मूल्य का झंझट खत्म हो जाएगा और किसानों द्वारा अनावश्यक फसलों का उत्पादन नहीं होगा। सरकार को न तो इन मदों पर सबसिडी देनी होगी और न ही उन उत्पादों पर के निष्पादन के लिए निर्यात सबसिडी देनी होगी। फिर भी फूड कापोरेशन आफ इंडिया की जरूरत रहेगी। फूड कापोरेशन की भूमिका होनी चाहिए कि फसलों के दाम में तात्कालिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण करे। जैसे यदि किसी वर्ष धान का उत्पादन ज्यादा हो जाए, तो फूड कारपोरेशन उसे खरीदकर भंडारण करे। दो साल बाद जब उत्पादन कम हो, तब उस भंडारण का वितरण करे। इस प्रकार फूड कापोरेशन बाजारों में दामों के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर सकता है, लेकिन फूड कापोरेशन के लिए यह संभव नहीं है कि निरंतर बढ़ रहे उत्पादन को खरीद कर उसका भंडारण करे और फिर उसे निर्यात करे। सरकार को समर्थन मूल्य की पालिसी पर मूल रूप से पुनर्विचार करना चाहिए, इससे पीछे हटना चाहिए, किसान को सीधी सबसिडी देने की योजना बनानी चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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