जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव

By: Oct 6th, 2018 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों दल पंचायतों के चुनावों से उभरे नेतृत्व को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं हैं। इसलिए वे भारतीय संविधान में पंचायत प्रतिनिधियों को दिए गए अधिकारों के प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन कश्मीर घाटी में युवा लोगों की दाद देनी पड़ेगी कि विदेशी धन के बलबूते उछलकूद कर रहे आतंकवादियों की तमाम धमकियों के बावजूद बहुत बड़ी संख्या में उन्होंने अपने नामांकन पत्र दाखिल किए हैं…

जम्मू-कश्मीर में काफी लंबे अरसे के बाद पंचायतों के चुनाव हो रहे हैं। कई चरणों में होने वाले इन चुनावों के लिए पहले चरण का मतदान आठ अक्तूबर से शुरू हो जाएगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी राजनीतिक दल चुनावों की प्रतीक्षा करते रहते हैं। इसका एक कारण सत्ता प्राप्त करने की इच्छा भी होती है, लेकिन एक दूसरा कारण भी होता है, राजनीतिक दलों में जीवंतता बनी रहती है। जमीनी आधार वाला नेतृत्व धीरे-धीरे विकसित होता रहता है और जब प्रथम पंक्ति का नेतृत्व हटता जाता है, तो नया नेतृत्व उसका स्थान लेता रहता है। इससे राजनीतिक दलों में निरंतरता बनी रहती है और उसमें नई ऊर्जा का संचार होता रहता है। इसलिए लोकतंत्र को सार्थक और धारदार बनाए रखने में पंचायती चुनावों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। इसलिए जब लंबे अरसे बाद जम्मू-कश्मीर में पंचायतों के चुनाव करवाने की घोषणा हुई, तो सभी मान रहे थे कि राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल इसका स्वागत करेंगे और उनमें बढ़-चढ़ कर भाग लेंगे, लेकिन राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों का व्यवहार और आचरण इसके विपरीत दिखाई दे रहा है। उन्होंने चुनावों का बहिष्कार कर दिया है। शेख अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस और महरूम मुफ्ती मोहम्मद सैयद की पीपुल्ज डैमोक्रेटिक पार्टी ने चुनावों में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया, इसका क्या कारण हो सकता है? क्या नैशनल कान्फ्रेंस को पार्टी में नए खून की आवश्यकता नहीं है? पार्टी के इस समय के मालिक फारूक अब्दुल्ला और उनके सुपुत्र उमर अब्दुल्ला नहीं चाहते कि पार्टी में नीचे से लोगों द्वारा चुनकर भेजा गया युवा नेतृत्वदाखिल हो?

यही प्रश्न पीडीपी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती से पूछा जा सकता है। ये दोनों दल लोकतांत्रिक पद्धति से चुने गए नेतृत्व को अब्बल तो चुनावों का बहिष्कार करके पैदा ही नहीं होने देना चाहते या फिर उन्हें पार्टी में आगे आने नहीं देना चाहते, ऐसा क्यों है? दरअसल जब लोकसभा या विधानसभा के चुनाव होते हैं, तो ये दोनों दल स्वयं उसका बहिष्कार नहीं करते। तब ये उसका बहिष्कार आतंकवादी तंजीमों द्वारा करवाते हैं। उस बहिष्कार के सन्नाटे में ये स्वयं चुनाव के मैदान में उतरते हैं और दो-तीन हजार वोट लेकर लोकसभा या विधानसभा में पहुंच जाते हैं। इस प्रकार इनके नेतृत्व को न तो इनकी पार्टी के अंदर से चुनौती मिल सकती है और न ही बाहर जनता से चुनौती मिल पाती है, क्योंकि जनता को ये बहिष्कार के माध्यम से पोलिंगबूथ से दूर रखते हैं और पार्टी के भीतर से चुनौती मिलने का सवाल कैसे पैदा हो सकता है, जब ये पंचायती चुनावों का बहिष्कार करके नया नेतृत्व पैदा ही नहीं होने देते।

इस प्रकार इनके राजनीतिक दलों में बहुत आसानी से पिता का सिंहासन पुत्र या पुत्री को हस्तांतरित हो जाता है। शेख अब्दुल्ला अपनी छड़ी बेटे फारूक को दे देते हैं और फारूक बेटे उमर को दे देते हैं। राजनीतिक दल परिवार का खिलौना बन कर रह जाता है और सत्ता की पहचान लोकशाही के स्थान पर राजशाही की बन जाती है। लबादा लोकतंत्र का रहता है, लेकिन उसके भीतर राजशाही सड़ांध मारती है। यही स्थिति पीडीपी की है। जम्मू-कश्मीर में जो समस्या है, उसका बहुत बड़ा कारण यही है कि नेशनल कान्फे्रंस और पीडीपी दोनों दल कश्मीर घाटी पर सांप की तरह गेंडुली मार कर बैठे हैं। बहुत साल तक यह गेंडुली नेशनल कान्फे्रंस की ही रही। कुछ दशक पहले साथ वाले बिल से पीडीपी भी प्रकट हुई, दक्षिणी कश्मीर पर उसने गेंडुली मार ली। जिनको कश्मीर घाटी में आतंकवादी समूह कहा जाता है, वे दरअसल इन राजनीतिक दलों के ही पूरक हैं। आतंकवादी संगठन चुनावों का बहिष्कार करवाकर इन दोनों दलों को जीतने में सहायता करते हैं और ये क्षेत्रीय राजनीतिक दल सत्ता में आने पर उनको काम करने की आजादी मुहैया करवाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों दल पंचायतों के चुनावों से उभरे नेतृत्व को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं हैं। इसलिए वे भारतीय संविधान में पंचायत प्रतिनिधियों को दिए गए अधिकारों के प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन कश्मीर घाटी में युवा लोगों की दाद देनी पड़ेगी

कि विदेशी धन के बलबूते उछलकूद कर रहे आतंकवादियों की तमाम धमकियों के बावजूद बहुत बड़ी संख्या में उन्होंने अपने नामांकन पत्र दाखिल किए हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रदेश का युवा आधारभूत लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से प्रदान किए अवसरों का लाभ उठाकर घाटी को इन दोनों दलों की मारक गेंडुली से मुक्त करना चाहते हैं, लेकिन ये दोनों दल भी बहिष्कार की गेंडुली से प्रदेश की युवा पीढ़ी के सपनों का गला घोंटने के लिए कृतसंकल्प हैं।

ई-मेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App