प्रतिभाओं को बचपन में ही तलाशना होगा

By: Oct 26th, 2018 12:06 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

प्राथमिक विद्यालयों से ही बच्चों की शारीरिक फिटनेस को अनिवार्य रूप से मुद्दा बनाकर इस पर आवश्यक रूप से काम शुरू कर देना चाहिए, तभी हमें भविष्य के फिट नागरिक व अच्छे खिलाड़ी मिलेंगे…

विश्व के खेल पटल पर हमारे देश का नाम अभी बहुत नीचे नजर आता है। इस सब के पीछे बड़ा कारण यह है कि भारत में प्राथमिक पाठशाला स्तर पर शारीरिक विकास के लिए न तो कोई योजना है और न ही संसाधन हैं। जिस तरह बच्चा किसी भी भाषा को अपने जीवन के पहले दो-तीन वर्षों में पूरी तरह बोल और समझ लेता है, उसी तरह शारीरिक क्रियाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण योग्यता स्पीड के विकसित होने की सही उम्र सात वर्ष से 14 वर्ष के बीच होती है। इस उम्र के बीत जाने के बाद फिर हम स्पीड जैसी महत्त्वपूर्ण खेल योग्यता को केवल  जो है उसे वैसे ही चला पाते हैं। स्पीड को विकसत करने के लिए आपको न तो किसी बडे़ मैदान की आवश्यकता है और न ही किसी विशेष उपकरणों की। केवल कुछ सामान्य क्रियाओं को दस से बीस मिनट प्रतिदिन करवाने से हम बच्चों में स्पीड को विकसित कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में भारतीय खेल प्राधिकरण ने अपने खेल छात्रावास तथा खेल अकादमियां शुरू कर रखी हैं। हिमाचल सरकार ने भी बिलासपुर तथा ऊना में दो खेल छात्रावास शुरू करा रखे हैं। इसके साथ-साथ आधा दर्जन से अधिक स्कूलों में कई खेलों के खेल छात्रावास भी शुरू किए हुए हैं। हिमाचल में इस तरह लगभग एक दर्जन छात्रावास पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से चल रहे हैं, मगर हम आज तक एक भी ओलंपिक पदक विजेता तो दूर की बात है एक ओलंपिक में प्रतिनिधित्व करने वाला ओलंपियन भी नहीं दे पाए हैं। कबड्डी जो प्राथमिक पाठशाला से शुरू हो जाती है और केवल कुछ ही देश उसे खेलते हैं, इस खेल में हम काफी अच्छे खेल परिणाम दे रहे हैं। हिमाचल की लड़कियां तथा लड़के एशियाई खेलों तक स्वर्ण पदक विजेता टीमों के सदस्य हैं। शेष खेलों के बारे में जब हम देखते हैं, तो हिमाचल में कोई भी ऐसा खेल या खिलाड़ी नजर नहीं आता है, जो हिमाचल में खेल छात्रावासों से निकल कर एशियाई या ओलंपिक तक का सफर तय कर पाया हो। हम प्राथमिक पाठशाला स्तर पर हर बच्चे की सामान्य फिटनेस तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। इस प्रकार प्रदेश में खेल नर्सरी का अभाव साफ देखा जा सकता है। शिक्षा संस्थान व खेल विभाग प्रदेश की छिपी हर खेल प्रतिभा तक नहीं पहुंच पा रहा है। प्रदेश के विद्यालयों में बालकों की सामान्य फिटनेस व स्पीड जैसी मोटर क्वालिटी सुधारने के लिए जब कोई कार्यक्रम है ही नहीं, तो फिर हम किस तरह अच्छे खिलाडि़यों की खोज कर सकते हैं। विद्यालय स्तर पर विद्यार्थी को कोई भी फिटनेस डाटा तैयार नहीं किया जाता है। प्राथमिक पाठशाला में शारीरिक शिक्षा का शिक्षक देना तो सरकार के लिए संभव नहीं है। ऐसे में उस स्तर पर नियुक्त शिक्षकों को ही सामान्य फिटनेस व स्पीड जैसी मोटर क्वालिटी विकसित करने वाली क्रियाओं को सिखाना चाहिए। छठी से 12वीं कक्षा तक ड्रिल का जो पीरियड खत्म कर रखा है, उसे फिर से शुरू किया जाए। प्रदेश में बच्चों को सही प्रोटीनयुक्त आहार मिले, इसके लिए मां-बाप को शिक्षित करवाया जाए कि कम से कम खर्च करके किन-किन खानों की चीजों में संतुलित आहार मिल सकता है। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे सवेरे-शाम अपने बच्चों को सामान्य फिटनेस के लिए समय दें। स्कूली क्रीड़ा परिषद को चाहिए कि वे सुनिश्चित करे कि खंड स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में सभी विद्यालयों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य हो। हर विद्यालय में हर विद्यार्थी की मोटर क्वालिटी का टेस्ट नियमित रूप से आयोजित हो तथा उसका लिखित डाटा सुरक्षित रखा जाए, ताकि वह वर्ष दर वर्ष उसकी वृद्धि या घटने को साफ दर्शा सके। पढ़ाई के रिपोर्ट कार्ड की तरह यह फिटनेस रिपोर्ट कार्ड विद्यार्थी को आगे जीवन में फिट रहने के भी बहुत काम आएगा, क्योंकि फिटनेस खिलाड़ी ही नहीं सामान्य नागरिकों के लिए भी जरूरी है। भविष्य के लिए अगर हमें विश्वमंच तक पहुंचने वाले खिलाड़ी चाहिए, तो उनके लिए प्रारंभिक स्तर से ही प्रयास करने होंगे, अन्यथा अन्य देशों के बीच हमें हमेशा ही हार का सामना करने की आदत बनानी पड़ेगी। प्राथमिक विद्यालयों से ही शारीरिक फिटनेस को अनिवार्य रूप से मुद्दा बनाकर इस पर काम शुरू कर देना चाहिए, तभी हमें भविष्य के फिट नागरिक व अच्छे खिलाड़ी मिलेंगे।


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