मायावती का छूटा साथ
डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री
लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं
यह इलाका मायावती का था, इस इलाके में सोनिया गांधी को मायावती अपनी शर्तों पर चलाना चाहती है, लेकिन सोनिया गांधी यदि इन शर्तों को मानती है तो उसके लिए यह निहायत घाटे का सौदा होगा। इतिहास को जानने वाले यह भी जानते हैं कि इटली वाले कभी घाटे का सौदा नहीं करते। आगे इलाका ममता का आने वाला है, वहां सोनिया गांधी के लिए और खतरनाक है। ममता गठबंधन का सारा खेल-तमाशा अपने इलाके से बाहर ही देखना चाहती है…
भांति-भांति के लोग कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में एक-दूसरे के हाथ पकड़कर मजबूत शृंखला बनाने का संकेत दे रहे थे। इनमें मायावती और सोनिया गांधी एक-दूसरे का हाथ पकड़े विजय चिन्ह बना रही थीं, अखिलेश यादव और राहुल गांधी थे, अपने आप को देशभर के कम्युनिस्टों का मसीहा मानने वाले सीताराम थे, पश्चिमी बंगाल वाली अग्निकन्या ममता तो थी हीं, कुमारस्वामी की पार्टी द्वारा कर्नाटक विधानसभा में महज 35 सीटें ले जाने पर भी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनते देखकर उन सभी के मुंह से लार टपक रही थी, इस फार्मूला से तो कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है। सभी ने संकल्प किया था, हम एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे, मिलकर रहेंगे, एक बार मिलकर नरेंद्र मोदी को हरा देने के बाद आपस में सत्ता को लूट-बांट लेंगे। इनके लिए सत्ता प्रासंगिक बने रहने का रास्ता है। सत्ता ही साध्य है, लेकिन मंच पर विजय चिन्ह बनाती हुई जोड़ी पहली परीक्षा में ही धड़ाम से जमीन पर आ गिरी। चुनाव आयोग ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी। मायावती ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मध्यप्रदेश और राजस्थान में सोनिया गांधी की पार्टी से समझौता नहीं करेंगी। उसका कहना है कि कांग्रेस जमीनी सच्चाई से बहुत दूर जा चुकी है, पार्टी अपने गरूर में जी रही है। मायावती ने ऐन चुनाव के मौके पर ऐसा क्यों कहा, उसका परोक्ष उत्तर हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी ने दिया।
चौटाला ने पिछले दिनों हरियाणा की एक रैली में कहा कि हम सभी मिलकर बहन मायावती को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाएंगे। चौटाला ऐसा कह सकते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि समीकरण कोई भी बने, लेकिन वह स्वयं प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इसलिए मायावती को इस पद का स्वप्न दिखा देने में क्या नुकसान हो सकता है, लेकिन सोनिया गांधी एक प्रकार का यह लालीपाप मायावती को नहीं दे सकती। वह इस उम्र में भी बीमार सेहत के होते हुए सारी भागदौड़ मायावती को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तो नहीं कर रही हैं। उनका अपना बेटा है, बेटे के पास वैसे भी कांग्रेस की परंपरा के अनुसार विरासती हक है। अब इस रास्ते में मायावती राह रोके खड़ी है। सोनिया गांधी को आशा थी कि नरेंद्र मोदी को हराने के नाम पर सभी विपक्षी दल मिलकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा देंगे, लेकिन चुनावों का दंगल शुरू होते ही पहला अपशकुन मायावती ने कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने प्रधानमंत्री पद के लिए अपना नाम भी चलवा दिया है, लेकिन मायावती ने अपना पत्ता अत्यंत सावधानी से चला है। उसने बसपा और सोनिया कांग्रेस के बीच गठबंधन के बीच रोड़ा दिग्विजय सिंह जैसे लोगों को बताया है। उसका कहना है कि सोनिया और राहुल तो समझौता करना चाहते हैं, लेकिन कुछ लोग रास्ते में रुकावट डाल रहे हैं। यह मायावती भी जानती है कि कांग्रेस में ‘कुछ लोग’ नाम की कोई चीज नहीं है, जो कुछ है वह मां-बेटे की लीला ही है। इसलिए उसने सोनिया गांधी को अप्रत्यक्ष रूप से संकेत किया है कि नरेंद्र मोदी के हारने का ज्यादा लाभ आपको मिलेगा, क्योंकि सोनिया कांग्रेस के पास अपना अस्तित्व बचाए रखने का यह अंतिम अवसर है। यदि इस अवसर से कांग्रेस चूक गई, तो उसके अस्तित्व के आगे प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। भारतीय राजनीति में वह भी सीपीएम के पीछे-पीछे भूतकाल की स्मृति मात्र रह जाएगी। ऐसा नहीं कि सोनिया गांधी इस बात को जानती नहीं, लेकिन वह यह भी जानती हैं कि राहुल बेटे की ताजपोशी का यह अंतिम अवसर है। इस बार निकल गया, तो परिवार का विरासती इतिहास, इतिहास की चीज ही बन जाएगा। इसलिए सोनिया गांधी और मायावती जिन रास्तों पर चल रही हैं, वे कहीं भी आपस में मिलते नहीं, बल्कि विरोधी दिशा में जाते हैं, लेकिन यह तो अभी शुरुआत है। यह इलाका मायावती का था, इस इलाके में सोनिया गांधी को मायावती अपनी शर्तों पर चलाना चाहती है, लेकिन सोनिया गांधी यदि इन शर्तों को मानती है तो उसके लिए यह निहायत घाटे का सौदा होगा। इतिहास को जानने वाले यह भी जानते हैं कि इटली वाले कभी घाटे का सौदा नहीं करते। आगे इलाका ममता का आने वाला है, वहां सोनिया गांधी के लिए और खतरनाक है। ममता गठबंधन का सारा खेल-तमाशा अपने इलाके से बाहर ही देखना चाहती है।
अभी पांच विधानसभाओं का खेल शुरू हुआ है, सोनिया कांग्रेस के लिए आगे का खेल और भी हैरतअंगेज होने वाला है। कभी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने ही राहुल गांधी को विधानसभा के चुनाव लड़ने के लिए सौ सीटें तश्तरी में रख कर दे दी थीं। अब वही अखिलेश राहुल को गठबंधन के सूत्र समझाते हुए बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में सोनिया कांग्रेस बची नहीं है, इसलिए लोकसभा चुनावों में चार-पांच सीटों से खेल सकते हो तो खेल लो, नहीं तो इससे भी हाथ धो बैठोगे। सोनिया गांधी के लिए प्रथम ग्रासे मक्षिका वाली स्थिति हो गई है।
ई-मेलः kuldeepagnihotri@gmail.com
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