शोरगुल में गुम होते मुख्य मुद्दे

By: Oct 25th, 2018 12:07 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

सवाल सरकार से पूछे जाते हैं, जवाबदेही सरकार की होती है, जनता सवाल पूछती है, जवाब सरकार को देना होता है। इसलिए विकास में कमी रहने पर मोदी यह नहीं कह सकते कि बताओ केजरीवाल ने क्या किया? वह यह नहीं कह सकते कि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में गड़बड़ी है, तो वह भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। आज भाजपा यही कर रही है। वह सवालों का जवाब नहीं दे रही, एक रणनीति के तहत भाजपा मतदाताओं को भटका रही है। वह सवाल का जवाब नहीं दे रही, बल्कि मुद्दों और सवालों के जवाब देने के बजाय शोर मचा रही है…

आज देश की आबादी बढ़ रही है, आबादी बढ़ने के साथ-साथ इस देश में युवाओं का प्रतिशत भी बढ़ा है। आज के भारत को ‘यंग इंडिया’ कहा जाए, तो कुछ गलत नहीं होगा, लेकिन आबादी बढ़ने का और इस आबादी में युवाओं का प्रतिशत बढ़ने का एक असर यह भी हुआ है कि देश में बेरोजगारों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी है। इन युवाओं में बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो अशिक्षित हैं और ऐसे युवा भी कम नहीं हैं जो शिक्षित तो हैं, पर उनमें ऐसा कोई गुण नहीं है कि उन्हें कोई ढंग का रोजगार मिल सके। वे ‘एंप्लाएबल’ नहीं हैं, रोजगार के काबिल नहीं हैं। देश में गरीबी है, भुखमरी है, आत्महत्याएं हैं। अन्नदाता किसान गरीब है, कर्ज के बोझ तले दबा है और वह भी गले में फंदा डालने को विवश है। परिवहन व्यवस्था ठीक नहीं है, सड़कों पर गड्ढे हैं, जगह-जगह गंदगी है। देश की राजधानी की हवा में इतना प्रदूषण है कि मानों उसमें जहर घुला हुआ है। बेहिसाब बढ़ती आबादी, बेरोजगारी, अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, गंदगी, प्रदूषण आदि समस्याएं हैं और ऐसी बहुत सी समस्याएं हैं। ये समस्याएं मुद्दे हैं, समस्याएं ही मुद्दा होती हैं, इन मुद्दों पर बात होनी चाहिए, इन समस्याओं को दूर करने का तरीका खोजा जाना चाहिए। जब चुनाव का समय आता है, तो नेतागण वादे करते हैं, अपनी नीतियों का खुलासा करते हैं, देश की समस्याएं गिनवाते हैं और आश्वासन देते हैं कि यदि सत्ता उनके हाथ में आएगी, तो वे देश में भ्रष्टाचार समाप्त करेंगे, महंगाई समाप्त करेंगे, उन्नति की बहार ला देंगे, सबको उनका हक मिलेगा, न्याय का शासन होगा, आदि-आदि। जनता किसी एक दल अथवा गठबंधन के नेता पर विश्वास करती है और उस दल या गठबंधन को सत्ता सौंप देती है। सत्तासीन दल या गठबंधन का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने वादों को पूरा करे, उन्हें अमलीजामा पहनाए। सदियों की गुलामी के बाद हमारा देश आजाद हुआ।

विदेशी शासकों ने हमें जमकर लूटा। हमारे स्थानीय रोजगार को खत्म किया, हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी, हमारा ज्ञान चुरा कर ले गए। आजादी के बाद बंटवारे की त्रासदी से कराहते साधनहीन, वंचित देश के पास समस्याएं ही समस्याएं थीं। जो सरकारें सत्ता में आईं उन्होंने कुछ समस्याएं दूर कीं और कुछ नई समस्याएं खड़ी कर दीं। कुछ सरकारों ने समाधान कम दिए, समस्याएं ज्यादा दीं या कुछ सरकारों ने ऐसी समस्याएं दे दीं जिनके कारण समाज बंट गया, शक की दीवार खड़ी हो गई और भाई-भाई का दुश्मन हो गया। अपने क्षुद्र स्वार्थ और राजनीतिक लाभ के लिए दिलों में आग लगा दी। परिणाम यह है कि दशकों पहले वे सरकारें चली गईं, लेकिन उनकी सुलगाई शक और नफरत की आग आज तक समाज को जला रही है। इन सरकारों की कारगुजारी के बारे में यही कहा जा सकता है ‘लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई’। देश के सातवें प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल का पिटारा खोलकर समाज में बंटवारे की ऐसी आग लगाई, जो बुझना तो दूर, दिन-प्रतिदिन और तेज होती जा रही है। पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने बाबरी मस्जिद ढहाकर हिंदु-मुस्लिम बंटवारे को और गहरा कर दिया और अब वर्तमान मोदी सरकार ने प्रमोशन में भी आरक्षण का कानून बनाकर सवर्ण और दलित हिंदुओं में अविश्वास और नफरत की भावना को और भी भड़का दिया है।

देश के सामने मुद्दा यह है कि गरीबी कैसे दूर हो, भुखमरी पर कैसे काबू पाया जा सके, अशिक्षा पर नियंत्रण के लिए क्या किया जाए, परिवहन व्यवस्था कैसे दुरुस्त हो, बेरोजगारी दूर हो, पर्याप्त चिकित्सा सुविधा हो, हर व्यक्ति को आगे बढ़ने और फलने-फूलने के बराबर अवसर हों, शासन-प्रशासन के कामकाज में जनता की भागीदारी हो, जनहित के कानून बनें। सत्ता में आने का प्रयत्न करने वाला हर दल इन समस्याओं का जिक्र करता है और यह वादा करता है कि वह समस्याओं का समाधान करेगा, तब कोई नेता यह नहीं कहता कि मैं समस्याएं दूर नहीं कर सकता। तब कोई नेता यह नहीं कहता कि मेरे सामने इतनी समस्याएं हैं, इसलिए मैं आपकी समस्याएं दूर नहीं कर सकता। तब कोई नेता यह नहीं कहता कि मैं आपकी समस्याएं तभी दूर करूंगा, यदि अन्य दलों के सभी नेता भी आपकी समस्याएं दूर करें, लेकिन चुने जाने के बाद नेताओं के पास बहानों का अंबार होता है। दस वर्ष तक सत्ता में रही कांग्रेस के राज में भ्रष्टाचार अपने चरम पर जा पहुंचा और अन्ना हजारे के आंदोलन में लाखों की संख्या में शामिल नागरिकों की आवाज को अनसुना कर दिया गया। ऐसे में मोदी में लोगों को आशा की नई किरण दिखी। मोदी की बातें लुभावनी थीं और नजरिया ताजगी भरा, जिसने मतदाताओं का मन मोह लिया। लोगों ने मोदी में विश्वास प्रकट किया और वे देश के प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन अब जब उनसे या भाजपा से सवाल पूछे जाते हैं, तो जवाब यह मिलता है कि 70 सालों में कांग्रेस ने क्या किया? समझने की बात यह है कि यह सवाल नहीं है, यह एक षडयंत्र है। सवाल सरकार से पूछे जाते हैं, जवाबदेही सरकार की होती है, जनता सवाल पूछती है, वोट सरकार ने लिए हैं और जवाब भी सरकार को देना होता है। इसलिए विकास में कमी रहने पर मोदी यह नहीं कह सकते कि बताओ केजरीवाल ने क्या किया? वह यह नहीं कह सकते कि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में गड़बड़ी है, तो वह भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। आज भाजपा यही कर रही है। वह सवालों का जवाब नहीं दे रही, एक रणनीति के तहत भाजपा मतदाताओं को भटका रही है। वह सवाल का जवाब नहीं दे रही, बल्कि मुद्दों और सवालों के जवाब देने के बजाय शोर मचा रही है, दूसरों पर इल्जाम लगा रही है। यहां तक कि सवाल ऐसे पूछे जा रहे हैं कि देश के नागरिक भी आत्मग्लानि महसूस करें, ताकि वे कोई सवाल ही न पूछें।

यह पहली बार हो रहा है कि सत्तासीन दल और उसका प्रधानमंत्री अपनी असफलताओं की सफाई देने के बजाय खुद नागरिकों को दोषी ठहरा रहा है। मुद्दे और सवाल हवा में गुम हो रहे हैं, भाजपा के शोरगुल में गुम हो रहे हैं। भाजपा को लग रहा है कि उसकी यह रणनीति कामयाब है, जबकि असलियत कुछ और है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में ही नहीं, अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में भी ये सवाल उभरेंगे, बार-बार उभरेंगे और तब भाजपा इन्हें अपने शोर में दबा नहीं पाएगी, जनता जानती है, जनता सब जानती है।

 ईमेलः indiatotal.features@gmail.


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