हे राम ! तारीख पर तारीख

By: Oct 31st, 2018 12:05 am

मात्र 3 मिनट की सुनवाई और राम मंदिर सरीखे बेहद संवेदनशील मुद्दे को एक बार फिर टाल दिया गया। यह देश के प्रधान न्यायाधीश की पीठ का फैसला है, जिसने इस मुद्दे को प्राथमिकता वाला नहीं माना। पीठ के मुताबिक जनवरी 2019 में पीठ तय करेगी कि अयोध्या विवाद की सुनवाई किस तरह की जाए, लिहाजा आसार हैं कि यह मुद्दा 2019 के आम चुनाव के बाद तक खिसक सकता है। असंख्य हिंदुओं का भी अब यही संशय है। फैसला प्रधान न्यायाधीश की पीठ का है, लिहाजा मान्य है, उसकी कोई अवमानना नहीं हो सकती, लेकिन आंख मूंद कर और जुबान बंद करके भी ऐसे फैसले ग्रहण नहीं किए जा सकते। बहुत पुराना इतिहास नहीं है, जब सर्वोच्च न्यायालय ने एक घोषित आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी का केस आधी रात में सुना था। भारत की उदार और तटस्थ न्यायिक व्यवस्था को सलाम…! माओवादियों की गुहार सुनने को भी शीर्ष अदालत रात में खुली और सुनवाई की। सवाल है कि क्या राम मंदिर, राम जन्मभूमि, यानी अयोध्या विवाद का मामला इतना सामान्य है कि सीधे सवा दो महीने बाद तक सुनवाई टाल दी गई? यह सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना नहीं, बल्कि देश के उन आस्थावान नागरिकों की जिज्ञासा के सवाल हैं, जो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने की योजना के पीछे लामबंद हैं। स्वाभाविक है कि रामभक्त हिंदू आज छला, ठगा महसूस कर रहा होगा! हम उन ‘राजनीतिक हिंदुओं’ की बात नहीं कर रहे, जिनकी अयोध्या में राम मंदिर बनाने में वाकई कोई दिलचस्पी नहीं है। उनके लिए साल-दर-साल यह मुद्दा लटकता रहे और वे सियासत करते रहें। बेशक संघ और भाजपा सार्वजनिक तौर पर दावा करते रहे हैं कि राम मंदिर उनके लिए आस्था का मुद्दा है, लेकिन अंदरूनी यथार्थ यह है कि भाजपा के लिए यह राजनीतिक, चुनावी मुद्दा रहा है और इस बार 2019 के मद्देनजर राम मंदिर भाजपा के लिए सबसे अहम चुनावी मुद्दा है। कारण, बेरोजगारी, भुखमरी, महंगाई, किसानी, तेल की कीमतें, रुपए का अवमूल्यन, राफेल, आर्थिक भगौड़े आदि गंभीर मुद्दों पर भाजपा-मोदी सरकार निरुत्तर स्थिति में है। अब सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार राम मंदिर के लिए अध्यादेश पारित करेगी या संसद के शीतकालीन सत्र में बिल पेश करेगी? ये सवाल हमने सोमवार के संपादकीय में भी उठाए थे, लेकिन तब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया था। अब सरकार के सामने चुनौतियां हैं। संघ के अलावा विहिप, साधु-संत, शिवसेना भी अध्यादेश या संसद द्वारा कानून बनाने का आग्रह कर रहे हैं। भाजपा इनकी अनदेखी नहीं कर सकती। अब अदालत में केस होते हुए अध्यादेश पारित करना मुश्किल है। हालांकि संविधान में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। सिर्फ परंपरा रही है कि न्यायपालिका के समानांतर अध्यादेश नहीं लाया जा सकता। यदि विवादित जमीन पर सरकार का मालिकाना हक है, तो सरकार अध्यादेश ला सकती है। भाजपा सांसद डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है कि मंदिर बनाने के निर्देश के साथ सरकार जमीन को ट्रांसफर करे और धर्मगुरुओं की संस्था को दे। इस तरह राम मंदिर बनने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। मुस्लिम नेताओं ओवैसी  और जफरयाब गिलानी ने अध्यादेश को अदालत में चुनौती देने की धमकी भी दी है। उनकी दलील है कि देश संविधान से चलता है, न कि हेकड़ी की सत्ता से…। सरकार मंदिर और मस्जिद में भेद करेगी, तो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की व्याख्या है। बहरहाल मोदी सरकार और भाजपा के लिए यह सांप-छुछूंदर वाली स्थिति है। यदि मई, 2019 से पहले इस मुद्दे का निपटारा नहीं होता है, तो प्रधानमंत्री मोदी की दोबारा सत्ता में आने की कोशिशों को धक्का लग सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि करीब 2-3 फीसदी वोट भाजपा से छिटक कर दूर जा सकते हैं। इसी से जीत-हार का अंतर बढ़ सकता है, लिहाजा अब आखिरी दारोमदार प्रधानमंत्री मोदी पर ही है। देखते हैं कि उनका कदम क्या होता है?


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