अयोध्या में राम के घर को कौन दे रहा चुनौती

By: Nov 10th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

भारतवंशियों ने हिम्मत करके अयोध्या में ही एक बार फिर राम लला के लिए उनका घर बना कर ही दम लिया। चाहे यह छोटा सा घर, तरपैल की छत लिए राम की गरिमा के अनुकूल तो नहीं है, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भारतीयों से जितना संभव हो सका, उतना उन्होंने कर दिखाया। राम-रावण युद्ध में भी एक छोटी सी गिलहरी अपनी पूंछ पर रेत ला-ला कर पुल बनाने में सहयोग कर ही रही थी। उस गिलहरी का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसी प्रकार अयोध्या में कई युवकों ने अपने प्राण गंवा कर राम लला के लिए जो छोटा सा कच्चा घर बनाया है, वह उसी गिलहरी के प्रयास के समान है, लेकिन इतिहास गवाह है लंका तक पहुंचने के लिए राम के अनुयायियों ने पुल बना ही लिया था…

भारत के लोग उसी दिन से दिवाली मना रहे हैं, जब से श्री रामचंद्र जी चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे। पहले भारत के शासक, विभिन्न रियासतों के महाराजाओं का शासन भी दिवाली मनाता था। फिर भारत के अधिकांश हिस्सों पर अरबों, तुर्कों और मुगलों का कब्जा हो गया। ये विदेशी शानकर्ता भला दिवाली क्यों मनाते, क्योंकि इनका तो दशरथ पुत्र श्री रामचंद्र से कोई रिश्ता नहीं था। इसके विपरीत इन विदेशी शासकों ने दिवाली मनाने में ही अड़चनें पैदा करना शुरू कर दिया। यहां तक कि अयोध्या में रामचंद्र जी का पुराना घर-मंदिर भी गिरा दिया, लेकिन भारत के लोग फिर भी दिवाली मनाते रहे। बाद में भारत पर अंग्रेजों का शासन हो गया। उनका शासन भी दिवाली क्यों मनाता, क्योंकि उनका भी रामचंद्र जी से कुछ लेना-देना नहीं था, लेकिन भारतीय फिर भी दिवाली मनाते रहे। फिर 1947 में अंग्रेज भी चले गए और शासन भारतीयों के हाथ में ही आ गया। तब भारतीयों को लगा कि अब तो उनकी अपनी सरकार है। इसलिए भारत के लोग और भारत के शासक अब आगे से मिलकर दिवाली मनाया करेंगे,  लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय तो दिवाली मनाते रहे, लेकिन उनकी सरकार ने कभी उनके साथ मिलकर दिवाली नहीं मनाई। सरकार का कहना था कि भारतीयों के साथ मिलकर दिवाली मनाना सांप्रदायिकता कहलाई जाएगी। तब भारतीयों को पहली बार एहसास हुआ कि अंग्रेजों के पढ़ाए-लिखाए नए भारतीय शासक अब भारतीय संस्कृति और इतिहास को सांप्रदायिकता मानने लगे हैं। लगभग पचहत्तर साल बाद पहली बार भारतीय शासकों ने भारतीयों के साथ मिलकर अयोध्या में वनवास काट कर वापस आए रामचंद्र जी के आगमन उत्सव पर दिवाली मनाना शुरू किया है।

अयोध्या की दिवाली की यही व्याख्या की जा सकती है। विदेशी हमलावरों ने अयोध्या को फैजाबाद बना दिया था। अबकी बार भारतीयों ने मिलकर उसे फिर अयोध्या बना दिया है। राम की अयोध्या में राम की मूर्ति लगेगी। जाहिर है एक दिन राम लला का जो छोटा सा मंदिर बना हुआ है, वह एक दिन भव्य रूप ग्रहण करेगा, ऐसी जन प्रक्रिया शुरू हो गई है। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय में राम मंदिर के निर्माण से ताल्लुक रखने वाला मामला मुख्य न्यायाधीश की पीठ के सामने सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ। यह मामला कई दशकों से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सामने लटकता रहा था। अंततः उच्च न्यायालय ने 2010 में इस पर अपना निर्णय दे दिया था। उस निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई थी। कुछ महीने पहले यह मामला उच्चतम न्यायालय के सामने आया था। तब कांग्रेस के अति वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने न्यायालय से प्रार्थना की थी कि मामले को स्थगित कर दिया जाए और इसे 2019 के चुनावों के बाद सुना जाए। न्यायालय ने उनके आग्रह को स्वीकार नहीं किया था और त्वरित सुनवाई के लिए अक्तूबर के अंत में सुनवाई के लिए निश्चित कर दिया, लेकिन तब बहुत से लोगों को कपिल सिब्बल के इस आग्रह पर हैरानी हुई थी कि कपिल सिब्बल मामले को लटकाना क्यों चाहते हैं। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से चुनावों का क्या लेना-देना है। कांग्रेस ने भी इस पूरे मामले में रहस्यमय चुप्पी साध ली कि वह मंदिर के मुद्दे को राजनीति से क्यों जोड़ रही है और उसे टालने में उसका क्या हित था, क्योंकि भगवान राम तो सभी की श्रद्धा के पात्र हैं, चाहे वह भाजपाई या कांग्रेसी, समाजवादी का हो या लालू की जनता दल का हो।

इसलिए कपिल सिब्बल इसको राजनीति से जोड़कर कौन सा खेल, खेल रहे हैं। खैर जब न्यायालय ने सिब्बल की अपील को ठुकरा दिया, तो देश में सभी ने राहत की सांस ली कि बाबर के समय से विभिन्न अदालतों में चला आ रहा मसला अब अंततः समाप्त हो जाएगा और बाबर के भारत में आने से पहली की यथास्थिति अयोध्या में बहाल हो जाएगी। जैसे ही 29 अक्तूबर को उच्चतम न्यायालय के सामने प्रस्तुत हुआ, तो न्यायालय ने अपने कीमती समय में से तीन मिनट का समय देकर केस को सुना और उसको अगले साल की जनवरी तक के लिए मुल्तवी कर दिया। वैसे जनवरी में भी राम लला के केस को किस दिन समय मिलेगा, इसके बारे में भी न्यायालय में कोई रोशनी नहीं डाली। जनवरी में केस सुनवाई से पहले नए बैंच का गठन किया जाएगा, राम लला के विरोधी इसका प्रचार भी कर रहे हैं। हो सकता है तब तक चुनावों की घोषणा हो जाए, जिनके बाद कपिल सिब्बल राम लला के केस में हाथ डालना चाहते थे। इसका अर्थ हुआ राम लला के केस में आखिरी जीत कपिल सिब्बल की ही होती दिखाई दे रही है, जो पिछली पेशी में हारे हुए नजर आ रहे थे। इसलिए इस केस में उच्चतम न्यायालय के इस रुख से पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। भारतवासियों को आशा थी कि उच्चतम न्यायालय राम लला के केस की शीघ्र अति शीघ्र सुनवाई करके अयोध्या में उनके घर-मंदिर के लिए स्थान निश्चित कर देगा। भारतीय विधि व्यवस्था में देवता भी अपनी वैधानिक हैसियत रखता है और उस हैसियत में न्यायालय के सामने न्याय के लिए उपस्थित हो सकता है। इस पूरे मामले में राम लला की भी वैधानिक हैसियत सुरक्षित है। उसी हैसियत में वे उच्चतम न्यायालय के सामने बाबर की सेना और अनुयायियों द्वारा किए गए कुकृत्य को समाप्त करने के लिए याचिका लेकर उपस्थित हैं। लेकिन न्यायालय ने उनके घर-मंदिर को बाबर भक्तों द्वारा कब्जाए जाने के मामले में सुनवाई के लिए केवल तीन मिनट का समय दिया। वक्त-वक्त की बात है। त्रेता युग में जिस राम ने वनों-जंगलों में रहने वाले सीधे-सादे वनवासियों को संगठित और प्रशिक्षित कर रावण जैसे अत्याचारी से भिड़ा दिया था और इन्हीं भीलों, निशादों, नागों से ही असंभव को संभव कर दिखाया था, उसी राम के घर को बाबर की सेना ने सोलहवीं शताब्दी में ध्वस्त कर दिया। यही महाकाल की लीला है। समय फिर बदला। भारतवंशियों ने हिम्मत करके अयोध्या में ही एक बार फिर राम लला के लिए उनका घर बना कर ही दम लिया। चाहे यह छोटा सा घर, तरपैल की छत लिए राम की गरिमा के अनुकूल तो नहीं है, लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भारतीयों से जितना संभव हो सका, उतना उन्होंने कर दिखाया। राम-रावण युद्ध में भी एक छोटी सी गिलहरी अपनी पूंछ पर रेत ला-ला कर पुल बनाने में सहयोग कर ही रही थी। उस गिलहरी का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसी प्रकार अयोध्या में कई युवकों ने अपने प्राण गंवा कर राम लला के लिए जो छोटा सा कच्चा घर बनाया है, वह उसी गिलहरी के प्रयास के समान है, लेकिन इतिहास गवाह है लंका तक पहुंचने के लिए राम के अनुयायियों ने पुल आखिर बना ही लिया था। बहुत से बुद्धिजीवी शंका करते हैं कि यदि राम इतने ही शक्तिशाली हैं, तो अपने घर-मंदिर निर्माण के रास्ते में आने वाली बाधाओं को खुद ही दूर क्यों नहीं कर लेते, यह प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह प्रश्न एक और प्रश्न भी पैदा करता है। यदि राम इतने ही शक्तिशाली थे तो रावण, जो उनकी पत्नी का अपहरण करके ले गया था, को उन्हें स्वयं ही क्यों नहीं मार दिया, यह प्रश्न जायज है, लेकिन जन नेता को जनता में चेतना जागृत करनी होती है। उसमें शक्ति का संचार करना होता है। उसे न्याय और अन्याय का भान करवाना होता है। उसमें उचित और अनुचित की समझ पैदा करनी होती है। उसमें आत्मविश्वास भरना होता है।

कलियुग में दशगुरु परंपरा के दशम गुरु श्री गोविंद सिंह इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहे जा सकते हैं, जिन्होंने चिडि़यों में बाज से लड़ने की क्षमता पैदा करके भारतीय इतिहास का नया स्वर्णिम पृष्ठ रच दिया। राम और बाबर की यह लड़ाई भी उसी प्रकार की है। इस लड़ाई में धीरे-धीरे अपने आप पत्ते खुलते जाएंगे, कौन बाबर के साथ है और कौन राम लला के साथ हैं। बाकी प्रश्न रहा अयोध्या में राम लला के घर-मंदिर के पुनर्निमाण का। अयोध्या से राम को कौन बेघर कर सकता है, उनके घर का पुनर्निर्माण तो होगा ही, यह भी राम लला ही निर्णय करेंगे। यह महाकाल की लीला है, देखते जाइए। इस लीला में ही धीरे-धीरे दो पक्ष सामने आते जाएंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा था-हे संजय धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्रित हुए मेरे यानी कौरवों और पांडु यानी पांडवों ने क्या किया। लगता है अब यही प्रश्न राम पूछ रहे हैं, लेकिन स्थान बदल गए हैं।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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