असंगठित श्रमिकों को आयातों से संरक्षण दें

By: Nov 20th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

निष्कर्ष यह निकलता है कि असंगठित श्रमिकों के संगठन तब ही सफल होंगे, जब वे माल के मूल्य का निर्धारण कर सकें। माल का मूल्य बढ़ाने के लिए सस्ते आयातों से संरक्षण जरूरी है। अतः खुले विश्व बाजार के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों का हित हासिल नहीं किया जा सकता है। असंगठित क्षेत्र में लोगों की स्थिति में सुधार के लिए दो शर्तें हैं। एक, यह कि उनके संगठन केवल ट्रेनिंग और ऋण तक सीमित न रहें, बल्कि कच्चे एवं तैयार माल के मूल्य निर्धारण में दखल करें। दूसरा, यह कि तैयार माल को प्रतिस्पर्धा से बचाया जाए…

सेंटर फार मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी देश की प्रतिष्ठित संस्था है, जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था के आंकड़ों पर नजर रखी जाती है। इस संस्था ने अपनी हाल की रपट में बेरोजगारी को लेकर गंभीर आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। कहा है कि अक्तूबर 2017 में देश में 40.7 करोड़ लोग कार्यरत थे, जो अक्तूबर 2018 में घटकर 39.7 करोड़ रहे गए थे। अक्तूबर 2018 में बेरोजगारी की दर 6.9 प्रतिशत पर दो वर्षों की अधिकतम दर पर पहुंच गई है। फरवरी 2016 में देश के वयस्क नागरिकों में 47 प्रतिशत रोजगार पा रखे थे। अक्तूबर 2011 में यह घटकर 42.4 प्रतिशत रह गया था। जुलाई 2017 में केवल 1.4 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे, जो कि अक्तूबर 2018 में बढ़कर 2.9 करोड़ हो गए थे। इन आंकड़ों की गंभीरता इस बात से भी दिखती है कि अक्तूबर से दिसंबर के महीने आमतौर पर रोजगार सृजन के माने जाते हैं। अतः इस समय गिरावट होना जादा गंभीर विषय है। अतः रोजगार सृजन पर ध्यान देना होगा। रोजगार सृजन को कई सुझाव दिए जा रहे हैं। पहला सुझाव कुटीर उद्यमियों को माइक्रो क्रेडिट के माध्यम से पूंजी उपलब्ध कराने का है। इस सुझाव में समस्या यह है कि श्रम सघन उत्पादन अकसर महंगा पड़ता है जैसे चरखे से काती गई सूत महंगी होती है। चरखे से सूत का उत्पादन तब ही होगा, जब उसे मशीन में बनी सस्ती सूत से संरक्षण मिले। यदि मशीन से बनाए गए धागे पर भारी टैक्स लगाया जाए, तब ही चरखे पर काता गया सूत बाजार में टिक पाएगा। यह वैश्विक बाजार में संभव नहीं है। मान लीजिए भारत सरकार ने घरेलू कताई मिलों पर भारी टैक्स लगा दिया।

इससे भारत में मिलों से काते गए धागे का दाम ऊंचा हो जाएगा और थाइलैंड में मशीन द्वारा काते गए सस्ते धागे का आयात होने लगेगा। माइक्रो फाइनेंस से लाभ तब है, जब साथ-साथ श्रम सघन उत्पादों को सस्ते आयातों से संरक्षण दिया जाए। दूसरा सुझाव है कि असंगठित श्रमिकों के ट्रेडयूनियन सरीखे संगठन बनाए जाएं और वे बाहूबल के जोर से ऊंचे वेतन हासिल करें जैसे केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों ने वेतन आयोगों की सिफारिशों को लागू करा कर हासिल किया है, परंतु असंगठित क्षेत्र को संगठित कराना दुष्कर कार्य है। कारण यह कि असंगठित क्षेत्र में विक्रेता तथा क्रेता दोनों फैले हुए अथवा विकेंद्रित होते हैं। फैक्टरी में 1000 श्रमिक एक स्थान पर सहज एकत्रित हो जाते हैं, उन्हें एकत्रित करने के लिए अलग से प्रयास नहीं करने होते हैं, परंतु ब्लॉक के सभी जुलाहों को एकत्रित करने में उनकी एक दिन की दिहाड़ी जाती है। यदि एक ब्लॉक, जिले अथवा राज्य के जुलाहों ने अपना संगठन बना लिया, तो दूसरे राज्य के असंगठित जुलाहे सस्ता माल बेच देंगे और यह संगठन फेल हो जाएगा।

असंगठित श्रमिकों का संगठन तब ही सफल होगा, जब उसका बाजार के मूल्यों पर नियंत्रण होगा। इस संबंध में घाना का अनुभव हमें रास्ता दिखाता है। असंगठित क्षेत्र के लोगों को संगठित करने के लिए कच्चे तथा तैयार माल के मूल्यों पर नियंत्रण जरूरी होता है। घाना प्राइवेट रोड ट्रांसपोर्ट यूनियन ने टैक्सी तथा ट्रक चालकों को संगठित किया है। यह यूनियन यातायात के भाड़े तय कर देती है। टिंबर वुडवर्कर्स यूनियन के तहत लकड़ी की नक्काशी करने वालों, केन के फर्नीचर बनाने वालों, आरा मशीन वालों आदि के अलग-अलग संगठन बनाए गए हैं। ये संगठन सरकारी ठेकों पर वार्ता करते हैं और यूनियन के माध्यम से रेट तय करते हैं। इन यूनियनों को कुछ सफलता मिली है, परंतु दूसरे उद्योगों का संगठन कठिन साबित हो रहा है। जनरल एग्रीकल्चरल वर्कर्स यूनियन के तहत खेत मजदूरों और छोटे किसानों को संगठित किया गया है, लेकिन यूनियन को संगठन में खर्च अधिक करना पड़ता है और सदस्यता शुल्क कम आता है। इसलिए संगठन का विस्तार नहीं हो रहा है। घाना हेयर ड्रेसर्स एंड ब्यूटीशियन एसोसिएशन के माध्यम से इस उद्योग में लगे लोगों को ट्रेनिंग दी जाती है, परंतु सदस्यों का जीवन नहीं सुधरा है। सदस्य अपना सदस्यता शुल्क नहीं दे रहे हैं और मीटिंग में नहीं आ रहे हैं। निष्कर्ष यह निकलता है कि असंगठित श्रमिकों के संगठन तब ही सफल होंगे, जब वे माल के मूल्य का निर्धारण कर सकें। माल का मूल्य बढ़ाने के लिए सस्ते आयातों से संरक्षण जरूरी है। अतः खुले विश्व बाजार के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों का हित हासिल नहीं किया जा सकता है। तीसरा सुझाव है कि असंगठित श्रमिकों के लिए बीमा, बेरोजगारी भत्ता, स्वास्थ्य सेवा आदि की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाए। इस सुझाव में समस्या यह है कि इन सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए सरकार को दूसरे क्षेत्रों पर टैक्स लगाना होगा, जो कि वैश्विक बाजार में संभव नहीं है। वैश्वीकरण में उस देश की जीत होगी, जिसकी सरकार न्यूनतम टैक्स लगाए और जहां माल का उत्पादन सस्ता पड़े। इन सुविधाओं को मुहैया कराने के लिए जो देश टैक्स ज्यादा लगाएगा, उसका माल महंगा पड़ेगा और वह विश्व बाजार से बाहर हो जाएगा, जैसे वर्तमान में अमरीका तथा यूरोप के देश निर्यात करने में असफल हो रहे हैं। चौथा सुझाव है कि संगठित श्रमिकों को कोआपरेटिव सोसायटी में संगठित कर दिया जाए, जैसे अहमदाबाद की ‘सेवा’ नामक संस्था ने किया है। कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी दिशा में असंगठित क्षेत्र को संगठित करने का सुझाव दिया था। इस सुझाव में समस्या यह है कि कोआपरेटिव में सदस्यों में आपसी तालमेल बैठाने में कठिनाई होती है।

कोआपरेटिव कपड़ा मिल के सामने निजी कपड़ा मिल ज्यादा सफल होती है, चूंकि मुख्य अधिकारी तत्काल और खुले दिमाग से निर्णय ले सकता है। कोआपरेटिव उद्यम के मुख्याधिकारी पर सदस्यों का दबाव होता है, जैसे कोआपरेटिव चीनी मिल के लिए गन्ने का मूल्य कम करना कठिन होता है। ‘सेवा’ एवं अमूल जैसी संस्थाओं की सफलता के पीछे इला भट्ट और वी. कुरियन जैसे विशिष्ठ व्यक्ति हैं, जो कि व्यापारिक क्षमता और सदस्यों के तालमेल को साथ-साथ बखूबी निभा पाए हैं। दूसरे स्थानों में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति उपलब्ध नहीं होते हैं, जिससे कोआपरेटिव फेल हो जाती हैं। असंगठित क्षेत्र में लोगों की स्थिति में सुधार के लिए दो शर्तें हैं। एक, यह कि उनके संगठन केवल ट्रेनिंग और ऋण तक सीमित न रहें, बल्कि कच्चे एवं तैयार माल के मूल्य निर्धारण में दखल करें। दूसरा, यह कि तैयार माल को प्रतिस्पर्धा से बचाया जाए। यह संरक्षण सरकार को देना होगा। संगठन एवं संरक्षण के योग से ही असंगठित श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। असंगठित श्रमिकों के संगठन बनाने मात्र से उनकी स्थिति में सुधार होगा, ऐसा सोचकर बैठ जाने से काम नहीं चलेगा। सरकार को श्रम सघन उत्पादों को सस्ते आयातों से संरक्षण देने की पहल स्वयं करनी चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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