क्या राजनीति समय व संसाधनों की बर्बादी है ?

By: Nov 23rd, 2018 12:07 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

इसके विपरीत हमारे यहां कई तरह की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। यहां कई रीतियां हैं, वीआईपी के साथ कारों का काफिला चलता है, रक्षक दल साथ होता है तथा हर कोई अतिथि का स्वागत फूलमाला से करता है तथा उसकी प्रशंसा में लंबा भाषण देकर उसे आसमान की ऊंचाई तक पहुंचा देता है। उद्घाटन समारोहों में ज्यादातर समय इन औपचारिकताओं में ही बर्बाद कर दिया जाता है। कई अवसरों पर जब मैं अतिथि होता हूं, तो मेरा दम घुटने लगता है तथा मैं आयोजकों से औपचारिकताएं कम करने को कहता हूं…

18 वर्ष पहले जब मैं हिमाचल आया था, तो मैंने सोचा था कि मुझे इस प्रदेश में कुछ योगदान करना चाहिए क्योंकि इसने मुझे भी काफी कुछ दिया है। भारत और विदेशों में मैंने जो कार्य अनुभव प्राप्त किया, उसके बल पर क्या मैं प्रदेश की कोई सेवा कर सकता हूं? मैंने यह सवाल अपने मित्रों से पूछा था। उनमें से एक संसद का सदस्य था तथा साथ ही वह सेना का जनरल भी रह चुका है। उसने मुझसे पूछा कि आप राजनीति में प्रवेश क्यों नहीं ले लेते तथा इस तरह आप प्रदेश की सेवा भी कर सकते हैं। मैं भारत में सरकार के साथ 40 वर्षों तक काम कर चुका था। इस दौरान मैंने कई महत्त्वपूर्ण संगठनों जैसे इस्पात, विमानन व शिपिंग का नेतृत्व भी किया और साथ ही उच्च स्तर का प्रबंधन संस्थान भी स्थापित किया। मैंने जनरल साहिब को बताया कि अगर मैं ईमानदारी से काम करता हूं तो राजनीति समय व धन की एक बड़ी बर्बादी है तथा किसी अन्य तरीके से मैं काम नहीं कर सकता हूं। मैंने इसका एक ट्रायल देने पर सहमति प्रकट की। हिमाचल में यह पहली बार था जब मुझे किसी मुख्यमंत्री का स्वागत करने के लिए जाना पड़ा, जो हेलिकाप्टर से आ रहे थे। मेरे मित्रों ने मुझे हेलिपैड तक जाने के लिए प्रेरित किया जहां मैंने एक बड़ी भीड़ उमड़ी देखी जिसमें सरकारी अधिकारी, पार्टी वर्कर तथा ख्यात नागरिक शामिल थे। सभी ने फूलों की मालाएं अपने साथ ला रखी थीं तथा इन्हीं में से एक माला मुख्यमंत्री को पहनाने के लिए मुझे भी दी गई। सीएम का विमान मौसम संबंधी समस्याओं के कारण देरी से पहुंचा।

जैसे ही सीएम विमान से उतरे, सभी लोग उनका अभिवादन करने के लिए उनकी ओर दौड़ पड़े। वास्तव में वहां भीड़ के कारण अव्यवस्था फैल गई तथा मुझे भी कई धक्के लगे। सीएम का इंतजार कर रहे एक कैबिनेट मंत्री भी इस दौरान धक्का-मुक्की के शिकार हो गए तथा उन्हें कुछ स्वयंसेवकों ने बचाया। सीएम विमान से हंसते हुए बाहर निकले और उन्होंने पुष्प मालाएं स्वीकार की। इसके बाद वह तेजी से उनके इंतजार में खड़े एक वाहन में आगे निकल पड़े। हम सब उनके पीछे भागने लगे। उस दिन मैंने कोई भी उपयोगी काम किए बिना सात घंटे व्यर्थ में गंवा दिए। यह सात घंटे केवल सीएम के इंतजार में ही बीत गए। मैंने अपने मित्र से पूछा कि फलदायक-विहीन इस स्वागत में इतना समय क्यों बर्बाद किया जाए? वह मुस्कराने लगे और कहने लगे कि राजनीति में यह होता ही है। मुझे यह बात अजीब लगी कि इस तरह के स्वागत में बेहतर प्रबंधन की किसी ने सोची तक नहीं। बेहतर इंतजाम करके एक पंक्ति बनाई जा सकती थी जहां तय समय पर सीएम सभी से मिल सकते थे, उनका स्वागत कर सकते थे तथा स्वागत के लिए पहुंचे हुए लोगों से सीएम बतिया भी सकते थे। मैंने अपने मित्र से कहा कि राजनेता सीएम को इस तरह की सलाह क्यों नहीं देते। इस पर वह हंसने लगे और कहा, ‘क्या पता है कि सीएम इस सुझाव को पसंद करेंगे, वह भी उस स्थिति में जबकि लोग उन्हें काफी भाव देते हैं।’ यह पहली बार था कि मैंने आठ से नौ घंटे बिना कुछ किए ही बर्बाद कर दिए, मैं 70 किलोमीटर दूर से आया था तथा बिना किसी फलदायक परिणाम के ही रह गया।  मैं केंद्र के कैबिनेट मंत्रियों के साथ काम कर चुका था तथा मुझे इस तरह का अनुभव नहीं था। यहां तक कि जब मैं प्रधानमंत्री से मिला तथा उन्हें कुछ प्रस्तुतियां भी दीं, तब भी मुझे इस तरह का कड़वा अनुभव नहीं हुआ था। हमारा हमेशा व्यावसायिक नजरिया रहता था तथा हम काम के प्रति सचेत रहते थे। मैंने विदेश में मंत्री तथा यहां तक कि राजसी संभ्रांत जन देखे हैं जो समारोहों की शुरुआता करने के लिए आते हैं। पूरी प्रक्रिया सादगी वाली रहती है। वीआईपी को रिसीव किया जाता है तथा मंच तक ले जाया जाता है जहां वे छोटी टिप्पणियों के साथ कांफ्रेंस की शुरुआत करते हैं। वहां पर न कोई पूजा होती है, न कोई प्रकाश व्यवस्था होती है, न गाने होते हैं और न ही स्वागत करने के लिए अन्य कोई औपचारिकता पूरी की जाती हैं। केवल उनका राष्ट्र गान गाया जाता है। इसके विपरीत हमारे यहां कई तरह की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। यहां कई रीतियां हैं, वीआईपी के साथ कारों का काफिला चलता है, रक्षक दल साथ होता है तथा हर कोई अतिथि का स्वागत फूलमाला से करता है तथा उसकी प्रशंसा में लंबा भाषण देकर उसे आसमान की ऊंचाई तक पहुंचा देता है। उद्घाटन समारोहों में ज्यादातर समय इन औपचारिकताओं में ही बर्बाद कर दिया जाता है। कई अवसरों पर जब मैं अतिथि होता हूं, तो मेरा दम घुटने लगता है तथा मैं आयोजकों से औपचारिकताएं कम करने को कहता हूं। दूसरी ओर हमारे नेता पूजा व स्वागत की बड़ी औपचारिकताएं चाहते हैं। उस दिन जब मैंने सीएम को फूलों का हार पहनाने के लिए ही करीब दस घंटे बर्बाद कर दिए, मैंने राजनीति में आने के बजाय कोई रचनात्मक कार्य करने की सोची।

इसलिए मैंने तीन साल तक अनुसंधान किया और एक किताब लिखी जिसका नाम है ‘कोरोनेशन ऑफ शिवा-रिडिस्कवरिंग मसरूर टैंपल’। यह एक सृजनात्मक काम था तथा इसने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से अनुदान हासिल करने के लिए मेरे दस्तावेज को इंगित (कोट) करने में सरकार की मदद की। हिमाचल सरकार ने इस योगदान को भाव दिया तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस किताब पर धर्मशाला में आयोजित सेमिनार में सारा दिन सहभागिता की।

उन्होंने मेरे इस काम को भाव ही नहीं दिया, बल्कि मेरे द्वारा प्रस्तावित योजना पर मसरूर उत्सव आयोजित करने के लिए एक्शन प्लान भी शुरू किया। मैं सोचता हूं कि प्रदेश के लिए कुछ करने का यह एक बेहतर रास्ता था, किंतु मैं राजनीति में संसाधनों की बर्बादी के मसले पर सामंजस्य नहीं कर पाया तथा इसके लिए समूह जनता को तैयार नहीं कर पाया। राज्य में होने वाले सरकारी समारोहों व उत्सवों में सादगी का विषय अभी भी लंबित पड़ा है, इस दिशा में कोई सोच नहीं उभर पाई है। शपथ ग्रहण समारोहों की अगर हम मिसाल लेते हैं तो हाल में जब कर्नाटक में नए मुख्यमंत्री ने शपथ ली, तो उस दौरान सार्वजनिक सेवाओं से जुड़े कुछ लोगों द्वारा किए गए एक दिन के खर्च से ही हम अनुमान लगा सकते हैं कि इस तरह के समारोहों का आयोजन कितना महंगा पड़ने लगा है। इस दौरान शराब खपत पर अरविंद केजरीवाल ने 1.08 लाख, मायावती ने 1.04 लाख, कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने 1.02 लाख, पी विजयन ने 1.0 लाख, सपा के अखिलेश यादव ने 1.2 लाख तथा तेजस्वरी यादव ने 1.2 लाख रुपए खर्च किए। अन्य लोगों का खर्च भी कमतर इसी तरह रहा। इस तरह इस एक समारोह में ही एक दिन में शराब पर ही 42 लाख रुपए खर्च कर दिए गए। इस पर दुखद बात यह कि अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि यह एक राजनीतिक कार्यक्रम था जिसका खर्च पार्टियां वहन करेंगी, न कि सरकार।

जिन लोगों ने इस समारोह में लुत्फ उठाया, अब वे मेरी निंदा करेंगे तथा कहेंगे कि क्या यह बर्बादी है? इस तरह के निरर्थक समारोहों के अतिरिक्त लग्जरी कारों की खरीद, घरों को सजाने तथा धन का अपव्यय बड़े पैमाने पर हो जाना उस देश में मानवता के प्रति एक अपराध है जिस देश की अधिकतर जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती हो। ऐसी स्थिति में मेरा सुझाव है कि केंद्र सरकार राजनीतिक व सरकारी कार्यक्रमों में अनावश्यक खर्च तथा फालतू की औपचारिकताओं पर रोक लगाते हुए भविष्य के लिए समारोहों की सादगी की परंपरा की शुरुआत करे। धन तथा समय की बर्बादी रोकते हुए सादे समारोहों का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कुछ मापदंड तय किए जाने चाहिए।

 ई-मेल : singhnk7@gmail.com

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