क्रूर यातायात प्रबंधन

By: Nov 27th, 2018 12:06 am

सिरमौर में बस हादसा फिर यह साबित कर गया कि हिमाचल में सड़कों पर अनियंत्रित वाहनों पर न पहले अंकुश था और न अब है। श्रीरेणुका जी में जो मरे, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। न परिवहन विभाग आपसी प्रतिस्पर्धा में चलते ऐसे निजी वाहनों पर नकेल कस सका और न ही ट्रैफिक नियंत्रण में पुलिस महकमा कोई प्रणाली विकसित कर पाया। करीब एक साल से नई परिवहन नीति के बारे में मंत्री ने जो कहा, उसकी अगंभीरता भी तो इस हादसे में दर्ज है। रूट-परमिट के सिलसिलों में बरती गईं अनियमितताएं भी तो वाहनों को घातक प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल कर रही हैं। परिवहन विभाग नई मंजूरियों पर जो अनापत्तियां एकत्रित करता है, उस पर सड़क सुरक्षा का कोई पैमाना नहीं। ऐसा कभी नहीं देखा गया कि ओवर स्पीड दौड़ती बसों की शिकायत के आधार पर परमिट निलंबित किए गए हों या कोई ऐसी हेल्पलाइन बनाई गई हो, जिसके माध्यम से गलत ड्राइविंग करने वालों की शिकायत दर्ज कराई जा सके। ड्राइविंग लाइसेंस की परिपाटी में न प्रशिक्षण मुकम्मल है और न ही वाहन चालन की आचार संहिता। किसी शहर में वाहनों की तादाद पर यह सर्वेक्षण नहीं हुआ कि आखिर बढ़ती तादाद का दबाव क्या है। ग्रामीण रूट परमिट तो और भी बदतर हालत में निरंकुश हो कर चलते हैं और इसीलिए सबसे अधिक दुर्घटनाएं ऐसी मंजिलों पर ही घटती हैं। परिवहन विभाग अपने दायित्व में सड़क सुरक्षा का निर्देशन भी करे, तो आपसी प्रतिस्पर्धा में दौड़ते अनियंत्रित वाहनों पर रोक लगेगी। यह केवल दुर्घटना की परिस्थिति में ही नहीं, बल्कि आम यात्री की सुविधाओं तथा पर्यटक वाहनों के संबंध में भी जरूरी है कि परिवहन विभाग अपनी जिम्मेदारी का दायरा बढ़ाए। प्रदेश में टैक्सी संचालन को बेहतर पर्यटक सुविधाओं के खाके के बजाय इस प्रकार हांका जाता है, जैसे यात्री केवल दोहन की वस्तु हैं। ऐसी कोई पड़ताल या सर्वेक्षण नहीं होते, जिससे टैक्सी आपरेशन के मानदंड स्थापित हो सकें। हिमाचल में दोपहिया वाहन चालकों के रूप में युवाओं पर कोई नियंत्रण नहीं और इसीलिए सबसे अधिक यही वर्ग दुर्घटनाओं का शिकार हो रहा है। ऐसे में सड़क सुरक्षा के नए पैमानों से परिवहन नीति तथा ट्रैफिक व्यवस्था को भी खंगालना पड़ेगा। हर दुर्घटना एक जांच के सिवाय कोई सबक नहीं देती, लिहाजा सड़क पर आम हिमाचली हर दिन मौत के मंजर से मुखातिब है। श्रीरेणुकाजी बस हादसे में सुनी गई चीखें हमारी व्यवस्था को चीरफाड़ कर रही हैं। लापरवाही तथा लोगों की जिंदगी से खेलने का ही परिणाम है कि एक निजी बस ने पुल से छलांग लगा दी और नौ यात्री मौत के ग्रास बन गए। दुर्घटनाओं की क्रूरता को हम जांच के नतीजों से सिर्फ एक दस्तावेज बना पाए, जबकि इसका ताल्लुक यातायात प्रबंधन से जुड़ता है। प्रदेश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं वास्तव में यातायात प्रबंधन की लाचारी है और जहां हर किसी को जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ रहा है। हर दिन सड़कों पर बढ़ता वाहनों का दबाव तथा यातायात नियमों की अवहेलना के कारण सुर्खियां किसी न किसी दुर्घटना के लहू से लथपथ होती हैं, तो हमें यह भी सोचना होगा कि प्रदेश में यातायात की नई व्याख्या क्या होगी। प्रस्तावित नेशनल हाई-वे तथा फोरलेन के निर्माण जहां भविष्य की सड़कों को रेखांकित करेंगे, वहीं जिला तथा राज्य हाई-वे को उच्चतर मानदंडों के अनुरूप सुदृढ़ करने की जरूरत है। सिरमौर की दुर्घटना एक तरह से राज्य की परिवहन नीति का दुखद परिणाम है, अतः जांच के साथ-साथ यह शपथ पत्र भी तैयार हो कि आइंदा कोई चालक यूं ही मंजिल को श्मशानघाट न बना सके।

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