जन्म स्थान पर राम मंदिर क्यों नहीं

By: Nov 9th, 2018 12:09 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

उस बाबर की मस्जिद पत्रकारों अथवा न्यायपालिका या उन सब लोगों, जो इसे संरक्षित कर रहे हैं, के लिए इतनी मूल्यवान कैसे हो सकती है? मुसलमानों का शिया समुदाय पहले से ही लखनऊ शिफ्ट होने के लिए तैयार है जहां मस्जिद के लिए वैकल्पिक स्थान दिया जा सकता है। मुसलमानों, ईसाइयों व बौद्धों के अपने देवताओं के जन्म स्थान पर आलीशान स्मारक हैं, किंतु हिंदुओं का अपने भगवान के जन्मस्थान पर मंदिर नहीं है…

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से पूरा हिंदू समुदाय उपेक्षित महसूस कर रहा है। राम मंदिर पर सुनवाई को प्राथमिकता न मिलने से यह समुदाय क्षुब्ध है, वह भी ऐसी स्थिति में जबकि वह एक लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट की ओर टकटकी लगाए हुए था, किंतु उसे राहत नहीं मिल सकी। इस मसले को अगले साल के लिए धकेलने से पूर्व एक पीठ का मात्र सात मिनट का सत्र हुआ। इस मामले को वर्ष 1949 में ही सुलझा लिया गया होता, किंतु भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के एक पत्र ने बाधा उत्पन्न कर दी जो उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखा था। इसमें निर्देश दिए गए थे कि इस मामले को लटकाया रखा जाए ताकि पाकिस्तान व मुसलमानों से हमारे संबंध खराब न हों। आज इतने वर्षों बाद भी हिंदू अयोध्या में राम मंदिर की बहाली के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत के चक्कर काट रहे हैं।

इस मंदिर को मुस्लिम आक्रांता बाबर ने ध्वस्त कर दिया था, जो अपने देश के लिए निश्चित ही एक बहादुर सैनिक था, किंतु भारत में वह एक आक्रांता था। उसने राजपूत राजा को आंतरिक कुल बैर के चलते पराजित कर दिया था जिसके बाद रियासत पर उसका कब्जा हो गया था। लड़ाई के पहले दिन राजपूत इतनी बहादुरी से लड़े कि बाबर हार गया था। उसने शाम को दोबारा शराब न पीने की कसम खा ली। उसने अपना शराब का प्याला इसलिए तोड़ दिया ताकि विचलित होते मुगल जवानों का हौसला कायम रखा जा सके। उसे शत्रुओं की ओर से भी मदद मिली जिससे वह दूसरे दिन जीत की स्थिति में आ गया। इस तरह उत्तर भारत में हिंदू शासन खत्म हो गया। उस बाबर की मस्जिद पत्रकारों अथवा न्यायपालिका या उन सब लोगों, जो इसे संरक्षित कर रहे हैं, के लिए इतनी मूल्यवान कैसे हो सकती है? मुसलमानों का शिया समुदाय पहले से ही लखनऊ शिफ्ट होने के लिए तैयार है जहां मस्जिद के लिए वैकल्पिक स्थान दिया जा सकता है। मुसलमानों, ईसाइयों व बौद्धों के अपने देवताओं के जन्म स्थान पर आलीशान स्मारक हैं, किंतु हिंदुओं का अपने भगवान के जन्मस्थान पर मंदिर नहीं है। हालांकि इसके लिए कई प्रयास किए गए, परंतु कोई समझौता नहीं हो सका। बाबर, जो कि दमन का प्रतीक है, उसकी मस्जिद सत्य तथा नैतिकता के महान प्रतीक राम की जगह नहीं हो सकती। उनकी भावना के विध्वंस की स्मृतियों को स्वतंत्र भारत की भूमि पर जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, उस भारत की भूमि जो वर्षों तक दासता के अधीन रही। निम्नलिखित तथ्यों की पुष्टि हो जाने के बाद राम मंदिर मामले में अब और तर्क अथवा सबूत की जरूरत नहीं है। प्रथम, वर्ष 1855 तक यहां तक हिंदुओं की पहुंच थी और पुलिस डायरी में रिकार्ड की गई रिपोर्ट  के मुताबिक मस्जिद को मंदिर के ऊपर बनाया गया था। दूसरे, वर्ष 1949 में मूर्ति को ढांचे के अंदर किसी भी ओर से बिना किसी विरोध के रखा गया था। तीसरे, वर्ष 1992 में यहां मंदिर का शिलान्यास किया गया।

चौथे, हाई कोर्ट ने आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया को कहा कि वह इस बात को तसदीक करे कि क्या मस्जिद से पहले मंदिर का अस्तित्व था। खुदाई के बाद यह प्रमाणित हुआ कि मंदिर का अस्तित्व था तथा मंदिर के स्तंभ मस्जिद की दीवारों के भीतर पाए गए। इस खुदाई कार्य की देख-रेख डा. केके मोहम्मद ने की तथा जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बताने के लिए सच्चाई सामने है। पांचवें, इसने इतिहासविदों के इस तर्क को खत्म कर दिया कि यह विश्वास का मामला है तथा इसमें कोई प्रमाण नहीं है। हाई कोर्ट ने तीन-चौथाई जमीन हिंदू पक्षकारों को दी तथा बाकि मुसलमानों को दी गई। छठे, दोनों पक्षों ने पूरे जमीन तर्क पर आरूढ़ रहने से इनकार कर दिया तथा सुप्रीम कोर्ट में चले गए। इस मामले में वर्षों की देरी पहले ही हो चुकी थी तथा जब यह अंतिम चरण में पहुंचा तो इसे वर्ष 2019 के लिए धकेल दिया गया। छह अदालतों में जीतने के बाद अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संदेह की स्थिति में लटकाए रखा। जो लोग दशकों से इंतजार कर रहे थे, वे अब धैर्य खो चुके हैं तथा सद्भावना बनाए रखने की जिम्मेवारी अब उन लोगों पर है जो मंदिर निर्माण में अवरोध खड़े कर रहे हैं। संतों के इकट्ठ ने निर्देश भी जारी किए हैं। उन्होंने  यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यह कोई सुझाव नहीं है। मंदिर के लिए ईंटें इकट्ठी की जा रही हैं तथा पूरा देश उत्सकुता से देख रहा है। पेचीदगी वाला कारक यह है कि संसद के लिए चुनाव वर्ष 2019 में होने हैं। कांग्रेस पहले ही अपील कर चुकी है कि इस मामले पर सुनवाई चुनाव के बाद होनी चाहिए, किंतु इस अपील को सुना नहीं गया। अब सुप्रीम कोर्ट वही चीज कर रहा है। क्या इसका लाभ कांग्रेस को होगा अथवा मोदी को? बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हस्तक्षेप वाले समय में क्या होता है, विशेषकर दिवाली के बाद जब राजनीतिक दल आगे के कदम उठाने के लिए तैयार होंगे। इस समय सरकार के समक्ष चार विकल्प मौजूद लगते हैं। पहला विकल्प यह है कि दोनों समुदायों को सभी दलों के नेताओं की मदद से किसी समझौते पर पहुंचने के लिए अंतिम प्रयास करना चाहिए। दूसरा विकल्प यह है कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की दोबारा सुनवाई के लिए अपील की जाए। तीसरा विकल्प यह है कि इस संबंध में कोई कानून बना लेना चाहिए।

यहां तक कि एक पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति चेलमेश्वर को भी लगता है कि यह संभव है। चौथा विकल्प यह है कि भूमि अधिकारों को देने के लिए अध्यादेश जारी किया जाना चाहिए। मंदिर को लेकर लोगों की भावनाएं अब चरम पर हैं, इसलिए स्थितियों का सामना करने के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठा लेने चाहिएं। यह भी सत्य है कि सभी धर्मों के लोग चाहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बने क्योंकि इतिहासविदों के लिए अब यह मामला केवल भावना का नहीं रहा है, बल्कि मामले से संबंधित कई सबूत सामने आ गए हैं। इस मामले में अब निश्चित प्रमाण सामने हैं तथा हाई कोर्ट की देख-रेख में हुई खुदाई में मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। मुझे आशा है कि इस मामले को दोनों पक्षों द्वारा शांतिपूर्वक तरीके से सुलझा लिया जाएगा।

 ई-मेल: singhnk7@gmail.com


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