बाहर जा रही देश की पूंजी

By: Nov 6th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

देश की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट सपाट है। इसलिए बुनियादी संरचना में निवेश भी अर्थव्यवस्था के चक्के को घुमा नहीं पा रहा है। इस परिस्थिति में देश की आर्थिक विकास दर को पुनः गति पर लाने के लिए सरकार को तत्काल जीएसटी का सरलीकरण करना चाहिए, जिससे कि छोटे उद्यमी को फिर से ऊर्जा मिले। दूसरा, भ्रष्ट नौकरशाही को ईमानदार मानने के स्थान पर भ्रष्ट मानते हुए उन पर लगाम कसनी चाहिए। तीसरा, सरकार को दूसरे देशों से आयातित माल से देश की अर्थव्यवस्था को संरक्षण देना चाहिए। आयात कर बढ़ाने चाहिएं, जिससे उत्पादन देश में बढ़े और देश में निवेश हो, लोगों को रोजगार मिल सके…

यूपीए सरकार के अंतिम चार वर्ष 2011 से 2014 में देश की ग्रॉथ रेट 6.8 प्रतिशत थी। मोदी सरकार के प्रथम चार वर्ष 2015 से 2018 में हमारी ग्रॉथ रेट लगभग इसी स्तर पर 6.9 प्रतिशत रही है। प्रश्न है कि मोदी सरकार की ईमानदारी और कार्यकुशलता के बावजूद देश की ग्रॉथ रेट में बढ़त क्यों नहीं हो रही है? इसका कारण यह दिखता है कि देश की पूंजी बड़े पैमाने पर बाहर जा रही है।

पूंजी के पलायन का पहला प्रमाण है कि 2014 में हमारी मुद्रा का मूल्य 61 रुपए प्रति डालर था। आज यह 74 रुपए प्रति डालर हो गया है। रुपए का मूल्य गिरने का मतलब यह है कि रुपए की सप्लाई ज्यादा है और डालर की डिमांड ज्यादा है या डालर की डिमांड ज्यादा है और सप्लाई कम। डालर की डिमांड ज्यादा होने से डालर के दाम बढ़ रहे हैं और तदानुसार रुपए के दाम गिर रहे हैं। देश के नागरिक अपनी पूंजी को बाहर भेजने के लिए मुद्रा बाजार में रुपए जमा कराकर डालर खरीद रहे हैं और उन डालर को विदेश भेज रहे हैं। अपनी पूंजी के पलायन का दूसरा प्रमाण है कि मार्गन स्टैनली के अनुसार वर्ष 2014 से 2017 तक लगभग 30 हजार ऊंची आय वाले लोग भारत से पलायन कर चुके हैं। इन्होंने दूसरे देशों की नागरिकता ले ली है। पलायन की यह रफ्तार भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। 2014 से 2016 के बीच करीब 5300 व्यक्तियों ने हर वर्ष पलायन किया। 2017 में यह बढ़कर 7000 व्यक्ति हो गए थे। ये व्यक्ति पलायन के साथ-साथ अपनी पूंजी को भी भारत से बाहर ले जाते हैं। देश से पूंजी के पलायन का एक और संकेत भ्रष्टाचार से मिलता है। जमीनी हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है, लेकिन भ्रष्टाचार से अर्जित धन इस समय प्रापर्टी में नहीं निवेश किया जा रहा है और प्रापर्टी के दाम गिर रहे हैं।

सोना खरीद कर भी संग्रह नहीं किया जा रहा है, क्योंकि लोगों को डर है कि सरकार इन्कम टैक्स की रेड करके उसे पकड़ सकती है। कुछ रकम नकद में रखी जा रही है, जिसका प्रमाण है कि नोटबंदी के बाद पुनः उतनी ही मात्रा में नकद सर्कुलेशन में आ गया है, लेकिन नकद में तो पहले भी भ्रष्टाचार का धन रखा ही जा रहा था। जो धन पूर्व में प्रापर्टी तथा सोने में निवेश किया जा रहा था, वह इस समय बाहर जा रहा है ऐसा अनुमान लगता है। इन तीनों मदों से देश की पूंजी के बाहर जाने के दो परिणाम एक साथ होते हैं। पहला यह कि रुपए का मूल्य गिरता है, जैसा हो रहा है और दूसरा परिणाम यह कि देश की जो पूंजी देश में निवेशित होकर ग्रॉथ रेट को बढ़ाती है, वह बाहर जा रही है। देश में निवेश कम हो रहा है और हमारी आर्थिक विकास दर 6.8 या 6.9 प्रतिशत की दर पर सपाट पड़ी हुई है। पूंजी के इस पलायन का पहला कारण यह दिखता है कि देश के उद्यमी सदमे में हैं। उनमें निवेश करके अपने व्यापार को बढ़ाने की ऊर्जा नहीं है। नोटबंदी और जीएसटी के माध्यम से सरकार ने ईमानदार उद्यमियों को चोर की तरह दर्शाया है। ईमानदार उद्यमी पर भ्रष्ट नौकरशाही को बैठा दिया गया है। जो नौकरशाही भ्रष्ट है, उससे ईमानदार उद्यमी पर शिकंजा कसा जा रहा है। ऐसे में देश के उद्यमी सदमे में हैं। उनमें मानसिक ऊर्जा नहीं है कि वे अपनी पूंजी का निवेश करें। दूसरा कारण यह है कि नोटबंदी और जीएसटी से देश में छोटे उद्यमियों का हृस हुआ है और बड़े उद्यमियों को खुला मैदान मिला है।

इसका प्रमाण यह है कि आर्थिक विकास दर के सपाट होने के बावजूद सेंसेक्स में उछाल आ रहा है। आर्थिक विकास दर सपाट होने का अर्थ यह है कि कुल उत्पादन पूर्ववत है, जबकि सेंसेक्स में उछाल आने का अर्थ यह है कि बड़े उद्यमियों के लाभ बढ़ रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि छोटे उद्यमी सिकुड़ रहे हैं और बड़े उद्यमी बढ़ रहे हैं, लेकिन बड़े उद्यमियों के सामने दो विकल्प होते हैं। वे माल का उत्पादन भारत में कर सकते हैं अथवा चीन में उत्पादन करके भारत को निर्यात कर सकते हैं। हमने खुले व्यापार को अपना रखा है। इसलिए बड़े उद्यमी में से कुछ माल का उत्पादन देश में न करके चीन में उत्पादन करके भारत को निर्यात कर रहे हैं। छोटे उद्यमियों के सिकुड़ने से बड़े उद्यमियों को खुला मैदान मिल गया है। यह खुला मैदान घरेलू और विदेशी दोनों ही बड़े उद्यमियों को मिला है। बाजार को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि सस्ता माल भारतीय कंपनी द्वारा उत्पादन किया गया है अथवा चीन की कंपनी के द्वारा। इसलिए छोटे उद्यमियों के सिकुड़ने से विदेशी बड़ी कंपनियों द्वारा उत्पादन किए गए माल का देश में आयात ज्यादा हो रहा है। इसका प्रमाण यह है कि हमारा व्यापार घाटा बढ़ रहा है। इसलिए हमारी विकास दर के सपाट रहने का कारण यह बनता है कि हमने अपने छोटे उद्यमियों के दायरे को सिकोड़ दिया और उस क्षेत्र का एक हिस्सा विदेशी बड़े उद्यमियों को चला गया है, जिससे देश में उत्पादन कम हो रहा है और देश की विकास दर न्यून बनी हुई है। प्रश्न उठता है कि इस समय देश में बुनियादी संरचना में तीव्र गति से जो निवेश हो रहा है, उसका सुप्रभाव क्यों नहीं दिखता है। इसमें कोई संशय नहीं है कि पिछले चार वर्ष में देश में बिजली की परिस्थिति सुधरी है और सड़कों के निर्माण में गति आई है, लेकिन समस्या यह हो गई है कि बिजली की डिमांड नहीं है। बिजली कंपनियां घाटे में चल रही हैं। यह डिमांड इसलिए नहीं है, क्योंकि जैसा ऊपर बताया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था की ग्रॉथ रेट सपाट है। इसलिए बुनियादी संरचना में निवेश भी अर्थव्यवस्था के चक्के को घुमा नहीं पा रहा है।

इस परिस्थिति में देश की आर्थिक विकास दर को पुनः गति पर लाने के लिए सरकार को तत्काल जीएसटी का सरलीकरण करना चाहिए, जिससे कि छोटे उद्यमी को फिर से ऊर्जा मिले। दूसरा, भ्रष्ट नौकरशाही को ईमानदार मानने के स्थान पर भ्रष्ट मानते हुए उन पर लगाम कसनी चाहिए। तीसरा, सरकार को दूसरे देशों से आयातित माल से देश की अर्थव्यवस्था को संरक्षण देना चाहिएं। आयात कर बढ़ाने चाहिए, जिससे उत्पादन देश में बढ़े और देश में निवेश हो, देश के लोगों को रोजगार मिले। तब ही देश की अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आएगी। पूंजी का पलायन बंद होगा, हमारी मुद्रा का मूल्य 61 रुपए प्रति डालर वापस होगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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