बुलंदियों की सजा

By: Nov 20th, 2018 12:05 am

बेशक हिमाचल की हवाएं बुलंदियों के तराने सुनाती हैं और नागरिकों से सरकार तक के सफर में तरक्की के पैगाम जोशो खरोश से लबालब हैं, फिर भी कहीं इस दौड़ ने पैमाने छीन लिए हैं। आखिर कितनी बार भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के आने पर हमारे मेडिकल कालेज छिन्न भिन्न होते रहेंगे। अब सवाल फिर हमीरपुर मेडिकल कालेज के दर पर गब्बर सिंह के अंदाज में पूछा जा रहा है, ‘और कितने डाक्टर चाहिए।’ जवाब में टांडा मेडिकल कालेज के तेरह डाक्टर चिकित्सकीय सेवाओं से कटी पतंग की तरह टूट कर हमीरपुर पहुंच जाएंगे। इसमें उपलब्धि का गणित कितना महंगा हो रहा है, इसका एहसास हम कब करेंगे। इससे पूर्व टांडा मेडिकल कालेज की रूपरेखा में जोनल अस्पताल धर्मशाला बार-बार शहीद हुआ, तो नेरचौक मेडिकल कालेज ने मंडी के अस्पताल की कतरब्यौंत शुरू कर दी है। कब तक टीएमसी चंबा, नाहन के बाद हमीरपुर मेडिकल कालेज को बचाता रहेगा और इसके बदले में कांगड़ा के बड़े अस्पताल भी डिस्पेंसरी से कमतर होते रहेंगे। हिमाचल में क्षेत्रवाद की अजीब प्रतिस्पर्धा का आलम देखिए कि मेडिकल कालेज भी वोट बैंक के चबूतरे बन गए। सत्तर लाख की आबादी के ऊपर सात सरकारी, एम्स, एक निजी मेडिकल कालेज तथा एक अन्य पीजीआई सेटेलाइट सेंटर का निर्माण जब तक पूरा होता है, हमारे वरिष्ठ व विशेषज्ञ डाक्टर केवल इनकी स्थापना में ही मशगूल रहेंगे। क्या मेडिकल कालेज भी सामान्य कालेजों की तरह अपनी काबिलीयत का रोना रोएंगे या जिस तरह टीएमसी आज भी अपनी लाचारी में अक्षम दिखाई देता है, उसी तरह का हश्र बाकी मेडिकल कालेजों का भी होगा। सरकार इन्हीें में से किसी एक को एम्स में तबदील या किसी अन्य को केवल स्नातकोत्तर संस्थान भी तो बना सकती थी। आश्चर्य यह कि उपलब्धियों  के तहखानों में बैठी सियासत इतनी संकीर्ण व क्षेत्रवाद से ओत प्रोत हो चुकी है कि हर प्रभावशाली सत्ता केवल अपनी ही बस्ती सजाती रही है। कुछ इसी तरह थोक में बंटे स्कूल-कालेजों ने शिक्षा की खाल खींच ली और अब हैसियत यह कि हमारे अपने बच्चे लड़खड़ा रहे हैं। उपलब्धियों को सुर्खियों या सियासत में देखने के बजाय जरूरत के हिसाब से प्रासंगिक तो बनाया जाए। क्या धड़ाधड़ खुले इंजीनियरिंग कालेज या निजी विश्वविद्यालय हिमाचल के लिहाज से प्रासंगिक बने। क्या बीएड कालेज प्रासंगिक रहे तो कल जब हर साल आठ सौ डाक्टर इन मेडिकल कालेजों से निकलेंगे तो गुणवत्ता तथा औचित्य की दृष्टि से इनकी प्रासंगिकता कितनी होगी। दुर्भाग्यवश हिमाचल की यह दौड़ पुरानी है। सत्तर-अस्सी के दशक में पर्यटन निगम की इकाइयां ऐसी ही रफ्तार से खुलती गईं, तो आज उनका नामोनिशान नहीं बचा। कितनी इकाइयां बंद हो चुकी हैं और कितनी अलाभकारी होकर बिकने को तैयार हैं, इसका हिसाब तो लगाएं। आश्चर्य तो यह कि पर्यटक सूचना केंद्र ऐसी जगह विकसित हो गए, जहां आज तक एक भी सैलानी नहीं रुका। दरअसल महत्त्वाकांक्षा तथा उपलब्धि के बीच का तार्किक अंतर समझे बिना हिमाचल ने आज तक केवल सियासी लंगोट पहनकर ही चलना सीखा, ऐसे में प्राथमिकताएं औचित्यपूर्ण ढंग से तय नहीं हुईं। सत्ता ने हिमाचल की महत्त्वाकांक्षा को बांटा, लिहाजा राजनीतिक प्रभाव ही कसमें खाने लगा। ऐसे में नीतियों के बजाय घोषणाएं सामने आ गईं तथा सरकार की निरंतरता, सत्ता के बदलने से अपाहिज होती रही। बेशक जीतने वाले को जनता सिकंदर बनाती है, लेकिन पूर्व सरकारों के फैसलों या परियोजनाओं को अछूत मान लेने से बुलंदियां तो हासिल नहीं होंगी। आज अगर राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल हमारी विकासात्मक उपलब्धियों पर शंका की निगाह से देख रहा है, तो समझ लेना चाहिए कि हम कहां खड़े हैं। हमारे टॉप रैंकिंग टूरिस्ट स्थान एनजीटी की कार्रवाइयों से कितने निकम्मे और कितने कामयाब साबित हो रहे हैं, इसका विश्लेषण करेंगे तो पता चल जाएगा कि हमारे भविष्य के लिए क्या कुछ लिखा जा चुका है। अब नई उपलब्धियों के बीच फोरलेन परियोजनाएं अगर भू-अधिग्रहण का जोखिम नहीं उठा पा रही हैं, तो तरक्की के फासलों में हमारा नागरिक समाज भी बौना ही सिद्ध हो रहा है। हिमाचली उपलब्धियों की गणना करते हुए भी यह तय नहीं होता कि इनकी गुणवत्ता का हिसाब क्या है, तो कहीं हमारी कसौटियां और मानदंड दोषपूर्ण हैं। धूमल सरकार के दौर में विशेष आर्थिक क्षेत्र के तहत ऊना में एक बड़ी हवाई पट्टी की महत्त्वाकांक्षी योजना, नागरिक धरातल नहीं खोज पाई तो कमोबेश ऐसी ही परिस्थिति में मंडी एयरपोर्ट की प्राथमिकता से वर्तमान मुख्यमंत्री जूझ रहे हैं। ऐसे में बुलंदियां जब प्रतीक खोजने लगती हैं, तो कहीं न कहीं तार्किक आधार नहीं मिलता। यह दीगर है कि हिमाचल में निजी उपलब्धियों को राजनीतिक कारणों से न तो तरजीह मिलती और न ही ऐसी प्रतिभाओं को हम स्वीकार कर रहे हैं। अगर सरकार चाहे तो निजी रूप से सफलता अर्जित कर चुके हिमाचलियों की प्रतिष्ठित सूचियां बनाकर, बोर्ड-निगमों के सदस्य निदेशक मनोनीत कर सकती है। वास्तव में जो उपलब्धियां निजी या गैरराजनीतिक हैं, उन्हें स्वीकार करके हिमाचल प्रतिष्ठित होता है और देश-विदेश में नाम कमाता है।

जीवनसंगी की तलाश है? तो आज ही भारत  मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें- निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App