स्टार्ट अप हिमाचल

By: Nov 16th, 2018 12:05 am

स्टार्ट अप इंडिया की यात्रा में हिमाचल भी अपनी राह तलाशने निकला, तो परिणामों की प्रतीक्षा में मानसिक उल्लास की समीक्षा होगी। स्टार्ट अप हिमाचल के जरिए जिस रोडमैप पर जयराम सरकार अपने उद्देश्य तय करने निकली, वहां युवा संबोधन यकीनन बदल सकते हैं बशर्ते मानसिक बदलाव और भविष्य की चुनौतियों के प्रति समूची उत्प्रेरणा भी नई इबारत लिखे। दरअसल स्टार्ट अप न तो सरकारी आंकड़ों की पूर्ति है और न ही रोजगार का सरकारी पक्ष, बल्कि यह नए हिमाचल का ऐसा संकल्प बन सकता है, जिसके जरिए नए सिरे से उपलब्धियां लिखी जाएंगी। इसी परिप्रेक्ष्य में सुजानपुर में प्रदेश के पहले महिला व्यापार मंडल के गठन का जिक्र करें, तो स्पष्ट हो जाएगा कि हिमाचली करवटों में भविष्य की रूपरेखा किस तरह बदल सकती है। अगर इसी उदाहरण की समीक्षा करें, तो नारी मंच से हुआ आह्वान यह साबित कर चुका है कि व्यापार का ढर्रा बदल रहा है। कमोबेश ढर्रा बदलने की आहट को ही हम स्टार्ट अप की परिभाषा में स्वतंत्र व मौलिक अस्तित्व में स्थापित कर पाएंगे। रोजगार के बाजार में स्टार्ट अप परिकल्पना वास्तव में मानव संसाधन के नए तेवर की प्रस्तुति है, अतः यह अध्ययन और प्रयोग का ऐसा साहसिक आयोजन भी है जहां युवा पीढ़ी अपने विकल्प खुद लिख रही है। हिमाचल में स्टार्ट अप यात्रा जिन शिक्षण संस्थाओं को छू रही है, वहां हम शिक्षा के संदर्भों में परिवर्तन की आशा कर सकते हैं। यह चिंतन को छूने और उसे पल्लवित करने की ऐसी मंशा है, जिससे पढ़ाई और रोजगार का अभिप्राय बदलेगा। हिमाचली रोजगार को ऐसी नीति का आलोक लाजिमी तौर पर चाहिए, जो छात्र जीवन को अपने सपनों के मुताबिक जोखिम उठाकर चलने का साहस प्रदान करे। स्टार्ट अप के लिए उचित वातावरण तथा विशेष शैक्षणिक काबिलीयत चाहिए। विडंबना यह रही है कि पाठ्यक्रमों की शृंखलाओं में केवल रोजगार को मजदूरी या सरकारी दिहाड़ी लगाने तक की औकात में देखा गया। आज भी ऐसा कोई आदर्श खड़ा नहीं हो रहा, जो युवाओं को स्वतंत्र रोजगार के जोखिम के लिए सशक्त कर दे। मसले हमारे आसपास हैं या रोजगार के विकल्प भी प्रतीक्षारत हैं, लेकिन स्कूल, कालेज से विश्वविद्यालय तक के माहौल में ऐसी दक्षता या मार्गदर्शन नहीं मिलता, जो स्वतंत्र रोजगार का रास्ता दिखा पाए। उदाहरण के लिए हिमाचल के कृषि व बागबानी क्षेत्र में स्टार्ट अप की अवधारणा को अगर प्रतिस्पर्धा में कामयाब करना है, तो विश्वविद्यालयों की प्रयोगशालाओं को अपने अनुसंधान की परिपाटी बदलनी होगी। किसान-बागबान को नई तकनीक से समृद्ध करने के लिए पालमपुर व सोलन विश्वविद्यालयों के ढर्रों की समीक्षा अपरिहार्य है। आश्चर्य यह कि बिलासपुर के हरिमन शर्मा के निजी प्रयास सेब के उत्पादन को देश के गर्म इलाकों तक ले जाने में सफल हो जाते हैं, लेकिन इस कौशल से विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने क्या सीखा। बंदरों के आतंक से प्रभावित हिमाचली खेती व फलोत्पादन पर ही गौर होता, तो स्टार्ट अप के जरिए समाधानों की दिशा में तकनीक व शोध का खुलासा होता। हिमाचल में विश्वविद्यालयों या व्यावसायिक कालेजों का खुलना केवल सरकारी नौकरी की खोज रही है, तो इस प्रवृत्ति को पलटने की मंशा चाहिए। वैज्ञानिक सरकारी नौकर बनकर अपने वार्षिक वेतन-भत्तों के हिसाब में यह भूल रहे हैं कि जीवन के विकल्प और नई तकनीक से युग के संबोधन ही उनके दायित्व की वास्तविक पहचान हैं। हिमाचल में स्टार्ट अप के जरिए नए विचार और नवाचार को आमंत्रित तथा प्रोत्साहित करने की व्यवस्था होनी चाहिए। आज भी कुछ युवा अपनी नौकरी छोड़कर हिमाचल को आई टी हब बनाने में अपना सामर्थ्य लगा रहे हैं, तो क्या हम ऐसे लोगों को सिर आंखों पर बैठाएंगे। हिमाचल में स्वतंत्र रोजगार के क्षेत्र न पूरी तरह चिन्हित हुए और न ही ऐसी अधोसंरचना व व्यवस्था स्थापित हुई है। अब कहीं जाकर दो आईटी पार्कों के मार्फत हिमाचल विश्व समुदाय के सामने शृंगार करने जा रहा है, जबकि नालेज व बायो पार्कों की स्थापना भी अब तक हो जानी चाहिए थी। हिमाचल में स्टार्ट अप यात्रा का वास्तविक मकसद तब पूरा होगा, जब प्रदेश का युवा विचारवान व साहसी जोखिम उठाते हुए पारंपरिक रोजगार के दायरों से बाहर निकल कर, दुनिया जीतने की ख्वाहिश से अपना भविष्य चुनेगा।

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