हिमाचल एथलेटिक : पहले, अब और भविष्य में

By: Nov 2nd, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

हिमाचल में बिलासपुर, शिलारू तथा सावड़ा में भी सिंथेटिक टै्रक बिछ रहे हैं। बिलासपुर में तो कुछ महीनों में ही सिंथेटिक पड़ जाएगा। शेष कार्य पूरा हो चुका है। आज राज्य में विश्व स्तरीय सुविधा है। एशियाई खेलों में ही पदक जीतने पर प्रथम श्रेणी की नौकरी व करोड़ों रुपए मिल रहे हैं, ऐसे में आज का अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य खेल में तलाशने लग गया है…

एथलेटिक्स संसार की सभी प्रतियोगी व गैर प्रतियोगी खेलों की जननी है, क्योंकि मानव विस्थापन की सामान्य क्रियाएं चलना, दौड़ना, कूदना व फेंकना ही एथलेटिक्स है। ईसा से 776 पूर्व इन्हीं क्रियाओं पर आधारित स्पर्धाओं पर हुए मुकाबलों से ओलंपिक खेलों की शुरुआत यूनान से हुई थी। वैसे भी मानव हजारों वर्ष पूर्व जब जंगलों व कंदराओं में रहता था, अपने जीवनयापन के लिए दौड़कर शिकार करना या स्वयं शिकार होने से बचना, खाइयों से कूदना तथा पेड़ों पर फलों व शिकार पर पत्थर आदि फेंकना अपनी दिनचर्या में ला चुका था। आज भी ओलंपिक खेलों की सबसे आकर्षक स्पर्धाएं एथलेटिक्स में ही हैं। एथलेटिक्स के बिना ओलंपिक या किसी भी खेल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

हिमाचल प्रदेश में एथलेटिक का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। आजादी से 25 वर्ष बाद पहली बार 1971 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में अपनी पहली एथलेटिक्स प्रतियोगिता की, जिसमें पदम सिंह गुलेरिया तथा उनकी बहन गीता गुलेरिया दोनों राजकीय महाविद्यालय मंडी के विद्यार्थी थे, सर्वश्रेष्ठ धावक व धाविका बने। कटक में आयोजित अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स में थानेदार सिंह, पदम सिंह गुलेरिया, गीता गुलेरिया, रोशनी गुलेरिया व नूतन शर्मा ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व पहली बार किया था। हिमाचल एथलेटिक संघ का गठन सत्तर दशक के अंतिम वर्षों में सन आफ पदम सिंह गुलेरिया सचिव व ब्रिगेडियर दलजीत सिंह पुरेवाल अध्यक्ष बनने पर हुआ। इससे पहले विश्वविद्यालय तथा राज्य स्कूली टीमें राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, मगर वरिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता के लिए हिमाचल का प्रतिनिधित्व राज्य एथलेटिक्स संघ के बाद ही शुरू हुआ था। स्कूल स्तर पर पहला पदक राष्ट्रीय सुंदरनगर के रमेश ने तथा अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर ऊना के भवानी अग्निहोत्री ने हिमाचल के लिए जीते हैं। कनिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में विजय कुमार ने पदक जीता है। सुमन रावत ने हिमाचल के लिए वरिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में नए राष्ट्रीय कीर्तिमानों के साथ कई पदक जीते हैं। 1984 ओलंपिक खेलों से क्वालीफाई करने से चूकी इस स्टार धाविका ने 1985 जकार्ता में आयोजित एशियाई एथलेटिक्स प्रतियोगिता में नई चली 3000 मीटर दौड़ में भारत के लिए कांस्य पदक जीता था। इसके बाद 1986 सियोल एशियाई खेलों में 3000 मीटर की दौड़ में एक बार फिर देश के लिए कांस्य पदक जीता तथा इसी योग्यता पर इन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला।

बिलासपुर की कमलेश कुमारी ने 1989 दिल्ली में आयोजित एशियाई एथलेटिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व 1500 मीटर में किया। इस धाविका को राज्य के सर्वोच्च खेल पुरस्कार परशुराम अवार्ड से नवाजा गया है। 1998 एशियाई खेलों के लिए लगे प्रशिक्षण शिविर के लिए पुष्पा ठाकुर का चयन अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता से हुआ था। अगले दस वर्षों तक 400 मीटर की दौड़ में राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में ओलंपिक 2004 तथा एशियाई एथलेटिक्स 2005 में चयनित होने वाली इस धाविका ने हिमाचल की हाजिरी तेज गति की दौड़ों के लिए राष्ट्रीय पदक तालिका में लगाकर यह भी बता दिया है कि तेज गति की दौड़ों में भी हिमाचली धावकों का भविष्य है। इस धाविका को भी परशुराम अवार्ड से नवाजा गया है। अमन सैनी ने लंबी दूरी की दौड़ों में कई वर्षों तक हिमाचल के लिए पदक जीते, एशियाई क्रास कंट्री प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व तीन बार किया है। इस धावक को भी परशुराम अवार्ड मिला है। नौकरी की वर्षों हिमाचल सरकार से मांग करने के बाद यह धावक अब पंजाब पुलिस में निरीक्षक के पद पर कार्यरत है।

राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर की पूर्व विद्यार्थी संजो देवी ने प्रक्षेपण में राष्ट्रीय चैंपियन बनकर इस मिथक को झुठला दिया है कि हिमाचल में थ्रोअर नहीं हो सकते हैं। इस धाविका को भी परशुराम अवार्ड से सम्मानित किया गया है। अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एथलेटिक्स में सुंदरलाल, दिनेश, रितेश, प्रवीण, अजय लखनपाल व राकेश पुरुष वर्ग तथा महिला वर्ग में मंजू कुमारी, आशा कुमारी, रीता कुमारी व हीना ठाकुर ने लंबी दूरी की दौड़ में तथा प्रोमिला व ज्योति ने तेज गति की दौड़ों में प्रदेश विश्वविद्यालय के लिए पदक जीते हैं। इस समय राज्य के पास सीमा, कनीजो, मनीषा ठाकुर, संगीता महिला वर्ग में तथा पुरुष वर्ग में अकेश चौधरी, सावन वरवाल आदि कुछ गिने-चुने नाम हैं, मगर इस समय सीमा तथा सावन राज्य से पालयन कर चुके हैं। सीमा पंजाबी विश्वविद्यालय की तरफ से खेलेगी और सावन तथा अंकेश पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स स्कूल में ट्रेनिंग कर रहे हैं। सीमा यूथ राष्ट्रीय एथलेटिक्स में 3000 मीटर की दौड़ में रिकार्डधारी हैं तथा एशियाई स्तर पर कांस्य पदक जीत चुकी हैं। पिछले महीने हुए यूथ ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। हिमाचल प्रदेश में इस समय ऊना व बिलासपुर में राज्य खेल छात्रावास तथा धर्मशाला में साई का खेल छात्रावास है। धर्मशाला व हमीरपुर में सिंथेटिक टै्रक है। इन पर अन्य कई प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रहे हैं। हिमाचल में बिलासपुर, शिलारू तथा सावड़ा में भी सिंथेटिक टै्रक बिछ रहे हैं। बिलासपुर में तो कुछ महीनों में ही सिंथेटिक पड़ जाएगा। शेष कार्य पूरा हो चुका है। आज राज्य में विश्व स्तरीय सुविधा है। एशियाई खेलों में ही पदक जीतने पर प्रथम श्रेणी की नौकरी व करोड़ों रुपए मिल रहे हैं, ऐसे में आज का अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य खेल में तलाशने लग गया है। हिमाचल प्रदेश के कई शारीरिक शिक्षक पूर्व धावक व एथलेटिक्स प्रशिक्षक राज्य में कई जगह एथलेटिक्स प्रशिक्षण दे रहे हैं। देखते हैं कौन-कौन प्रशिक्षक जुनून की हद तक जाकर राज्य में प्रशिक्षण देकर भविष्य के स्टार धावक तैयार करता है।


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