अध्ययन और ध्यान

By: Dec 15th, 2018 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

तुम मेरे कार्य-कलाप के बारे में पूर्ण वितरण जानना चाहते हो कि मैं कहां-कहां गया था, क्या कर रहा हूं, साथ ही मेरे भाषण के सारांश भी जानना चाहते हो। साधारण तौर पर यह समझ लो कि मैं यहां वही काम कर रहा हूं, जो भारतवर्ष में करता था। सदा ईश्वर पर भरोसा रखना और भविष्य के लिए कोई संकल्प न करना। इसके सिवा तुम्हें याद रखना चाहिए कि मुझे इस देश में निरंतर काम करना पड़ता है और अपने विचारों को पुस्तकाकार लिपिबद्ध करने का मुझे अवकाश नहीं है। यहां तक कि इस लगातार परिश्रम ने मेरे स्नायुओं को कमजोर बना दिया है और मैं इसका अनुभव भी कर रहा हूं। तुमने जीजी ने और मद्रासवासी मेरे सभी मित्रों ने मेरे लिए  जो अत्यंत निःस्वार्थ और वीरोचित कार्य किया है, उसके लिए अपनी कृतज्ञता मैं किन शब्दों में व्यक्त करूं, लेकिन वे सब कार्य मुझे आसमान पर चढ़ा देने के लिए नहीं थे, वरन तुम लोगों को अपनी कार्यक्षमता के प्रति सजग करने के लिए थे। संघ बनाने की शक्ति मुझमें नहीं है। मेरी प्रकृति अध्ययन और ध्यान की तरफ ही झुकती है। मैं सोचता हूं कि मैं बहुत कुछ कर चुका हूं, जिन्हें मेरे गुरुदेव ने मुझे सौंपा है। अब तो तुम जान ही गए कि तुम क्या कर सकते हो, क्योंकि तुम मद्रासवासी युवको, तुम्हीं ने वास्तव में सब कुछ किया है, मैं तो केवल चुपचाप खड़ा रहा। मैं एक त्यागी संन्यासी हूं और मैं केवल एक ही वस्तु चाहता हूं। मैं उस भगवान या धर्म पर विश्वास नहीं करता, जो न विधवाओं के आंसू पोंछ सकता है और न अनाथों के मुंह में एक टुकड़ा रोटी ही पहुंचा सकता है। किसी धर्म के सिद्धांत कितने ही उदात्त एवं उसका दर्शन कितना ही सुगठित क्यों न हो, जब तक वह कुछ ग्रंथों और मतों तक ही परिमित है, मैं उसे नहीं मानता। हमारी आंखें सामने हैं, पीछे नहीं। सामने बढ़ते रहो और जिसे तुम अपना धर्म कहकर गौरव का अनुभव करते हो, उसे कार्यरूप में परिणत करो। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे। मेरी ओर मत देखो, अपनी ओर देखो। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं थोड़ा सा उत्साह संचार करने का साधन बन सका। इससे लाभ उठाओ, इसी के सहारे बढ़ चलो। प्रेम कभी निष्फल नहीं होता मेरे बच्चे, कल हो या परसों या युगों के बाद, पर सत्य की जय अवश्य होगी। प्रेम ही मैदान जीतेगा। क्या तुम अपने भाई मनुष्य जाति को प्यार करते हो? ईश्वर को कहां ढूंढने चले हो। ये सब गरीब, दुखी, दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं है? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते? गंगा तट पर कुआं खोदने क्यों जाते हो? प्रेम की असाध्य साधिनी शक्ति पर विश्वास करो। इस झूठ जगमगाहट वाले नाम यश की परवाह कौन करता है? समाचार पत्रों में क्या छपता है, क्या नहीं, इसकी मैं कभी खबर ही नहीं लेता। क्या तुम्हारे पास प्रेम है? तब तो तुम सर्वशक्तिमान हो। क्या तुम संपूर्णतः निःस्वार्थ हो? यदि हो? तो फिर तुम्हें कौन रोक सकता है?


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