असमंजस में है भाजपा

By: Dec 21st, 2018 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

मोदी के पास अब भी शानदार वापसी के कई अवसर हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि वह भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ाई से निपटें तथा अपनी छवि को दागदार न होने दें। छोटे और मझोले उद्योगों को फिर से उभरने में मदद करनी होगी तथा इन्हें सभी अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी। जीएसटी में आवश्यक छूट भी मोदी को देनी होगी…

पांच राज्यों में चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2019 के लिए चुनाव अभियान का सेमी फाइनल हार दिया है। हर व्यक्ति जो अब तक नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर रहा था, वह असमंजस में है। हर कोई सोच रहा है कि मोदी जो करिश्मा रखते थे, उसे क्या हो गया है। अब तक सभी को विश्वास था कि सब कुछ सुचारू रूप से चलेगा, लेकिन अब स्थिति यह विश्वास नहीं जगा पा रही है। मैंने जब एक राजनीतिक विश्लेषक से पूछा कि भाजपा छत्तीसगढ़ में कैसे हार गई तो वह फुसफुसाया कि इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि मोदी ही जिम्मेवार हैं। मैंने उससे सवाल किया कि मोदी किस तरह जिम्मेवार हैं? इस पर उसने जवाब दिया कि मोदी फिर से अपना करिश्मा दिखाने में विफल रहे हैं क्योंकि वह अब एक ईमानदार व्यक्ति नहीं हैं तथा राफेल विमान सौदे की घोटालेबाजी में उनकी भागीदारी सामने दिख रही है। दुष्प्रचार किस तरह एक अवधारणात्मक भ्रांति पैदा कर सकता है, यह इस केस से जगजाहिर है। यह सारी बात इस केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के पहले की है। वर्ष 2014 में मोदी एक बड़ी ताकत के रूप में उभरे थे क्योंकि उनकी छवि एक साफ-सुथरे नेता की थी। घोटालों से त्रस्त भारत को उस समय एक ऐसे नेता की सख्त जरूरत थी जिसकी छवि बिलकुल साफ-सुथरी हो। मोदी इस अपेक्षा को पूरी करते थे। मैंने उनका समर्थन किया तथा अन्य कई लाख लोगों ने भी उनमें अपना विश्वास प्रकट किया। मैं भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा प्रभावित नहीं था क्योंकि मैंने लंबे समय तक कांग्रेस के साथ काम किया था तथा केसरिया धमक को मैं कम ही जानता था। मैं कांग्रेस को जानता था, किंतु जिस पार्टी को मैं जानता था, वह तीव्र गति से भ्रष्ट होती गई तथा इसने भ्रष्ट व अनैतिक परिपाटियों को आत्मसात करना शुरू कर दिया।

भ्रष्टाचार वाले इस परिदृश्य में मोदी के रूप में आशा की एक किरण दिखी जो देश में व्यापक बदलाव लाने की क्षमता रखते थे। उन्हें एक ईमानदार व सत्यनिष्ठ नेता के रूप में देखा गया। वह किस तरह एक साफ-सुथरी छवि वाले प्रधानमंत्री साबित हो सकते हैं, इसके पक्ष में यह तर्क भी दिए गए कि उनके परिवार या संबंध से कोई भी व्यक्ति गलत तरीके से धन अर्जित नहीं कर रहा है। कांग्रेस ने वर्ष 2014 के बाद सभी आशाएं खो दी थीं तथा वह यह कल्पना भी नहीं कर रही थी कि वह मोदी को बहुत जल्द इस तरह तीन राज्यों में हरा देगी। कांग्रेस ने भाजपा के विरुद्ध जमकर दुष्प्रचार किया। वह बार-बार झूठ बोलती गई जो अब सच समझा जाने लगा है। दुखदायी यह है कि भाजपा संचार में बुरी तरह विफल हुई। वह कांग्रेस के झूठ का कड़ा मुकाबला नहीं कर पाई।  कांग्रेस के झूठ को वह झूठ साबित नहीं कर पाई और प्रचार के मामले में वह पीछे रह गई। राहुल गांधी ने मोदी को खुलेआम चोर कहा जो कि बिलकुल ही असंसदीय बात है। परंतु भाजपा की ओर से कोई भी ऐसा नेता आगे नहीं आया जो इस असत्य का कड़ा जवाब दे पाता। कांग्रेस का अभियान हालांकि झूठ पर आधारित था, फिर भी वह प्रभावी सिद्ध हुआ तथा उसके पक्ष में पत्रकार, प्रख्यात अर्थशास्त्री और यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर भी आगे आए। कांग्रेस यहां तक आगे चली गई कि उसने पाकिस्तान से भी मदद मांगी, किंतु दूसरी ओर से कोई भी उससे इस मसले पर प्रभावशाली तरीके से सवाल नहीं कर पाया। कांग्रेस पार्टी की रैलियों में ‘पाकिस्तान अमर रहे’ तक के नारे लगे, इसके बावजूद इसकी विश्वसनीयता को कोई आंच नहीं आई। आश्चर्यजनक यह है कि राफेल विमान सौदे पर मोदी को क्लीन चिट का जो फैसला आया है, उसमें सुनवाई तीन ऐसे न्यायाधीशों ने की जिनका भाजपा से कोई संबंध नहीं है, इसके विपरीत वे कुछ हद तक कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। इसके बावजूद जो फैसला आया है, वह पूरी तरह स्पष्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को सभी मामलों में दोषमुक्त कर दिया। न तो यह साबित हो पाया कि सिस्टम या प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया, न ही यह साबित हुआ कि सरकार ने अनिल अंबानी का किसी तरह पक्ष लिया। राफेल विमानों का तकनीकी न्यायोचित्य भी इसमें साबित हो गया। देश को इन विमानों की जरूरत है तथा यही बात रक्षा विशेषज्ञ बार-बार कह रहे हैं। विमान खरीद की पूरी प्रक्रिया में कहीं भी कोई त्रुटि नहीं पाई गई है। ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला जिससे सरकार की ओर से किसी प्रकार की अनियमितता प्रकट हो। इसके बावजूद कांग्रेस इस मामले में राई का पहाड़ बनाने में जुटी है, किंतु आश्चर्यजनक यह है कि दूसरी ओर से इस झूठ का प्रभावी जवाब नहीं दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पांच राज्यों में चुनाव के परिणाम आने के बाद आया है। कुछ जानकार मानते हैं कि अगर यह फैसला चुनाव से पहले आ जाता तो चुनाव परिणाम कुछ और ही होते। मैं इस आकलन से पूरी तरह सहमत नहीं हूं, फिर भी इस आकलन को मानने के कुछ वाजिब तर्क हैं। मिसाल के तौर पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री केंद्र के कुछ सुझावों से सहमत नहीं थे और उन्होंने चुनावी रण में अपने 11 मंत्री खो दिए। बड़ी संख्या में भाजपा उम्मीदवार कम अंतर से हारे तथा यहां तक कि राजस्थान व मध्य प्रदेश को भाजपा ने कम अंतर से खोया। इस सबसे यह प्रमाणित होता है कि भाजपा के इन प्रादेशिक नेताओं ने अपनी ताकत तो दिखाई, किंतु वे एकजुट हुए विपक्ष का प्रभावी ढंग से सामना नहीं कर पाए।

मोदी के पास अब भी शानदार वापसी के कई अवसर हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि वह भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ाई से निपटें तथा अपनी छवि को दागदार न होने दें। छोटे और मझोले उद्योगों को फिर से उभरने में मदद करनी होगी तथा इन्हें सभी अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी। जीएसटी में आवश्यक छूट भी मोदी को देनी होगी। विपक्ष का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए उन्हें रणनीति बनानी होगी तथा अपना प्रचार तंत्र पुख्ता करना होगा। इन सभी मसलों से निपटने के लिए उन्हें केवल प्रचारकों पर निर्भर रहने के बजाय उच्च सलाहकारों का प्रबंध करना चाहिए। गौवंश तथा मंदिर जैसे संवेदनशील मसलों का निपटारा कुशलता व विनम्रता के साथ करना होगा। मोदी को अपनी सरकार की उपलब्धियों को आम जनता तक ले जाना होगा तथा सभी विभागों के प्रदर्शन से आम लोग रूबरू करवाए जाने चाहिए। नेहरू परिवार की बेवजह आलोचना से भी मोदी को बचना होगा। यह समय आगे की ओर देखने का है तथा लोगों को पुरानी बातें, जो बीत चुकी हैं, याद नहीं दिलाई जानी चाहिए। मुझे अब भी आशा है कि मोदी अपनी छवि के अनुसार शानदार प्रदर्शन करके वापसी करेंगे तथा राहुल गांधी अपने प्रचार अभियान में परिपक्वता का परिचय देंगे। देश को अपने नेताओं से सबसे बढि़या प्रदर्शन देखने को मिलना चाहिए।

बस स्टाप

पहला यात्री : हाल के चुनावों का सबक क्या है?

दूसरा यात्री : मैं खाऊंगा और खाने दूंगा।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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